*प्रवीण परिमल* की दस *ग़ज़लें*
1.
वो अजब एक बुत है मेरा यार भी
कुछ लगे आशना, कुछ लगे अजनबी
तौरे-उल्फ़त सनम का बताऊँ मैं क्या
एक पल बेरुख़ी, एक पल बेख़ुदी
यूँ तो मुझसे मुहब्बत करे है मगर
वो जुबाँ से न ज़ाहिर करे है कभी
दिन के हाथों हुए हम तो मजबूर यूँ
ज़ुल्म भी वो करे तो लगे दिल्लगी
उससे मिलना ख़ुशी की भले बात हो
वो जो मिल जाए, दिल की बढ़े बेकली
एक मुद्दत पे देखा उसे आज फिर
आज आँखों की फिर कुछ बढ़ी रौशनी
चश्मे-साक़ी का 'परिमल'असर ये हुआ
ज़िक्रे-मय भी सुनूँ तो बढ़े तिश्नगी
2.
ज़िन्दगी! यूँ तो बहुत हूँ आशना तुझसे
पास होकर भी मगर हूँ मैं जुदा तुझसे
जब से अश्के- ग़म हुए हैं अजनबी अपने
सोचता हूँ क्यों हुआ था सामना तुझसे
किस भरोसे पर करूँ उम्मीद उल्फ़त की
हो न पाया जबकि नफ़रत ही अदा तुझसे
आँसुओं से ग़र करोगे नाम नम मेरा
रूठ जाएगी हथेली की हिना तुझसे
आख़िरी दम तक थीं साँसे मुंतज़िर लेकिन
वक़्ते-सफ़र भी तो न हो पाया वफ़ा तुझसे
इश्क़ की दौलत मिली तुझको तो इंसाँ बन गए
वरना कोई था कहाँ 'परिमल'बुरा तुझसे
3.
दिल मेरा बहता हुआ दरिया रहा
और मैं ही उम्र भर प्यासा रहा
तिश्नगी मेरे लबों की देख कर
अश्क उसकी आँख में ठहरा रहा
मुस्कुराकर मैंने देखा था जिसे
मुद्दतों वह आइना रूठा रहा
उसके गेसू ख़ुद ही बिखरे थे मगर
शह्र में नाहक मेरा चर्चा रहा
रहनुमा था , कारवाँ था , दोस्त थे
हर सफ़र में फिर भी मैं तन्हा रहा
सुन के मेरा हाल वो भी रो पड़ा
संगदिल के नाम जो रुस्वा रहा
उम्रभर 'परिमल 'किसे ढूँढ़ा किए
उम्रभर किसके लिए ज़िन्दा रहा
4.
नशा आँखों में, होठों पर हँसी, दिल में दुआ रखना
कहाँ सीखा है तुमने इस क़दर दिलकश अदा रखना
सरापा एक लज्ज़त है, सनम की शोख़ नज़रों में
नज़ाक़त उसके लहज़े में, क़यामत तक, ख़ुदा रखना
यक़ीनन जान ले लेगी, तुम्हारी ये अदा इक दिन
दुपट्टे का कोई कोना, यूँ होंठों में दबा रखना
जो छत पर तुम कभी आओ, हमारी दीद की ख़ातिर
मेरे महबूब! पलकों में वही शर्मो- हया रखना
जिसे भी मिल गया यह ख़ूबसूरत चाँद का टुकड़ा
यक़ीनन भूल जाएगा वो घर में आईना रखना
तुम्हारी मदभरी आँखों का जलवा जिसने देखा है
शरारा इश्क़ का मुश्किल हुआ उसको दबा रखना
मिले हो कितनी मुश्किल से, हज़ारों मिन्नतों पे तुम
मुनासिब अब नहीं है दरमियाँ ये फ़ासला रखना
इशारा कुछ तो करता है, तुम्हारी रुख़सती पर ये
हमारा नाम मेहंदी से, हथेली पर सजा रखना
लबों की तेरे जुंबिश कह रही है, ऐ मेरे हमदम!
किसी दिन लौट कर आऊँगी, बस तुम हौसला रखना
वफ़ा का ये तक़ाज़ा है, हमेशा दिल में तुम अपने
हिफ़ाज़त से मुझे, ता-उम्र, मेरे हमनवा! रखना
यक़ीनन मंज़िले- मक़सूद तू पा जाएगा 'परिमल'
कभी भी भूलना मत कोशिशों का सिलसिला रखना
5.
अभी तक है निगाहों को तुम्हारे प्यार की हसरत
तुम्हारे दर पे लाती है तेरे दीदार की हसरत
जुनून ए इश्क़ की जुंबिश लबों पर है अभी बाक़ी
अभी तक है मेरे दिल में विसाल ए यार की हसरत
मिटाना शौक़ से हस्ती मेरे जज़्बों की तुम लेकिन
अभी कुछ और बाक़ी है तेरे बीमार की हसरत
नज़र भर देख लेने से तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा
निकल जाएगी लेकिन इस दिल ए बेज़ार की हसरत
गुज़रना उसके कूचे से कोई मा'नी नहीं रखता
उम्मीद ए वस्ल की हसरत है अब बेकार की हसरत
नहीं ये ख़त्म होने को हैं 'परिमल'तल्ख़ियाँ उसकी
मिटा दे जह्न से शीरीनी ए गुफ़्तार* की हसरत
* बातचीत की मिठास
6.
तुझको देखूँ या आईना देखूँ
किसको पहले ऐ दिलरुबा देखूँ
एक यही दिल की बस तमन्ना है
कुछ नहीं मैं तेरे सिवा देखूँ
तू ही तू है मेरी निगाहों में
किसलिए और कुछ भला देखूँ
रहनुमा मुझको याद आता है
जब कभी तेरे नक़्शे-पा देखूँ
मुज़्तरिब हूँ, तू मुझको इतना बता
कब तलक तेरा रास्ता देखूँ
इश्क़ ऐसा है कारोबार नहीं
जिसमें अपना ही फ़ायदा देखूँ
मौत हासिल है इश्क़ में 'परिमल'
फिर भी ख़्वाहिश है, माजरा देखूँ
7.
नज़र से ,नज़र का, नज़ारा करेंगे
मुहब्बत में ऐसे गुज़ारा करेंगे
कभी उनको हम होने देंगे न रुस्वा
उन्हें दूर से ही निहारा करेंगे
ये उनकी है मर्ज़ी, वो आएँ न आएँ
मगर उनको हम तो पुकारा करेंगे
तसव्वुर में तस्वीर उस महजबीं की
नज़र की कलम से उतारा करेंगे
उन्हें इसलिए दिल का शीशा
दिया है
वो ख़ुद को इसी में सँवारा करेंगे
उन्हें बाँधकर हमसे रक्खेगी उल्फ़त
तो कैसे भला वो किनारा करेंगे
तड़पना, सिसकना, तरसना, बिलखना
मोहब्बत में सब कुछ गवारा करेंगे
हमें है यकीं , उनको हमसे मुहब्बत
जो होगी कभी तो इशारा करेंगे
अगर इश्क़ है जुर्म तो आज 'परिमल'
इसे शौक़ से हम दोबारा करेंगे
8.
चलो, धूप में गुनगुनी, हम नहाएँ
घड़ी साथ में कुछ तो ऐसे बिताएँ
हरी घास पर लेटकर साथ में हम
कोई ख़ूबसूरत ग़ज़ल गुनगुनाएँ
कभी ख़त्म होगी नहीं कश्मकश ये
सुकूँ की कभी तो ये चादर बिछाएँ
बहुत ख़ूब है ये नदी का किनारा
चलो ख़्वाहिशों की पतंगें उड़ाएँ
तपिश कुछ मुहब्बत की हम ही बढ़ा लें
बहुत सर्द हैं आज कल की हवाएँ
रवाँ वक़्त का है जो दरिया, उसी में
चलो रंजो-ग़म की ये कश्ती बहाएँ
परिंदे दुखों के हैं बेचैन बेहद
उन्हें शादमानी के दाने खिलाएँ
है 'परिमल'यही वक़्त का भी तक़ाज़ा
सुनें अब तो हम अपने दिल की सदाएँ
9.
हमारे ख़त जलाकर क्या करोगे
तुम अपने ज़ख़्म ही ताज़ा करोगे
यक़ीनन तुम भी हो जाओगे तन्हा
मुझे जिस रोज़ तुम तन्हा करोगे
जो चमकेंगे मेरी यादों के क़तरे
इन्हीं आँखों को तुम दरिया करोगे
मेरी चाहत से यूँ इनकार कर के
तुम अपने आप को रुस्वा करोगे
मेरी यादों के टूटे आईने में
हमेशा तुम सजा - सँवरा करोगे
कोई जब पूछ देगा हाल मेरा
बताओ फिर भला तुम क्या करोगे
उदासी ओढ़ लोगे कुछ ज़ियादा
कभी जब सामने शीशा करोगे
है तुम से आज ये 'परिमल'का दावा
उसी को रात भर सोचा करोगे
10.
नसीहत बेवफ़ा देने लगा है
वो क्यों मुझको सज़ा देने लगा है
अजब-सी बेकली होने लगी है
कोई क्या बद्दुआ देने लगा है
मेरा दिल भी मकाँ इक हो गया है
किसी को आसरा देने लगा है
मेरे दिलदार को ये क्या हुआ है
परायों को पता देने लगा है
जो देखा अज़्म उसने नाख़ुदा का
तो दरिया रास्ता देने लगा है
परीशाँ सोचकर अंजाम हूँ मैं
वो शोलों को हवा देने लगा है
चलो 'परिमल'से चलकर पूछते हैं
मुनासिब मशविरा देने लगा है
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