ऑनलाइन मीडिया की धार पर नकेल!/ ऋषभदेव शर्मा
केंद्र सरकार ने ऑनलाइन समाचार पोर्टलों और ऑनलाइन सामग्री प्रदाताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने से जुड़ा आदेश जारी किया है। अब से देश में चलने वाले ऑनलाइन समाचार पोर्टल और ऑनलाइन कंटेंट प्रोग्राम भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन होंगे। इनमें ऑनलाइन फिल्मों के साथ दृश्य-श्रव्य कार्यक्रम, ऑनलाइन समाचार और ज्वलंत घटनाओं से जुड़ी सामग्री शामिल होगी। इस बारे में सरकार सर्वोच्च न्यायालय में भी यह मान चुकी है कि ऑनलाइन माध्यमों का नियमन टीवी के नियमन से ज्यादा जरूरी है। इसीलिए सरकार ने ऑनलाइन माध्यमों से समाचार या अन्य सामग्री देने वाले माध्यमों को मंत्रालय के तहत लाने का यह कदम उठाया है।
इसमें दो राय नहीं कि किसी भी प्रकार की निगरानी के अभाव में ऑनलाइन माध्यमों के बड़ी हद तक अराजक होने की संभावना रहती है। आदर्श स्थिति तो यह होती कि इनसे जुड़े लोग ज़िम्मेदारी और संवेदनशीलता का परिचय देते और अपना आचरण संयमित रखते, ताकि किसी बाहरी या सरकारी चौकीदारी की ज़रूरत न पड़ती। लेकिन पिछले कुछ वर्षों का अनुभव बताता है कि आत्म संयम के अभाव में ऑनलाइन माध्यम बड़ी हद तक निरंकुश हो चला है। निरंकुशता प्रतिबंधों को बुलावा देती ही है। वही हो भी रहा है। इसे ही लक्ष्य कर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पहले डिजिटल मीडिया के लिए नियम-कानून बनाए जाने चाहिए। दरअसल इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के लिए पहले से ऐसे निर्देश मौजूद हैं, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं। इस लिहाज से डिजिटल मीडिया अभी तक छुट्टा साँड़ ही रहा है, जबकि उसकी पहुँच भी ज़्यादा दूर तक है; और असर भी। इसलिए देर-सबेर उसे नकेल तो पड़नी ही थी!
उल्लेखनीय यह भी है कि कुछ समय पूर्व सरकार देश में काम करने वाले डिजिटिल मीडिया के पत्रकारों के लिए कुछ सुविधाएँ भी देने को भी कह चुकी है। सरकार डिजिटल मीडिया निकायों के पत्रकारों, फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों को पीआईबी मान्यता और आधिकारिक संवाददाता सम्मेलनों में भागीदारी जैसे लाभ देने को भी तैयार है। इतने सब के बदले में आपको निगरानी के लिए तो प्रस्तुत रहना पड़ेगा न? वैसे सरकार ने डिजिटल मीडिया निकायों से अपने हितों को आगे बढ़ाने और सरकार के साथ संवाद के लिए स्वयं नियमन संस्थाओं का गठन करने को भी कहा है। ऐसा होगा तो सूचना प्रसारण मंत्रालय को डिजिटल मीडिया की 'आज़ादी'में ज़्यादा दखल देने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
गौरतलब है कि सूचना प्रसारण मंत्रालय का दखल अब तक सिर्फ सिनेमा और टेलीविजन पर परोसी जा रही सामग्री तक सीमित था। नए आदेश के लागू हो जाने पर इसे नेटफ्लिक्स, अमेजन, यू-ट्यूब आदि की सामग्री पर भी निगरानी का अधिकार मिल जाएगा। जैसा कि प्रायः होता है, नियंत्रण के अधिकार के बेजा इस्तेमाल की गुंजाइश यहाँ भी रहेगी ही। लेकिन सोशल और मुक्त मीडिया के नाम पर अप्रामाणिक और आपत्तिजनक सामग्री के प्रसारण को देखते हुए कुछ न कुछ अंकुश की ज़रूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह भी किसी से छिपा नहीं कि डिजिटल माध्यम का उपयोग जहाँ प्रायः सभी राजनैतिक दल योजनाबद्ध ढंग से अपने लिए करते हैं, वहीं आए दिन उन पर ऐसी सामग्री का प्रकाशन-प्रसारण भी देखने को मिलता रहता है जो प्रशासन या सरकार को असमंजस में डाल देता है। कई बार तो जवाब देते नहीं बनता। इसलिए किसी भी सरकार का इन माध्यमों के नियमन के लिए व्यग्र होना स्वाभाविक है। लोकतंत्र का तकाजा यही है कि यह नियमन सकारात्मक हो, गला घोंटने वाला नहीं। क्योंकि अंततः डिजिटल माध्यम लोकतांत्रिक माध्यम है और उसके इस चरित्र की रक्षा भी ज़रूरी है! 000