Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

विस्मय कारी हैं औरंगाबाद महाराष्ट्र का मंदिर

$
0
0

 स्थापत्य कला का एक रहस्य 


   विश्वमे सबसे भव्य एक ही पत्थरसे तराशा गया इतना भव्य शिवालय या तो आजके विज्ञान संम्पन युगमे भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है या फिर कोई दैवी शक्ति का चमत्कार । एक ही पहाड़ को तराश कर इस मंदिर का निर्माण करनेमे या यों 200 -300 साल की हजारो कारीगर की सतत निर्माण प्रक्रिया शुरू रादि होगी या फिर किवंदती अनुसार किसी राजवी की महारानी के संकल्प अनुसार सिर्फ सात दिनमे किसी उच्च कोटि के साधक की किसी दिव्य शक्तिने ये निर्माण किया हो सकता है ।

फ्रांस ,रशिया ओर अमेरिकन वैज्ञानिकों के मतानुसार ये मानव निर्मित नही पर कोई परलोक से आई कृपा है । पुरातत्व विदो के मतानुसार ये हजारो साल पहले के भारतीय शिल्प शास्त्र की देन है । समय के प्रवाह में ऐसे अद्भुत स्थानों के साथ अनेक कथाएं जुड़ जाती है ,पर इस मंदिर के शिवलिंग के दर्शन मात्रसे अनेक प्रकार की असाध्य बीमारी नष्ट हो जाती है ये हजारो मरीजो का स्वयम अनुभव है । इसलिए यहां की इस लोकवायका की राजा के स्वास्थ्य केलिए शिवजी की मन्नत मांगी और राजा स्वस्थ हो गए इस बात में कुछ तथ्य लगता है ।इस मंदिर की भव्यता ओर सुंदरता के सामने दुनिया के सात अजूबे नगण्य है । प्रसाशन द्वारा सुविधायुक्त पर्यटन व्यवस्था की जाय तो ये विश्वका सबसे आकर्षण केंद्र हो सकता है । 


   महाराष्ट्र के औरंगाबाद में धुश्मेश्वर क्षेत्रमे आये इस स्थान के कही और भी चमतकारी कहानियां सुनने को मिलती है । ये वही पत्थर है जो करोड़ों साल पहले धरती के गर्भ से लावे के रूप में निकला था और बाद में ठंडा होकर जमने से, इसने पत्थर का रूप लिया


कैलास मंदिर को U आकार में उपर से नीचे काटा गया है जिसे पीछे की तरफ से 50 मीटर गहरा खोदा गया है. पर आप सोचिये इतनी कठोर और मजबूत चट्टान को किस चीज़ से काटा गया होगा?..कुछ खोजकर्ताओं का कहना है कि इस प्रकार की जटिल संरचना का आधुनिक तकनीक की मदद से निर्माण करना आज भी असंभव है.

क्या वो लोग जिन्होंने इस मंदिर को बनाया आज से भी ज्यादा आधुनिक थे?..

ये एक जायज सवाल है


यहाँ कुछ वैज्ञानिक आँकड़ों पर बात कर लेते हैं,..

पुरातात्विदों का कहना है कि इस मंदिर को बनाने के लिए 400,000 टन पत्थर को काट कर हटाया गया होगा और ऐसा करने में उन्हें 18 साल का समय लगा होगा .

माना की इस काम को करने के लिए वहाँ काम कर रहे लोग 12 घंटे प्रतिदिन एक मशीन की तरह कार्य कर रहे होंगे जिसमें उन्हें कोई ब्रेक या रेस्ट नहीं मिलता होगा वो पूर्ण रूप से मशीन बन गये होंगे .

तो अगर 400,000 टन पत्थर को 18 साल में हटाना है तो उन्हें हर साल 22,222 टन पत्थर हटाना होगा , जिसका मतलब हुआ 60 टन हर दिन और 5 टन हर घंटे .ये समय तो हुआ मात्र पत्थर को काट कर अलग करने का...

उस समय का क्या जो इस मंदिर की डिजाईन, नक्काशी और इसमें बनाई गयीं सैंकड़ों मूर्तियों में लगा होगा.


एक प्रश्न जो और है वो ये है कि जो पत्थर काट कर बाहर निकाला गया वो कहाँ गया?? उसका इस मंदिर के आसपास कोई ढेर नहीं मिलता..ना ही उस पत्थर का इस्तेमाल किसी दूसरे मंदिर को बनाने या अन्य किसी संरचना में किया गया,..

आखिर वो गया तो गया कहाँ??

क्या आप को अभी भी लगता है कि ये कारनामा आज से हजारों वर्ष पहले मात्र छेनी और हथौड़े की मदद से अंजाम दिया गया होगा.।राष्ट्रकूट राजाओं ने वास्तुकला को चरम पर लाकर रख दिया, जैसा कि बताया जाता है इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम(756 - 773) ने करवाया था.

यह मंदिर उस भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है जिसका मुकाबला पूरी दुनिया में आज भी कोई नहीं कर सकता.


ये औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में भगवान शिव का मंदिर है...

जो एक पहाड़ को काटकर बनाया गया है और इसको बनाने में 200 साल लगे हैं।

अच्छे से अच्छा धरोहर हमारे देश मे हैं कभी इनपर ध्यान दीजिए।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भगवान शिव के इस मंदिर के रहस्य के बारें में आज भी मात्र 10 से 15 प्रतिशत हिन्दू ही जानतेहैं.लेकिन औरंगाबाद स्थित कैलाश मंदिर के बारें में बोला जाता है कि इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि इसमें ईंट और पत्थरों का इस्तेमाल नहीं हुआ है.

एक पहाड़ी को इस तरह से काटा गया है कि आज एक पहाड़ी ही मंदिर है.

इस मंदिर को ऊपर से नीचे बनाया गया है.

जबकि आज इमारत हम नीचे से ऊपर बनाते हैं.


आज तक विज्ञान भी कैलाश मंदिर की इस सच्चाई का पता नहीं लगा पाया है कि किस तरह से और किस तरह की मशीनों से इस शिव मंदिर का निर्माण किया गया होगा.

भारत तो दूर की बात है अमेरिका, रूस के वैज्ञानिक भी ऐसा बोलते हैं कि इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे मंदिर स्वर्ग से बना-बनाया ही उतारा गया हैं.

 वेदों में बौमास्त्र नामक एक अस्त्र लिखा गया गया है जो शायद इस तरह के निर्माण को कर सकता था. "

इस मंदिर के निर्माण में 40 हजार टन भारी पत्थर का निर्माण किया गया है तब जाकर 90 फीट ऊँचा मंदिर बना है.

वहीँ इस मंदिर को बनाने में कुछ 7000 लोगों ने काम किया है और 150 साल इस मंदिर को बनाने में लगे हैं.

औरंगाबाद का यह शिव मंदिर इतना शक्तिशाली बताया जाता है कि यहाँ कई तरह की बिमारियों का ईलाज शिव के दर्शन मात्र से ही खत्म हो जाते हैं ऐसा बताया जाता है.

वहीँ मंदिर में कई रहस्मयी गुफाएं हैं जहाँ कहते हैं कि शिव से जुड़े कई राज इन गुफाओं में हैं लेकिन आज इनको बंद कर रखा है।..


परम कृपालु शिवपिता की अमी दृष्टि से सर्व जगत स्वस्थ और अरोग्यमय बने यही प्रार्थना सह अस्तु ..श्री मात्रेय नम


Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>