वह संत थी, योद्धा थी, विचारक थी, कार्यकर्ता थी
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सिमोन वेल (1909-43) वामपंथी गतिविधियों से जुड़ी 20 वीं सदी की प्रख्यात राजनीतिक कार्यकर्ता और विचारक। दूसरे महायुद्ध के दौरान उन्होंने फासीवाद के ख़िलाफ़ फ्रेंच प्रतिरोध दस्ते में काम किया और उनके निधन के बाद उनके लेखन का फ्रेंच और अंग्रेजी सामाजिक विचारों पर गहरा असर पड़ा है।'वेटिंग फ़ॉर गॉड','ग्रेविटी एन्ड ग्रेस' , 'द नीड फ़ॉर रूट्स'मशहूर किताबें। सिमोन का व्यक्तित्व बीसवीं सदी के वामपंथी बौद्धिको के बीच विलक्षण ही कहा जाएगा की उन्होंने मज़दूर चेतना, फासीवाद के प्रतिरोध के संघर्ष , वंचितों और शोषितों के प्रति गहरी संलग्नता और आध्यात्मिक चेतना को एक दूसरे से जोड़ दिया। एक साधन संपन्न घर में जन्म लेकर और पेशे से शिक्षक होकर भी वे फैक्टरी कामगारों के बीच रहीं, उन जैसा ही जीवन जिया, यातना,अपमान , अनिश्चितता, अभाव, भूख, शोषण और निर्धनता के साथ अपने निजी ज़िन्दगी को प्रत्यक्ष रूप से जोड़कर देखा। भूखे रहकर या बहुत अल्प भोजन करते हुए अपनी दिनचर्या को संयोजित करना उन्होंने बचपन से सीख लिया था । 1933 में जर्मनी में हिटलर के सत्ता में आने के बाद सिमोन वेल की गतिविधियां वामपंथी चेतना से जुड़े भूमिगत कार्यकर्ताओं के बीच अधिकाधिक बढ़ती गईं।1936 में जनरल फ्रैंको के तानाशाही के विरुद्ध छिड़े स्पेन के गृह युध्द में वे अग्रिम दस्ते की जुझारू पत्रकार के रूप में कार्यरत रहीं।उनकी पुस्तक 'ऑपरेशन इन लिबर्टी' के अधिकांश निबंध भी इन्हीं दिनों प्रकाश में आए जो आज संसार भर में चर्चित हैं।भूख और अभाव का उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा।24 अगस्त 1943 को 34 वर्ष की आयु में टीबी सेनेटोरियम में उनका निधन हुआ।
उनके निधन पर प्रख्यात कवि टी.एस. इलियट ने लिखा "वे चाहतीं तो संत बन सकती थीं। लेकिन उन्होंने एक दूसरी राह चुनी ।हर सम्भावित संत एक मुश्किल व्यक्ति ही होता है। हम जैसे लेखकों की तुलना मे उन्होंने एक कठिन जीवन चुना, उनकी दुश्वारियां ज़्यादा थीं , और हममें से किसी से भी ताकत भी उनके भीतर ज़्यादा थी।उनके भीतर अपने वजूद की एक अतिमानवीय विनम्रता भी थी और एक अविश्वनीय ज़िद भी। "