ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) पर कोस मीनारों व सर्वे मीनार का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है- अशोक बालियान चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
हमे अपने ग्रह जनपद मुज़फ्फरनगर में मंसूरपुर के पास बेगराजपुर इण्डस्ट्रीयल एरिया में पुरानी मीनार पर जाने का अवसर मिला। इस मीनार के पास जनपद मुज़फ़्फ़रनगर निवासी श्री नीरज केडिया की फ़ैक्टरी है और उन्होंने हमें इसके बारे में बताया था।यह मीनार लगभग 30 फीट से भी अधिक ऊंची है और ईंटों और चूने के साथ बनी हुई है। इसके निर्माण में लाखोरी ईंटों का प्रयोग किया गया है। इस मार्ग पर मौर्य काल से ही कोस मीनारें बनाने की परंपरा शुरू हुई थी, लेकिन शेर शाह सूरी काल व मुगल काल में इनकी संख्या में खूब वृद्धि हुई। ये मीनारें सौदागरों-मुसाफिरों की आरामगाहों के हिसाब से भी तैयार की गईं थी और उनके करीब सरायें बनवाई गईं थी।
उस काल में हर कोस (करीब 3.2 किलोमीटर) पर एक मीनार बनाई जाती थी। करीब 30 फीट ऊंची इन मीनारों से राहगीर स्थान की दूरी का अंदाजा लगाते थे। इनका एक अहम काम डाक व्यवस्था में मदद करना भी था। हर कोस मीनार पर एक सिपाही घोड़े के साथ मौजूद रहता था। यह सिपाही राज संदेश अगली मीनार तक ले जाता और फिर वहां से अगला उसे आगे ले जाता था। ये समय का फेर है, अब कोस मीनारें खुद पनाह की मोहताज हो गई हैं।
ग्रैंड ट्रंक रोड के नाम से मशहूर यह मार्ग, मौर्य साम्राज्य के दौरान अस्तित्व में था और प्राचीन काल में इसे उत्तरापथ कहा जाता था। ये गंगा के किनारे बसे नगरों को, पंजाब से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई अफ़ग़ानिस्तान के केंद्र तक जाती थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनानी राजनयिक, मेगस्थनीज की आज्ञा से इस राजमार्ग के रखरखाव के लिए अपने सैनिकों को अलग-अलग जगहों पर तैनात किया था। इस मार्ग का पुनःनिर्माण शेर शाह सूरी द्वारा किया गया था। और इसके बाद 17वीं वीं सदी में इस मार्ग का ब्रिटिश शासकों ने फिर से पुनर्निर्माण किया और इसका नाम बदलकर ग्रैंड ट्रंक रोड कर दिया था। उन्होंने भी सर्वे मीनारों का निर्माण कराया था। इन मीनारों से भूमि की नपाई होती थी।
राष्ट्रीय राजमार्ग से हट कर बेगराजपुर इण्डस्ट्रीयल एरिया में एक छोटा सा स्तूप जैसी सर्वे मीनार होने की बात से ही यहाँ के अधिकतर लोग अनजान है, क्योकि यहाँ कोई साईंन बोर्ड आदि भी नहीं लगा हुआ है, इसलिए बिना जानकारी के यहाँ कोई जाता भी नही है। भारत में ग्रैंड ट्रंक रोड को ही आधुनिक राष्ट्रीय राजमार्ग में परिवर्तित कर दिया गया था। आज जी.टी. रोड 2,500 किलोमीटर (लगभग 1,600 मील) से अधिक लंबा है।
जनपद मुज़फ्फरनगर का इतिहास बहुत पुराना है। मुज़फ्फरनगर सदर तहसील के मांडी नाम के गाँव में हड़प्पा कालीन सभ्यता के पुख्ता अवशेष मिले हैं। हडप्पा सभ्यता से आए हुए लोगों ने यहां भी बस्तियां बसाकर रहना शुरू कर दिया था। जनपद मुज़फ्फरनगर सन 1824 से पहले सहारनपुर जिले का हिस्सा था। जनपद सहारनपुर सन 1803 में मराठों से अंग्रेजों के पास चला गया था। गांव सौरम में स्थित 17 वी शताब्दी मे बनी सर्वखाप पंचायत की पक्की चौपाल अनेकों एतिहासिक निर्णयो की साक्षी बनी है।
हमारी संस्था पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन चाहती हैं कि इस धरोहर को सुरक्षा मिले, इन पर रोशनी हो, रंग-रोगन हो, ताकि ऐतिहासिक धरोहर को देखकर नई पीढ़ी को इतिहास की जानकारी मिले।जनपद मुज़फ्फरनगर ऐसी कई अन्य एतिहासिक धरोहर भी मिल सकती हैं, इसलिए हमारी खोज जारी रहेगी।