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लुटियन जैसे राज रावल / विवेक शुक्ला

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 लुटियन जैसे राज रावल / विवेक शुक्ला 

राज रावल का राजधानी में 1961 से चल रहा सफर जारी है। इन छह दशकों के दौरान 86 साल के चोटी के आर्किटेक्ट ने  एक से बढ़कर एक इमारतें डिजाइन करके अपने प्रयोगधर्मी होने के प्रमाण दिए। आजकल जब नई संसद भवन के निर्माण का काम जोर पकड़ चुका है तब उससे सटी संसद लाइब्रेयरी की इमारत सुरक्षित खड़ी है। 


उसे राज रावल ने ही डिजाइन किया था। इसका डिजाइन अप्रतिम है। खंभों पर खड़ी लाइब्रेयरी की छत पर गुबंद हैं। इसे एडवर्ड लुटियन ने देखा होता तो वे भी गर्व करते। इसमें भव्यता और गरिमा है। नई संसद का भी हिस्सा रहेगी राज रावल की डिजाइन की लाइब्रेयरी।


बेशक, स्वतंत्र भारत की पहली पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ आर्किटेक्टों में से एक हैं राज रावल। उन्होंने संभवत: पहली बार तब अपने काम से कला की दुनिया का ध्यान खींचा था जब उन्होंने प्रगति मैदान में  हॉल ऑफ नेशन और नेहरु सेंटर को डिजाइन तैयार किया था। ये दोनों अपने आप में आइकॉनिक थे।


 ये 1970 के दशक की बातें हैं। पर इन दोनों को प्रगति मैदान को नए सिरे से विकसित करने के क्रम में जमींदोज कर दिया गया। ये राजधानी की आधुनिक धरोहर के सबसे सशक्त प्रतीक थे।इन पर हथौड़ा चलने से आर्किटेक्ट बिरादरी तथा कला प्रेर्मियों  का दिल टूट गया था। जब ये बने थे तब भारत तीसरी दुनिया का निर्धन देश था। 

तब हम अपनी स्वाधीनता की 25 वीं वर्षगांठ  मना रहे थे। इन दोनों केडिजाइन न्यूयार्क और पेरिस के कला संग्रहालयों में प्रदर्शित हैं। न्यूयार्क के मॉडर्न आर्ट संग्रलाय के क्यूरेटर को जब मालूम चला कि इन्हें नेस्तानाबूत किया जा रहा है तो उन्होंने भारत सरकार से आग्रह किया  था कि इस फैसले पर फिर विचार हो। पर पत्थर दिल लोगों को कला और संस्कृति से क्या लेना-देना।


राज रावल को हर बार कुछ नया करने की जिद्ध रहती है। उनका हर बार काम कुछ अलग मिलता है। उसमें रचनात्मकता होती है। अब एशियाड विलेज को ही लें। यह निर्माण के चालीस वर्षो के बाद भी बिलकुल नए आधुनिक हाउसिंग कॉम्प्लेक्स से इक्कीस ही लगता है। 

इधर एशियाड-82 में भाग लेने वाले खिलाड़ियों और अन्य लोगों को ठहराया गया था। उन्होंने मालूम था कि खेलों के बाद एशियाड विलेज का किसी हाउसिंग कॉम्प्लेक्स  के रूप में इस्तेमाल होगा। 


उन्होंने इसके डिजाइन पर काम करते हुए राजधानी की गर्म जलवायु को जेहन में रखा और लैंड स्केपिंग पर बहुत फोकस दिया। उनकी इमारतों के चप्पे-चप्पे पर हरियाली मिलेगी। गर्मी के मौसम में हरियाली निश्चित रूप से राहत देती है। वे खिड़कियों के लिए बहुत बड़ा सा स्पेस रखते हैं। राज रावल इस तरह का डिजाइन देकर अपनी इमारतों को सूरज की रोशनी से रोशन रखते हैं। 

एशियाड विलेज के हरेक ब्लाक में चार मंजिल हैं और उसमें तीन अपार्टमेंट हैं। इसका डिजाइन 20 सदी के जयपुर और जैसलमेर शहरों के किसी मोहल्ले से प्रेरित है। वे अपने को पूरी तरह से शहरी डिजाइनर मानते हैं। उनके काम में भारत के शहरों की झलक मिलती है। 

इस लिहाज से वे अपने समकालीन और मित्र चार्ल्स कुरिया से हटकर हैं जिनके कई काम में ग्रामीण भारत की महक को महसूस किया जा सकता है। 


राज रावल ने ही दिल्ली में  वर्ल्ड बैंक, ब्रिटिश उच्चायोग हाउसिंग , डीडीए की शेख सराय कॉलोनी, जैपनीज साफ्टवेयर सेंटर (नोएडा), इंजीनियर्स इंडिया हाउस जैसी अनेक अति महत्वपूर्ण इमारतों का डिजाइन बनाया हैं। इनका मिजाज अलग-अलग है। ये हाउसिंग प्रोजेक्ट से लेकर हाईटेक दफ्तर हैं। इससे समझा जा सकता है कि राज रावल को विविध प्रोजेक्ट  पर काम करने में आनंद आता है। 


अब संसद और सेंट्रल विस्टा को नए सिरे से विकसित किया जा रहा है। क्यों सरकार राज रावल जैसे मनीषी को भी इस विशाल और चुनौतीपूर्ण काम से जोड़ती? पर राज रावल किसी प्रोजेक्ट से जुड़ते तब ही जब उन्हें पूरी स्वतंत्रता मिलती है।

Vivek Shukla 

नव भारत टाइम्स में 

 1 अप्रैल 2021 को छपे लेख के अंश।


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