भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहेब फाल्के ने 1910 में तब के बंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में ‘द लाइफ ऑफ क्राइ स्ट’ विदेशी फिल्म देखी वो क्रिसमस का दिन था ......
थियेटर में बैठ कर फिल्म देख रहे घुंडीराज गोविंद फाल्के ने तालियां पीटते हुए निश्चय किया कि वो भी ईसा मसीह की तरह भारतीय धार्मिक और पौराणिक चरित्रों को रूपहले पर्दे पर जीवंत करेंगे ....तब वो भारत सरकार के पुरातत्व विभाग में फोटोग्राफर थे और उन्होंने मात्र तीन वर्षो बाद ही 1913 में मूक फिल्म'राजा हरीशचंद्र 'बना डाली ......लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं हुआ भारत में फिल्म निर्माण को स्थापित करने में फाल्के साहब का पूरा परिवार जी जान से लगा दादा साहब फाल्के ने महज 20-25 हजार की लागत से इसकी शुरुआत की थी उस वक्त इतनी रकम भी एक बड़ी रकम होती थी इसे जुटाने के लिए फाल्के साहब को अपने एक दोस्त से कर्ज लेना पड़ा था और अपनी संपत्ति एक साहूकार के पास गिरवी रखनी पड़ी थी ......गहने बेचकर कई बार उनकी पत्नी ने उनकी मदद की थी .....उस वक्त फिल्मों में महिलाएं काम नहीं करना चाहती थी उन्होने रेड लाइट एरिया तक नायिका के लिए खाक छानी लेकिन बात नहीं बनी एक पुरुष ने ही नायिकाओं के किरदार को निभाया विश्वयुद्ध के दौरान दादा साहब फाल्के के सामने एक वक्त ऐसा आया जब वो पाई-पाई को मोहताज हो गए थे इस दौरान शायद ही वो किसी दिन तीन घंटे से ज्यादा सो पाए थे इसका असर यह हुआ कि वो करीब-करीब अंधे हो गए थे लेकिन उनके डॉक्टर के उपचार और तीन-चार चश्मों की मदद से वो इस लायक हो पाए कि फिल्म बनाने को लेकर अपने जुनून में फिर से जुट पाए
भारत सरकार की ओर से सिनेमा फिल्मो में उल्लेखनीय योगदान के लिए सिनेमा का सबसे बड़ा अवार्ड 'दादा साहब फाल्के 'के नाम पर दिया जाता है लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है की आज भारतीय सिनेमा की शुरुआत करने वाले इस शख्स की पहचान सिर्फ आज एक अवॉर्ड के नाम तक सिमित रह गई है
आज भारतीय सिनेमा के प्रथम पितामाह 'घुंडीराज गोविंद फाल्के 'की 77 वी पुण्य तिथि पर शत-शत नमन ...🌷🌷🌷
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Dhundiraj Govind Phalke
Died: 16 February 1944
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पवन मेहरा
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