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आधार कार्ड और श्मशान घाट- कुछ नोट्स / रवीश कुमार

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 आधार कार्ड और श्मशान घाट- कुछ नोट्स / रवीश कुमार 

 

हिंडन श्मशान से निकलने पर रास्ता भटक गया। गूगल मैप की अनाउंसर की बात समझने के लिए कार धीमी कर ली। ठहर सी गई है। हिंडन नदी के उस पर श्मशान में जलती चिताएं नज़र आ रही हैं। मैं नदी के दूसरी तरफ हूं। झुरमुट में पति-पत्नी अपने बेटे के साथ किसी चिता को प्रणाम कर रहे हैं और हाथों को हल्का सा हिलाते हुए गुडबाय। उनका छोटा सा बेटा भी साथ में है। वे श्मशान तक आए हैं लेकिन चिता के करीब नहीं जा सके हैं। मैंने ठीक उनके पीछे अपनी कार रोक दी है और उस पार जलती चिताओं को देखने लगा हूं। इतनी चिताएं हैं कि कोई कैसे जान गया है कि कौन सी चिता उसके परिजन की है। शायद श्मशान के भीतर से किसी ने फोन पर बताया है। कोरोना के संक्रमण के ख़तरे ने इस परिवार को यहां तक ले आया है। कितना प्यार रहा होगा जाने वाले के प्रति। तमाम भय के बाद भी तीनों ख़ुद को यहां तक लाने से रोक नहीं सके हैं। यह दृश्य ऐसे दर्ज हो गई है कि जब तब याद आती रहती है। दर्ज तो यही होगा कि कोविड के पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार में दस लोग से अधिक नहीं आए हैं। यह तीन लोग मरने वालों की तरह सरकारी आंकड़ों से बाहर हैं। अलविदा कहने का फर्ज़ अदा कर रहे हैं। 


थोड़ी देर पहले श्मशान वाले ने बताया है कि एक दिन एक लड़की आई। अपनी मां का शव लेकर। अकेले। यहां तक लाकर हाथ जोड़ लिया। बोली कि नौकरी चली गई है। जो पैसा था इलाज में लगा दिया। अब इसके बाद के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैंं। मेरे पिता भी इस दुनिया में नहीं है। श्मशान वाले लड़के ने कहा कि हमने एक पैसा नहीं लिया। कुछ लोग स्कूटी से आए हैं। पी पी ई किट पहन कर। दो औरतें आई हैं, जो चिता से दूर खड़ी की गई हैं। श्मशान वाले से मैं बात करने लगता हूं। उसकी पहली ही लाइन छाती में धंस गई।” दस साल में जितनी बॉडी नहीं जलाई उतनी एक महीने में जला दी है।” यह कह कर वह अपनी दो हथेलियां दिखाने लगता है। सैनिटाइज़र से हाथ धोते-धोते खराब हो गया। परिवार के लोग इतने सदमे में हैं कि लकड़ी रखने का होश नहीं रहता। हमीं लोग रखने लग जाते हैं।


श्मशान में भी कोविड के नियम हैं। मैं जिनके अंतिम संस्कार में गया हूं, उन्हें कोविड हुआ था लेकिन वेंटिलेटर पर इतने दिन रहीं कि उस दौरान कोविड खत्म हो गया। कोविड की मार ख़त्म नहीं हुई। श्मशान में बताया गया कि इनका संस्कार ग़ैर कोविड घाट पर होगा। विद्युत शवदाह गृह में केवल कोविड के मरीज़ों के ही पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार होगा। समझ आता है कि कोविड और नॉन कोविड मरीज़ों की गिनती में कितना झोल है। जो मरा तो है कोविड के होने से लेकिन मरने के एक दिन पहले निगेटिव हो गया तो नॉन कोविड में गिना जा रहा है। 


श्मशान में जिसे पर्ची देने का काम दिया गया है वह इस वक्त ख़ुद को कलक्टर समझ रहा है। किसी से ठीक से बात नहीं कर रहा है। इस बात पर स्पष्टीकरण लेने के लिए वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों की तरफ बढ़ता हूं तो ऊंची आवाज़ में रोक देता है। कुर्सी पर बैठे पुलिस के लोग देखते तक नहीं कि कोई नज़दीक आकर क्या कहना चाहता है। शायद उस जगह पर बैठे बैठे उनका भी दिमाग़ सुन्न हो गया है। वर्दी के भीतर वे इंसान ही तो हैं। बिना वर्दी के मैं भी तो इंसान हूं और वो बच्चा जिसकी मां नहीं रही है। प्रशासन के किसी अधिकारी से फोन पर बात होती है। काफी अच्छे से बात करते हैं। इस बात का ख़्याल रखते हुए कि ठेस न पहुंचे। मगर वहां मौजूूद कर्मचारी अधिकारी मुद्रा में है। पीछे से आवाज़ देता रहा कि आपका ही नाम फलाना है। मुड़ कर नहीं देखता है। 


श्मशान में आधार कार्ड की एक फोटी कॉपी मांगी गई है। अस्पताल से डिस्चार्ज समरी की फोटो कॉपी भी मांगी गई है, जिस पर मौत की सूचना छपी है। जिनकी मौत घर पर हुई होगी उनके लिए अलग नियम होगा। मुझे जानकारी नहीं है। श्मशान के लोग उस डिस्चार्ज समरी का क्या करेंगे जिसमें मौत की तारीख़ लिखी है। क्या कभी कोई उसे पढ़ेगा या कुछ समय के बाद उन काग़ज़ों को जला दिया जाएगा?  अंतिम संस्कार के लिए गंगा जल और चंदन की छोटी लकड़ी के अलावा आधार कार्ड अनिवार्य हो गया है। आधार नंबर लेकर भी इंसान निराधार हो चुका है।


श्मशान वाले ने पहले ही कह दिया है कि आधार कार्ड की कॉपी चाहिए। मेरा प्रिंटर ख़राब है। मेरे पड़ोस की एक लड़की को आधार कार्ड फार्वड किया जा रहा है। वह अपने प्रिंटर निकाल कर दरवाज़े के बाहर आधार कार्ड की कापी छोड़ गई। उसे प्रिंट आउट लेते वक्त कैसा लगा होगा, इस पर बात ही नहीं हुई। जो सरकार मरने का सही आंकड़ा नहीं देती है वह मरने वालों का आधार कार्ड की फोटोकॉपी श्मशान में जमा करवा रही है। एक दिन सरकार हर किसी के शरीर में आधार नंबर गोदवा देगी ताकि मरने पर फोटो कॉपी लेने की ज़रूरत न पड़े। मैं सोच रहा हूं कि जिस घर में किसी की मौत हुई हो, उसे अगर आधार कार्ड न मिल पाए तो क्या होगा। ऐसे हालात में आधार कार्ड खोजना क्या आसान होगा? 


बहुत दिनों से सोच रहा था कि इसे लिखूं या न लिखूं। लोग अपने करीबी के मर जाने पर श्रद्धांजलियों में बेईमानी कर रहे हैं। पूरी सूचना ग़ायब कर दे रहे हैं कि जो मरा है क्या तड़पा तड़पा कर मारा गया है, आक्सीज़न मिला कि नहीं, डॉक्टर देखने आया कि नहीं, सरकारी अस्पताल में ज़मीन पर रख दिया था या कहां रखा था, क्या उसे इलाज मिला था, क्या समय पर दवा मिली थी? बहुत कम श्रद्धांजलियों में इस तरह की सूचना दिखाई देती है।बीते दिनों की एक हंसती तस्वीर लगा कर लोग जाने वालो को मिस कर रहे हैं। कैसे गया है, उसे ग़ायब कर दे रहे हैं। बेईमान लोग। क्या इस दौर में इन सूचनाओं के बग़ैर श्रद्धांजलियां पूरी हो सकती हैं?


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