उमेश चतुर्वेदी-
साल 2002 की गर्मियां…तारीख, महीना ठीक से याद नहीं..हालांकि शोध करेंगे तो पता चल ही जाएगा..हां, दिन शनिवार था.. तब दैनिक भास्कर के दिल्ली ब्यूरो में था…मेरी राजनीतिक बीट में जनता दल-यू पार्टी भी थी..तब जनता दल यू के प्रवक्ता राष्ट्रीय महासचिव मोहन प्रकाश होते थे।
उन दिनों दिल्ली के मौलाना आजाद रोड पर जनता दल यू को एक बंगले का आधा हिस्सा अलॉट हुआ था..12 जनपथ के ठीक सामने चौराहे के बगल में..वहीं जनता दल यू की प्रेस कांफ्रेंस होती, नेताओं से मिलन होता था.
तब इतनी तनख्वाह मिलती थी कि बस से भी रोजाना बीट कवर करने नहीं जा सकते थे..कार या स्कूटर की बात ही छोड़िए..हिंदी के दो-चार राष्ट्रीयनुमा अखबारों को छोड़ दीजिए तो बाकी हिंदी अखबारों के पत्रकारों की यही हालत थी.
लेकिन हिंदी वालों की तुलना में तब भारतीय भाषाओं खासकर बांग्ला, मलयालम, तेलुगू, कन्नड़, तमिल और तो और असमिया अखबारों के पत्रकारों की भी स्थिति हिंदी वालों की तुलना में अच्छी होती थी. इसलिए उन दिनों के चलन के हिसाब से वे लोग मारूति 800 कार का खर्च उठा लेते थे..कुछ को तो दफ्तरों से ही कार मिली थी.
तब समान बीट वाले पत्रकारों के ग्रुप बन जाते थे..अब भी बनते हैं..तो हर ग्रुप में एकाध बांग्ला, मलयालम का पत्रकार होता ही था. कहीं बीट पर जाना होता था तो उनकी कार में हम वंचित समुदाय के पत्रकार भी समायोजित हो जाते थे..
बांग्ला का मशहूर अखबार है वर्तमान..आनंद बाजार पत्रिका के बाद वह दूसरे स्थान पर है..उसके उन दिनों विशेष संवाददाता थे अतनु भट्टाचार्य..बाद में ब्यूरो चीफ और राजनीतिक संपादक भी रहे…तकरीबन दो साल पहले असमय ही वे दुनिया छोड़ गए..
दफ्तर से मिली उनकी नीली कार अक्सर हम लोगों का सहारा बनती थी..तब जनता दल यू कवर करने वाले प्रमुख पत्रकारों, के वी प्रसाद, शुभाशीष मित्रा, अतनु भट्टाचार्य, राजकुमार पांडेय से अपना गहरा याराना था..यहां बता देना जरूरी है कि तब केवी प्रसाद जी द हिंदू में थे, अब द ट्रिब्यून के दिल्ली संपादक हैं..बिहारी-बंगलाभाषी शुभाशीष तब भी पीटीआई में थे और अब भी वहीं हैं..शायद वर्षों से लखनऊ ब्यूरो संभाल रहे हैं..(गलत होगा तो प्रसिद्ध पातकी जी सुधारेंगे)..और राजकुमार पांडेय इन दिनों टीवी 18 की वेबसाइट के रिपोर्टिंग कोऑर्डिनेटर हैं..
यह ग्रुप अक्सर साथ चलता था..कम से कम जनता दल-यू, समता पार्टी और समाजवादी पार्टी कवर करने के लिए.. तकरीबन सबकी बीट में ये दल थे..भले ही उस दौर के सत्ता समीकरण में वे विरोधी खेमे थे..
कई बार यह भी होता था कि खबर नहीं है तो मोहन प्रकाश के यहां शाम को पत्रकारों की बैठकी हो जाती थी..वे तुलसी दल वाली चाय पिलाते थे..उनसे बातचीत के दौरान कई बार खबरें निकल आती थीं..
तो उस दिन खबरों अपनी बीट पर खबरों का अकाल था तो राजकुमार पांडेय के अलावा हम चारों पहुंच गए जनता दल यू के दफ्तर..मोहन प्रकाश जी से गुफ्तगू शुरू हुई..उन्होंने तब के कार्यालय सेवक सुरेश को तुलसी वाली चाय बनाने का आदेश दिया..
तब मोबाइल चलन में नहीं था..कम ही लोगों के पास सेट थे.
बहरहाल उस दिन राष्ट्रपति भवन कवर करने वाले पीटीआई संवाददाता या तो छुट्टी पर थे या उनका ऑफ था..
पत्रकारिता के लोग तो जानते हैं, लेकिन छात्रों को जानना चाहिए कि एजेंसियों में बीट कवर करने वाले लोगों के लिंक पत्रकार भी होते हैं..यानी कोई हारी-बीमारी—मजबूरी आदि से छुट्टी पर हो तो उस दिन वह लिंक पत्रकार खबरों के संपर्क में रहे और एजेंसी खबरी कारोबार में पीछे न रहे..
तो राष्ट्रपति भवन कवर करने वाले पीटीआई पत्रकार के शुभाशीष ही लिंक रिपोर्टर थे..जब तक चाय बन रही थी..तब तक जनता दल के लैंडलाइन से शुभाशीष ने नितिन वाकणकर को फोन लगा दिया. सूचना सेवा के वरिष्ठ और बेहद शालीन अधिकारी नितिन इन दिनों महानिदेशक हैं..उन दिनों वे राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम क डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी होते थे..
शुभाशीष ने नितिन से फोन पर कहा कि फलां (बीट रिपोर्टर) छुट्टी पर हैं..कोई सूचना हो तो बता दो..
नितिन का जवाब था, कोई खास सूचना तो है नहीं, अलबत्ता अशोक हॉल में कुर्सियां लगाने का आदेश दे दिया गया है..
पत्रकार के लिए इतना ही क्लू काफी होता था.. तब तक चाय नहीं आई थी..
शुभाशीष ने पीटीआई दफ्तर में फोन लगाकर न्यूज एडिटर से कहा, अभी फ्लैश चलाओ, सोमवार को मंत्रिमंडल में फेरबदल के आसार Cabinet reshuffle expected at Monday तब तक मैं लौटकर पूरी खबर देता हूं..
यह सूचना देते ही चाय आ गई..मोहन प्रकाश से पूछा गया कि क्या जनता दल यू को कोई सूचना है इसकी? क्
या जनता दल यू से कोई मंत्री बनने वाला है ? उन दिनों झंझारपुर से जनता दल यू के सांसद देवेंद्र यादव विद्रोही रूख अख्तियार किए हुए थे..संसद में अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर भी बैठ गए थे..इसलिए हो सकता था कि उन्हें खुश करने के लिए मंत्री बना दिया जाए..वैसे संयुक्त मोर्चा सरकार में वे कैबिनेट मंत्री रह भी चुके थे..
उन दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र से शरद यादव की अदावत चल रही थी..
बहरहाल कोई क्लू नहीं मिला और हम लोग महज दस मिनट में ही संसद मार्ग और रफीमार्ग के अपने – अपने दफ्तर लौट आए.
दफ्तर लौटते ही संपादक आलोक मेहता का फरमान हुआ, तीसरे तल पर स्थित उनके सामने हाजिर हों..
उनके सामने टीवी चल रहा था..आजतक के उन दिनों के सुपर स्टार रिपोर्टर दीपक चौरसिया की फोनो प्लेट लगी थी..और वे मंत्रिमंडल में फेरबदल पर देश को जरूरी सूचनाएं दे रहे थे..जिसमें प्रमुख था कि शरद यादव और सत्यनारायण जटिया हटाए जा रहे हैं..
आलोक मेहता ने फिर चैनल बदला और स्टार न्यूज लगाया, जिस पर तब कंटेंट एनडीटीवी देता था..वहां अंग्रेजी में राजदीप सरदेसाई की फोनो प्लेट लगी थी और वे भी वही जानकारी दे रहे थे, जो दीपक अपने यहां उच्चरित कर रहे थे..
तीसरा प्रमुख चैनल जी था, आलोक मेहता ने उसे भी दिखाया और तकरीबन डांटते लहजे में पूछ बैठे, आप जनता दल कवर करते हैं और आपके पास यह जानकारी नहीं..?
मैंने उन्हें इस समाचार की पृष्ठभूमि बताई..लेकिन उसका उन पर कोई असर नहीं हुआ..
संपादकों को अपने रिपोर्टरों से ज्यादा दूसरे के रिपोर्टरों पर ज्यादा भरोसा होता है..कुछ वैसे ही, जैसे लोगों को अपनी टोकरी से ज्यादा सामने वाले की टोकरी के आम ज्यादा बेहतर लगते हैं..
फिर पत्रकारिता में एक भेड़चाल भी है.. जिसमें डूबना हर पत्रकारिता संस्थान की मजबूरी है..ऐसे में आलोक मेहता का फरमान नहीं आता तो ही आश्चर्य होता…उन्होंने आदेश दिया, फौरन शरद यादव से बातचीत करके स्टोरी लिखिए..
शरद तब दिल्ली में नहीं थे..उनके साले योगेश उनके ओएसडी होते थे और उनका लहजा टालने वाला ही होता था..हां, तब शरद यादव के एक ओएसडी सूचना सेवा के विनम्र और व्यवहार कुशल अफसर संजय श्रीवास्तव भी थे.. इलाहाबादी संजय को क्रूर कोरोना ने 27 अप्रैल को हमसे छीन लिया..
संजय जी से संपर्क करने में सफल रहा..तो उन्होंने बताया कि शरद यादव आज ही मुंबई गए हैं मंत्रालय की किसी बैठक के लिए..वहां के एक अतिथि गृह का संजय जी ने नंबर देकर बताया कि आधे घंटे में शरद जी वहां पहुंचेंगे तब बात हो सकेगी..
संजय जी के चलते शरद जी से बात हुई और उन्होंने मंत्रिमंडल से खुद के बाहर होने की जानकारी से स्पष्ट इनकार कर दिया..
शरद यादव तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के महत्वपूर्ण नेता थे, ऐसा कैसे हो सकता था कि उन्हें बिना जानकारी दिए मंत्रिमंडल से हटा दिया जाता..
सत्यनारायण जटिया से उन दिनों प्रधानमंत्री नाराज चल रहे थे..इसलिए उनके मंत्रिमंडल से हटाए जाने की अटकलें लग रही थीं..
मैंने खबर लिखी कि मंत्रिमंडल फेरबदल की अटकलें, शरद यादव का कैबिनेट से हटाए जाने की जानकारी से इनकार…
जनता दल यू कवर करने वाले तमाम अखबारी पत्रकारों की खबरें कुछ ऐसी ही थी..
दो दिन बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल तो हुआ, लेकिन न तो जटिया हटाए गए और न ही शरद यादव..अलबत्ता कुछ मंत्री जरूर शामिल किए गए थे..
अब भी आप नहीं समझे तो उस खबर का मूल स्रोत समझ लीजिए.
शुभाशीष ने राष्ट्रपति भवन की गतिविधि को लेकर पीटीआई से जो फ्लैश दिया था, उसके आधार पर सारे टेलीविजन पत्रकार खबर कम, अपने हिसाब से अंग्रेजी में जिसे Speculation कहते हैं, वही जाहिर कर रहे थे..
हर टीवी चैनल और अखबार में पीटीआई-यूएनआई की सर्विस है…
टीवी हो या अखबार, तमाम समाचारों की बुनियाद इन एजेंसियों की दी सूचनाएं ही होती हैं.. इसी बुनियाद पर आगे की चीजें रची जाती हैं..हां, अखबार में वक्त होता है और स्पेस भी..लिहाजा वहां के रिपोर्टर पूरी पड़ताल कर लेते हैं और सच के नजदीक पहुंचने की कोशिश करते हैं, जबकि भागमभाग का टीवी मीडिया अपने तमाशा कल्चर में कथित तात्कालिकता को भुनाने की कोशिश करता है…आप अक्सर देखेंगे कि वह समाचारों में ऐसे ही चूकता है…फिर भी चाक्षुष चीजें हमें ज्यादा पसंद आती हैं. बतौर दर्शक हम ऐसे तमाम तथ्यों को जानते हुए भी विजुअल के मोह में लगातार डूबते रहते हैं..
हाल की कुछ घटनाओं की कथित सूत्रों के हवाले से की गई रिपोर्टिंग भी कुछ इसी तरह की रही है…