जिन्ना, 7 अगस्त,1947, सफदरजंग एयरपोर्ट
7 अगस्त,1947। दिल्ली का आसमान साफ नीला दिखाई दे रहा था। मोहम्मद अली जिन्ना ने सफदरजंग एयरपोर्ट पर विमान के भीतर जाने से पहले दिल्ली के आसमान को कुछ पलों के लिए देखा। शायद वे सोच रहे होंगे किअब वे इस शहर में फिर कभी नहीं आएंगे। वे अपनी छोटी बहन फातिमा जिन्ना, एडीसीसैयद एहसान और बाकी करीबी स्टाफ के साथ कराची के लिए रवाना हो रहे थे!
दरअसल जिन्ना का पाकिस्तान कुछ दिनों के बाद दुनिया के नक्शे में आ रहा था। वे पिछलेआठ वषों से दिल्ली में अपने शहर बंबई ( मुंबई) से ज्यादा रहे थे। इसलिए वे कुछहदतक दिल्ली वाले हो चुके थे। उस दिन उन्होंने शेरवानी सूट पहना हुआ था तपती हुई गर्मी और उमस के बावजूद। हालांकि वे आमतौर पर सूट-बूट में ही रहना पसंदकरते थे। वे अपने 10 औरंगजेब रोड के घर को भी हमेशा के लिए छोड़ के निकल रहे थे। वे दस मिनट में अपने घर से एयरपोर्ट पहुंच गए होंगे!
कभी दंगे नहीं रूकवाए जिन्ना ने दिल्ली में
जिन्ना जब दिल्ली से जा रहे थे तब ही यहां और आसपास के शहरों में सांप्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। पर उन्होंने कभी कहीं जाकर दंगा रूकवाने की चेष्टा नहीं की। पहाड़गंज और करोलबाग जैसे इलाकों में दंगे भड़क रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान में जाकर भी ये काम नहीं किया। बहरहाल, उन्होंने 1939 में दिल्ली में अपना आशियानाबनाने का फैसला कर लिया था। क्योंकि आल इंडिया मुस्लिम लीग की दिल्ली में गतिविधियां बढ़ गई थी। अब होटलों में रहने से बात नहीं बनने वालीथी। वे आमतौर पर इंपीरियल होटल में हीठहकते थे। इसलिए उनके लिए एक अदद बंगले की तलाश चालू हुई। सिविल लाइंस में फ्लैगस्टाफ रोड और औरंगजेब रोड में बंगले देखे गए। अंत में 10 औरंगजेब रोड (अब
एपीजे अब्दुल कलाम रोड) का बंगला खरीदा गया। ये करीब डेढ़ एकड़ में बना है। पाकिस्तानजाने से पहले जिन्ना ने अपना बंगला करीब ढ़ाई लाख रुपये में बेचा था रामकृष्ण डालमियाको। उस सौदे के पेपर डालमिया जी के सिकंदरा रोड वाले घर में देखे जा सकते हैं!
जिन्ना अपने मुंबई के मालाबार हिल के बंगले को बेच नहीं सके थे।डालमिया ने सन 1964 में उस बंगले को नीदरलैंड सरकार को बेच दिया था। और तब से
इसका इस्तेमाल नीदरलैंड के नई दिल्ली में राजदूत के आवास के रूप में हो रहाहै। इसमें 5 बैड रूम, विशाल ड्राइंग रूम, मीटिंग रूम,बार वगैरह है।अब येतो सबको मालूम है कि जिन्ना शराब पीने से परहेज नहीं करते थे।
जिन्ना,दि डॉन और दरियागंज
मोहम्मद अली जिन्ना ने सन 1941 में राजधानी से अपनी पार्टी का मुखपत्र 'दि डॉन'का प्रकाशन चालू किया। ये दरियागंज के छत्ता लाल मियां इलाके से प्रकाशित होता था। ये जगह दरिया गंज टेलीफोन एक्सचेंज के लगभग पीछे है। दि डॉन के पहले संपादक बने पोथेन जोसेफ। वे मलयाली थे। पर पोथेन जोसेफ जिन्ना के मन का अखबार नहीं निकाल सके।
तब जिन्ना ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पढ़े अल्ताफ हुसैन को अपने अखबार का संपादक बनाया। वे कांग्रेस की नीतियों और कांग्रेसी नेताओं पर अपनी लेखनी से कठोर प्रहार करने लगे। यही जिन्ना चाहते थे। उन्होंने जिन्ना के मन-मुताबिक अखबार निकालना चालू कर दिया।
दि डॉन आमतौर पर आठ पेज का निकलता था। कभी-कभी उसके पेज बढ़ भी जाते थे। इसमें जिन्ना के भाषण,बयान,कार्यक्रम, फोटो ही मुख्य रूप से छपते थे। एक दौर के दिल्ली के कद्दावर कांग्रेसी नेता मीर मुश्ताक अहमद साहब बताते थे कि दि डॉन कभी यहां काबहुत पढ़ा जाने वाला अखबार नहीं बन सका। उसमें यहां की जनता से जुड़े मसले नहीं छपते थे।
दि डॉन का कंटेंट जहरीला ही रहता था। चूंकि इसकी एक खास इमेज थी,इसलिए ये कभी भी बहुत नहीं बिका। इसमें विज्ञापन भी कम रहते थे। देश के बंटवारे के कुछ दिन पहले तक उसके अधिकतर स्टाफ के सदस्य पाकिस्तान शिफ्ट हो गए थे। दिल्ली में इसका प्रकाशन 11 अगस्त,1947 तक जारी रहा था। जहां तक अल्ताफ हुसैन की बात है, वे मूल रूप से बांग्लाभाषी थे। वे खुलना ( अब बांग्लादेश) के रहने वाले थे।
Vivek Shukla
The article was published in Navbharattimes and many other papers.
Jinnah and his sister, Fatima.
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