बेदी पाजी, 28/50, वेस्टपटेल नगर
अगर बिशन सिंह बेदी राजधानी में पटेल नगर के आस-पास से गुजर रहे होते हैं, तो वे कोशिश करते हैं कि वेस्ट पटेल नगर के मकान नंबर 28/ 50 को दूर से ही देख लें। उनकी इस घर से ढ़ेरों यादें जुड़ी हुई हैं। बेदी ने 1967 के अंत में अपने शहर अमृतसर से दिल्ली शिफ्ट किया था। वे तब 21 साल के थे। इस बीच, 54 साल का लंबा समय कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला। जाहिर है, अपने अमृत महोत्सव के मौके पर आज उनके जेहन में वे सारे किस्से, कहानियां, शख्सियतें वगैरह किसी फिल्म की तरह चल रहे होंगे जो उनके क्रिकेट जीवन का अंग रहे हैं।
नॉर्थेर्न पंजाब,दिल्ली,नॉर्थहेम्पटनशायर, भारत और विश्व एकादश की टीमों से खेलने वाले बेदी ने 1966 से 1979 तक टेस्ट क्रिकेट खेली। बेदी को हमेशा एक रंगीन पटका पहनने और बेबाकी से क्रिकेट पर अपने विचार रखने के लिए भी जाना जाता रहा ।
बेदी ने घरेलू क्रिकेट में उत्तरी पंजाब के लिए पहली बार तब खेला था जब वे केवल 15 साल के थे। 1968–69 में वे दिल्ली की तरफ से खेलने लगे थे और 1974–75 सत्र में उन्होनें रणजी ट्राफी के लिए रिकार्ड 64 विकेट लिए।
बेदी दिल्ली इसलिए शिफ्ट हुए थे क्योंकि उन्हें स्टेट बैंक में नौकरी मिल गई थी। दिल्ली में उनके पहले घर में उनके पास कभी-कभी उनकी बीबी जी (मां) या बहनें भी आ जातीं थीं। उनकी 12 बहनें हैं। वे अपने माता-पिता की 13 वीं संतान हैं। पटेल नगर में, उनके साथ ही उनके अमृतसर के दोस्त डॉ.बी.एस.रत्न भी रहते थे। बेदी पाजी की बीजी होतीं तो खाना वही पका देतीं। वे आटा गूंदने और पेड़े बनाने में एक दम परफेक्ट थे। इसलिए बीजी को दाल या सब्जी ही बनानी होती थी। डॉ रत्न घर में पोछा लगा देते थे। बेदी पाजी के पुराने दोस्तों को पता है कि वे होटल या रेस्तरां में जाकर खाना खाने वालों की प्रजाति से संबंध नहीं रखते। वे फूडी नहीं हैं। उन्हें घर का बना ही खाना रास आता है। यहां आते ही बेदी ने एक स्कूटर ले लिया था। उससे ही संसद मार्ग स्थित अपने स्टेट बैंक के दफ्तर आते-जाते। डीटीसी बस से भी कभी-कभी सफर कर लिया करते थे। उनके पैर हमेशा जमीन पर रहे।
बिशन सिंह बेदी से बात कीजिए तो वे अपने साथी स्पिनरों इरापल्ली प्रसन्ना, एस. चंद्रशेखर और वेंकट राघवन को भी चर्चा में ले आते हैं। वे मानते हैं कि उनकी या भारत के सबसे बेहतरीन स्पिनरों को लेकर बात या बहस होगी तो उसे समग्रता तब ही मिलेगी जब चारों का उल्लेख होगा। बेदी अपने साथियों को भूलने या नजरअंदाज करने वालों में से नहीं हैं। भारतीय क्रिकेट में उनके कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विराट कोहली उनके सार्वजनिक रूप से चरण स्पर्श करते हैं। परिश्रम, साधना और पक्के इरादे के मिलकर बनते हैं बिशन सिंह बेदी।
बेदी गेंद को फ्लाइट कराने में लाजवाब थे। बेदी पूरे दिन लय और संतुलन के साथ गेंदबाजी कर सकते थे। ने बेजान पिचों पर भी गेंदों को घुमाने की क्षमता रखते थे। बेदी किसी से मित्रता करते हैं तो वे जीवनभर की होती है। फिर उसके सुख-दुख का हिस्सा बनते हैं। मित्र को संकट में मझधार में नहीं छोड़ते। बेदी के बाद दिल्ली के कप्तान रहे वेंकट सुंदरम भी उनके शुरूआती दौर के दोस्त हैं। बेदी पिछले दिनों अस्वस्थ थे। तब वेंकट लगातार उनके साथ रहे।
दरअसल दिल्ली आते ही बेदी यहां की रणजी ट्रॉफी टीम का हिस्सा बन गए थे। उन्हें राजधानी की क्रिकेट के बेताज बादशाह राम प्रकाश मेहरा ने दिल्ली की क्रिकेट के विकास के लिए फ्री हैंड दे दिया था। उन्हें एक तरह से टीम को चुनने का भी अधिकार मिल गया था। चूंकि उनकी चमत्कारी स्पिन गेंदबाजी को सारी दुनिया जानने लगी थी इसलिए दिल्ली क्रिकेट में भी उनका असर बढ़ रहा था। उनकी बातों को सुना जाता था। उन्होंने सुरेन्द्र अमरनाथ,मोहिन्दर अमरनाथ, चेतन चौहान और मदनलाल को दिल्ली से खेलने का अवसर दिया। वे मेरिट से टीम का चयन करने लगे। दिल्ली की टीम का चेहरा बदल गया। यह एक थकी-हारी टीम की बजाय जुझारू टीम के रूप में उभरी। बेदी की सरपरस्ती में दिल्ली 1976-77 में रणजी ट्रॉफी की उप विजेता और 1978-79 में चैंपियन बनकर उभरी। अगले साल फिर चैंपियन बनी। दिल्ली हराने लगी मुंबई और कर्नाटक को। मुंबई के अभेद्द किले में भी दरार पड़ गई। भारतीय क्रिकेट में मुंबई और कर्नाटक के बाद एक तीसरी शक्ति का उदय हुआ। यह सब बेदी के विजन और नेतृत्व के गुणों के कारण हुआ।
भारत के कप्तान के रूप में बेदी के खाते में कुछ बड़ी कामयाबियां और विवाद भी रहे। वे उस भारतीय टीम के कप्तान थे जिसने वेस्ट इंडीज के विरूद्ध 1976 में पोर्ट आफ स्पेन टेस्ट जीता था। तब भारतीय बल्लेबाजों ने चौथी पारी में 400 से अधिक रनों का टारगेट चेस किया था। बेदी ने 1976-77 में भारत आई इंग्लैंड टीम के तेज गेंदबाज जॉन लिवर को अवैध तरीके से गेंद को वैसलीन से पॉलिश करने का दोषी बताया था। इस आरोप के बाद क्रिकेट जगत में खूब बवाल हुआ था।
विद्रोही तेवर सरदार के