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आज़ादी से पहले :और बाद में

 15 अगस्त, 1947 ही क्यों / विवेक शुक्ला


यह सवाल बार-बार पूछा जाता है कि  ब्रिटिश सरकार ने भारत को 15 अगस्त, 1947 को ही क्यों आजाद किया? क्या इस तारीख को चुनने के पीछे कोई खास वजह थी।


लार्ड माउंटबेटन 3 जून,1947 को भारतीय नेताओं से विभाजन की मंजूरी हासिल कर चुके थे। अब वे जल्दी में थे ताकि भारत की आजादी की कोई तारीख की घोषणा कर दें। उसके बाद एक पत्रकार सम्मेलन  राजधानी में हो रहा था। वहां पर सम्मेलन के लगभग आखिर में एक सवाल माउंटबेटन से पूछा गया कि   ‘क्या सत्ता के हस्तांरण ( Transfer of Power) की तारीख तय हुई?’ माउंटबेटन कुछ पल रूकने के बाद कहते हैं-‘भारतीय हाथों में सत्ता अंतिम रूप से 15 अगस्त, 1947 को सौंपी जाएगी।’  


 तब तक खबरिया चैनल और सोशल मीडिया ने तो दस्तक दी नहीं थी। इसलिए सारे देश को माउंटबेटन की घोषाण की जानकारी अगले दिन अखबारों से मिली।


 इतिहासकार श्री राज खन्ना Raj Khanna  ने अपनी किताब ‘आजादी से पहले,आजादी के बाद’ में लिखा है– ‘मौलाना आजाद ने माउंटबेटन से अपील की कि वे आजादी की तारीख को एक साल के लिए बढ़ा दें। जल्दबाजी में बंटवारे से पैदा हो रही दिक्कतों का मौलाना आजाद ने हवाला दिया।’


 वे अपने 4 किंग एडवर्ड रोड के बंगले में पत्रकारों से मिलकर इस मसले पर विस्तार से बात भी कर रहे थे। उस बंगले को उनकी 1958 में मौत के बाद तोड़कर विज्ञान भवन खड़ा किया गया था। तब ही यह सड़क हो गई थी मौलाना आजाद रोड।   


बहरहाल, माउंटबेटन ने किसी की नहीं सुनी। भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया। माउंटबेटन ने तो नहीं बताया कि उन्होंने क्यों 15 अगस्त, 1947 की तारीख को चुना था भारत को आजाद करने के लिए ।


 राज खन्ना लिखते हैं- ‘माउंटबेटन के प्रेस सचिव कैम्पवेल जॉनसन ने एक बार खुलासा किया था कि 15 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया था,क्योंकि 15 अगस्त, 1945 को जापान की सेनाओं ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्म समर्पण किया था। इसी दिन दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था।’ 

तो साफ है कि माउंटबेटन चाहते थे कि उस विशेष दिन की याद में भारतीयों को 15 अगस्त, 1947 को सत्ता सौंप दी जाए।   

Vivek Shukla


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