पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी आजकल खबरों में छाए हुए हैं। पर हम उनकी बात नहीं करेंगे। हम बात करेंगे पंजाब के उन तीन मुख्यमंत्रियों की जिनका राजधानी दिल्ली से करीबी संबंध रहा। सबसे पहले बात एक उस सियासी शख्सियत की जो यहां 1954 में रहने लगी थी। उनका नाम था लछमन सिंह गिल ( जन्म 1917 – मृत्यु 1969)। वे आगे चलकर पंजाब के मुख्यमंत्री भी बने।
गिल साहब ने राजौरी गार्डन में प्लाट खरीद कर अपना आशियाना बनाया था। उनका प्लाट 2200 गज का था। लछमन सिंह 1967 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे।
लछमन सिंह गिल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल को इसलिए खासातौर पर याद किया जाता है कि उन्होंने ही पंजाबी को राज्य की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलवाया था। यह 13 अप्रैल 1968 की बात है। गिल साहब मुख्यमंत्री रहते हुए जब भी दिल्ली आते तो अपने निजी आवास में ही ठहरा करते थे। उनकी अकाल मौत के बाद भी उनके परिवार के पास ही रहा उनका घर।गिल का संबंध अकाली दल से था।
जैल सिंह और वो कौन सी सड़क
ज्ञानी जैल सिंह भारत के 1982-87 के दौरान राष्ट्रपति रहे। वे 1956 में बतौर राज्य सभा सदस्य के रूप में दिल्ली आ गए थे। वे राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद राजधानी में ही बस गए थे। सरकार ने उन्हें तीन मूर्ति के करीब सर्कुलर रोड में सरकारी आवास अलॉट कर दिया था। राजधानी में उनके घर के दरवाजे हमेशा आम और खास के लिए खुल रहते थे। वे सच में जननेता थे। उन्होंने सिख धर्म के ग्रंथों की पढ़ाई की थी इसलिए उन्हें ज्ञानी का कहा जाने लगा। वे 1972 में पंजाब के मुख्यमंत्री भी बनाए गए।
आपको बता दें कि राष्ट्रपति भवन के भीतर की एक सड़क का नाम हुक्मी माई रोड है। अगर आप दारा शिकोह रोड ( पहले डलहौजी रोड) के रास्ते राष्ट्रपति भवन में गेट नंबर 37 से अंदर जाते हैं, तब आपको हुक्मी माई रोड मिलती है।
ज्ञानी जैल सिंह ने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए राष्ट्रपति भवन परिसर की इस सड़क का नाम हुक्मी माई रोड रखवाया था। वो हिन्दू और सिख धर्म की प्रकांड विद्वान थीं। उनका जन्म पंजाब में सन 1870 के आसपास हुआ।
नामधारी सिखों का एक प्रतिनिधिमंडल ज्ञानी जैल सिंह से मिला। इन्होंने ज्ञानी जैल सिंह से आग्रह किया कि वे हुक्मी माई जी के नाम पर नई दिल्ली की किसी सड़क का नाम रखवा दें। जैल सिंह जी को हुक्मी माई की शख्सियत की जानकारी थी। उन्होंने तुरंत इस बाबत निर्देश दिए। जाहिर है, राष्ट्रपति की इच्छा को लागू करने में देरी नहीं हुई ।
कर्जन रोड से पूसा तक
पंजाब के लोकप्रिय और धाकड़ मुख्यमंत्री के रूप में प्रताप सिंह कैरो को याद किया जाता है। वे भारत के आजाद होने के पश्चात राज्य विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और फिर पंजाब के मुख्यमंत्री बने। वे जब अपने सियासी करियर के शिखर पर थे तब उनकी हत्या कर दी गई थी। यह 1965 की बात है।
कैरों राजधानी में कर्जन रोड ( अब कस्तूरबा गांधी मार्ग) में अपने एक मित्र से मिलकर वापस चंडीगढ़ जा रहे थे। रास्ते में सोनीपत के पास राई में उनका सुच्चा सिंह और उनके साथियों ने कत्ल कर दिया था। उनके हत्यारे सुच्चा सिंह को पंजाब पुलिस के प्रमुख अश्वनी कुमार ने नेपाल में पीछा करते हुए पकड़ा था। दोनों में हाथापाई हुई थी। पर अश्वनी कुमार के घूंसों की बौछार ने सुच्चा सिंह को पस्त कर दिया था।
कैंरों का राजधानी के भारतीय कृषि अनुसंधान, (पूसा) में भी हरित क्रांति की तैयारियों के दौरान आना-जाना लगा रहता था। वे पूसा में गेंहू की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए गेंहू के उन्नतशील बीज विकसित करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग और कृषि वैज्ञानिक डा.एम.एस.स्वामीनाथन की टीम से मिला करते थे। उन्हें कृषि क्षेत्र की गहरी समझ थी।
डा.एम.एस.स्वामीनाथन और बोरलॉग साहब उन्हें राजधानी के जोंती गांव के किसानों से भी मिलवाते थे।
दिल्ली मेट्रो के मुंडका स्टेशन से करीब 7-8 किलोमीटर दूर है जोंती गांव। ये हरित क्रांति का गांव है।
जैसा कि पहले लिखा कि भारतीय कृषि अनुसंधान, पूसा में गेंहू की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए गेंहू के उन्नतशील बीज विकसित किए गए थे।इन्हीं बीजों को जोंती में लगाने का फैसला हुआ था। जोंती को इसलिए चुना गया था क्योंकि यहां पर नहर का पानी आता था। कैंरों जोंती के लोगों से बार बार मिला करते थे। Navbharatimes 23 September 2021
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Pictures- PS Kairon with Pt. NEHRU and Lachman Singh