सुश्री यानी सुनील श्रीवास्तव ! तब की बम्बई यानी आज की मुम्बई । 1980 का दिसंबर था जब मैं शरद जोशी द्वारा संपादित हिंदी एक्सप्रेस में पवेश पा गया था । एक दोपहर लंच के बाद का समय था लिफ्ट में ओमप्रकाश , अवधकिशोर पाठक के साथ सुनील श्रीवास्तव जी से पहली मुलाकात हुई थी ।...तब धर्मयुग हम जैसों की आशा आकांक्षाओं की मंजिल हुआ करती थी । बम्बई जाने तक मेरे लेख आदि धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान और उन दिनों बम्बई से ही प्रकाशित बोरीबंदर पाक्षिक में प्रकाशित हो चुके थे । अजानापन नहीं था । बोरीबंदर के संपादक तब धर्मयुग के संपादकीय में रह चुके सतीश वर्मा थे ।अपने अग्रजों शुभाकांक्षियों से भरा पूरा धर्मयुग परिवार डॉ धर्मवीर भारती जी का अपनत्व बड़ा संबल था ।...तब धर्मयुग में गणेश मंत्री, मनमोहन सरल , अनुराग चतुर्वेदी राममूर्ति और राजन गांधी को काम करते हुए देखना एक अलग ही अनुभव होता । धर्मयुग को जो खेल विशेषांक 5 लाख के पार तक पहुंचे वे राजन गांधी के कुशल संयोजन और संपादन का कमाल होते । हां एक जनाब और थे आलोक मेहरोत्रा खूब मोटे तगड़े मस्त मलंग ।इन्होंने तब हमें अपने परिचय से माटुंगा में 300 रु के किराए पर एक फ्लैट में बढ़िया कमरा दिलाया था । बड़ा ही उत्साहवर्धक दौर था ।...अवधकिशोर खार में रहते थे , छुट्टी के दिन मैं उन्हीं की संगत पकड़ता था । एक बार होली के दिन सुनील जी भी साथ थे ।खार से पैदल हम लो जुहू बीच तक गए । आनंद के की पड़ावों में हम साथ रहे ।...मेरे ये तीनों मित्र और मैं आनंदजीवी रहे ।अवधकिशोर प्रखर थे उनकी दृष्टि साफ थी । बताते हैं पहले वे 'रा 'में थे । कभी कभार उस दौर की बातें बताते थे । सब इतने सहज थे कि बिना किसी बौद्धिक तामझाम के बड़ी से बड़ी ज्ञान चर्चा का आनंद मिलता था । ओमप्रकाश जी की वृत्ति चंचला है , प्रवाह बड़ा तेज है , क्या खोना क्या पाना के भाव से मुक्त ।एक फ़िल्म बनाने की धुन सवार थी । फ़िल्म का नाम रखे थे नाच , अपने क्रिएशन में मुझे भी जोड़े थे , संगीतकर जयदेव जी के यहां ले जाते थे । एक गीत बनाया था मैंने शुरुआती बोल थे ...एक नन्ही सी चिड़िया जिसका नाम तरन्नुम ।...ओमप्रकाश जी स्वप्नदर्शी हैं और भावुक भी प्रेमिल हैं और जांनिसार भी । फिर बाद के दौर में एक अखबार भी निकाल थे , चंद्रशेखर ही आये अखबार के विमोचन में और मंच कह गए , बहुत माना किया ओमप्रकाश जी को मत निकालो अखबार खतरे का काम है पर न माने ।शुभकामनाएं हैं । ...इस नश्वर संसार में कोई भी किला अजर अमर नहीं , जो मन करे किया जाए और जीवन का आनंद लिया जाए । अभी खबर है कि ओमप्रकाश पूर्वांचल प्रथम नाम की पत्रिका के प्रकाशन में व्यस्त हैं ।...अवधकिशोर धर्मयुग छोड़ राजन ग़ांधी को साथ ले किसी व्यसायिक एजेंसी के काम को भी अंजाम दिए । ...अपने समय के टेलीविजन बहुचर्चित कार्यक्रम 'सुरभि 'के साथ भी जुड़े बाद मे चित्त , चिंतन बदला तो कई आध्यत्मिक पुस्तकों का अनुवाद और सृजन के काम में लगे । बाद के समय गुरुग्राम रहे ।पेट की दिक्कत से परेशान रहे । अब यादों में ।...बम्बई के इस सिलसिले में किंचित विराम आता है । ...अब हम सुनील जी के साथ जबलपुर के गोरखपुर में हैं । महर्षि महेश योगी के संस्थान में ...