( श्रद्धांजलि )
व्यवसायी सह समाजसेवी चमारी लाल का प्रेरक जीवन
झारखंड प्रांत के हजारीबाग नगर के जाने-माने व्यवसायी सह समाजसेवी चमारी लाल जी का निधन एक अपूरणीय क्षति है। इनका संपूर्ण जीवन गल्ला किराना व्यवसाय, परिवारिक दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वाहन एवं सामाज सेवा में बीता था । वे विनम्र, सहज सरल और मृदुभाषी व्यक्ति थे। इनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था । उन्होंने अपना जीवन संघर्ष शून्य से शुरू कर अपने बलबूते व्यवसाय का विस्तार किया था। साथ ही उन्होंने समाज के जरूरतमंद लोगों को ऊपर उठाने में महती भूमिका अदा की थी । वे काफी संघर्षशील स्वभाव के व्यक्ति थे । वे अपने काम के प्रति निष्ठावान और ईमानदार थे । मैंने आज तक उन्हें कभी नाराज नहीं देखा । वे बिल्कुल हंसते - मुस्कुराते रहने वाले एक जिंदादिल इंसान थे । चमारी लाल का जीवन नए व्यवसायियों एवं उद्यमियों के लिए प्रेरणादाई है ।
कम उम्र में चमारी लाल जी के पिताजी का निधन हो जाने के कारण छोटी उम्र में ही उनके कंधों पर पूरे घर की जवाबदेही आ गई थी । विरासत में उन्हें कोई पूंजी नहीं मिली थी । अगर मिली थी तो सिर्फ गरीबी और एक मां एवं तीन छोटे भाइयों की जवाबदेही। वे इस जवाबदेही से बिल्कुल घबराए नहीं थे । उन्होंने बाल उम्र में ही अपनी गरीबी से मुक्ति पाने का संकल्प ले लिया था।
कम उम्र ही उनकी पढ़ाई भी रुक गई थी। उन्होंने कठिन परिश्रम कर अपने दोनों भाइयों को उच्च शिक्षा प्रदान किया। आज उनके दोनों भाई व्यवसाय से जुड़े हुए हैं । उन्होंने अपने संघर्ष की शुरुआत एक दुकान में सेल्समैन की थी । उनमें बचपन से ही कुछ जानने सीखने और समझने की ललक थी । वे इमानदार थे । वे बहुत कम समय में उक्त दुकान के मुख्य कर्ताधर्ता बन गए थे। दुकान के मालिक उन पर काफी भरोसा भी करने लगे थे। चमारी लाल ने उक्त दुकान में एक भी पैसे की हेरा फेरी नहीं की थी । वे अपने मालिक से मासिक वेतन प्राप्त कर पाई पाई का हिसाब उन्हें दे दिया करते थे । चमारी लाल के उक्त दुकान से जुड़ने से कारोबार में काफी विस्तार हुआ था ।
जब चमारी लाल के पास एक नई दुकान खोलने जितनी पूंजी जमा हो गई थी, तब उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी।उन्होंने सीमित पूंजी में ही अपने आवास पर गल्ला किराना की दुकान खोल दी थी । दुकान में उनका परिश्रम रंग लाया और पांच - छः सालों में ही उनकी दुकान रफ्तार पकड़ ली थी । अब वे हजारीबाग नगर के एक प्रतिष्ठित युवा व्यवसाई के रूप में जाने जाने लगे थे। आज भी उनकी ईमानदारी की चर्चा होती है।
चमारी लाल अपने व्यवसायिक स्थल को मंदिर कहा करते थे । दुकान के काम को ईश्वर का कार्य कहते थे । वे कहते थे कि दुकान में काम करते हुए उन्हें कभी भी थकान महसूस नहीं होती थी । दुकान में वे और भी ऊर्जावान महसूस करते थे। वे बताते थे कि दुकानदारी करने में बहुत ही आनंद की अनुभूति होती है
उन्होंने अपना संघर्ष शून्य से शुरू किया और लाखों रुपए तक के कारोबार को आगे बढ़ाया था । वे समाजोत्थान और समाज कल्याण के कार्यों में भी अपरोक्ष रूप से मदद किया करते थे । वे जरूरत लोगों की आर्थिक मदद भी किया करते थे । इस संदर्भ में उनका कहना यह था कि मेरी आर्थिक मदद का नाम जाहिर नहीं होने दीजिएगा । मेरा नाम गुप्त ही रखेंगे। वे दान के प्रचार के खिलाफ थे ।
व्यवसायियों के हितों के रक्षार्थ 'हजारीबाग खुदरा खाद्यान्न व्यवसायी संघ'की स्थापना में उन्होंने महती भूमिका अदा की थी । संघ की स्थापना में उन्होंने आर्थिक मदद भी किया था । जब भी देश में राष्ट्रीय आपदा आई, उन्होंने बढ़-चढ़कर आर्थिक मदद किया था। हजारीबाग खुदरा खध्धान्न व्यवसाय संघ के तत्वाधान में होने वाले समाज सेवा के कार्यों में उनकी दान राशि सबसे ऊपर होती थी । यहां भी उनका यही आग्रह होता था कि मेरे नाम को जाहिर नहीं होने दीजिएगा । वे कहा करते थे कि 'मैं जो कमाता हूं'यह सब ईश्वर की ही कृपा है । समाज के कार्य मतलब ईश्वर का कर्ज होता है । ईश्वर की देन को मैं ईश्वर के कार्य में लगाता हूं, तब मुझे अंदर से बहुत खुशी होती है।'
वे व्यवसाय के कारण बहुत ज्यादा यात्रा नहीं कर पाए थे। इस बाबत पूछने पर उन्होंने कहा था, 'मेरी दुकान ही मेरा चारों धाम है । अगर मेरा जीवन दुकान में ही शांतिपूर्वक बीत जाता है , तो मैं समझता हूं कि मेरी चारों धाम की यात्रा पूरी हो गई '। वे समाज में व्याप्त दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास आदि को अच्छा नहीं मानते थे । वे चार बेटियां के पिता थे। उन्होंने चारों बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान की थी । उन्होंने समय पर चारों बेटियों की शादी योग्य वरों के साथ कर दी थी । आज उनकी चारों बच्चियां खुशहाल हैं। उनके आधा दर्जन नाती - नतनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहें हैं । उनका एकमात्र बेटा संजय केसरी, पिता की विरासत गल्ला किराना की दुकान को चला रहा है ।
वे लगभग छियासी वर्ष की उम्र में इस दुनिया को छोड़ कर चले गए । वे मृत्यु से दो वर्ष पूर्व तक एक युवा की तरह अपने व्यवसाय में सक्रिय थे । बढ़ती उम्र की तकलीफों से कौन मुक्त रह सकता है ? बुढ़ापे की बीमारी, कमजोरी, आंखों से कम दिखना, स्मृति का लोप होना आदि रोगों से लड़ रहे थे । वे धीरे-धीरे कर व्यवसाय से हटते चले जा रहे थे । अस्वस्थ रहने के बावजूद भी वे दुकान के बाहर कुर्सी में बैठा करते थे। इस अवस्था में भी वे ग्राहकों से मुस्कुरा कर अभिवादन किया करते थे ।
जब तक वे स्वस्थ थे , नियमित रूप से अखबार पढ़ा करते थे । जब कभी मुलाकात होने पर वे समाज में व्याप्त अशांति, बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं की तीव्र भर्त्सना व्यक्त किया करते थे । उनका मत था, 'लोग सिर्फ अपने काम को ईमानदारी पूर्वक करें । दूसरे के काम में अकारण दखल नहीं दे । आगे बढ़ने के लिए अन्य को नुकसान न पहुंचाए । नैतिकता का दामन विपरीत परिस्थितियों में भी ना छोड़े । तभी अशांति, बलात्कार और हत्या जैसी घटनाएं रुक सकती हैं '। आज चमारी लाल हमारे बीच नहीं हैं। वे एक साधारण व्यवसाई थे । यही साधारण कर्म उन्हें असाधारण बना दिया । उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदा लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता रहेगा। उनकी कही बातें निश्चित रूप से हम सबों को मार्ग निर्देशित करती रहेगी। वे अपने जीवन से बहुत संतुष्ट थे । उन्हें अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं थी । वे एक सकारात्मक सोच के व्यक्ति थे । उनका मत था, 'ईश्वर ने मुझे बहुत दिया है। इससे ज्यादा मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए । बस ! ईश्वर खुशहाल रखें'। वे एक व्यवसाई होकर भी उनका चिंतन अपरिग्रह का था। वे मानवीऊ जीवन को साक्षी भाव से देखा करते थे ।
चमारी लाल का जीवन बहुत ही सहज, सरल था । कहीं कोई दिखावा नहीं था । ना ही वे समाज में कोई अलग से पहचान निर्मित करना चाहते थे । उन्होंने कई गरीब बच्चों की पढ़ाई में गुप्त मदद की थी । कई बेटियों की शादी में उन्होंने आर्थिक मदद के अलावा राशन से भी मदद की थी । उनका अपने परिवार के साथ ग्राहक भी उनके परिवार के समान ही थे । जरूरत पड़ने पर वे अपने ग्राहक रुपी परिवार की काफी मदद किया करते थे । ऐसा कर वे काफी आर्थिक नुकसान भी उठाते थे। लेकिन वे मदद करने से कभी पीछे नहीं हटते थे । इस बाबत उन्होंने कहा था, 'मेरे पास था क्या ? कुछ भी नहीं था । हमारे ग्राहक ही हमारी पूंजी है । आज जो कुछ भी है, सब इन ग्राहकों की ही देन है। अगर उनमें कोई कुछ ले कर चला जाता है, तो एक तरह से ठीक ही होता है। उसके पास नहीं था । तभी ना मुझसे ले गया । अगर वह आर्थिक रूप से कमजोर नहीं होता , तो शायद हमारी उधारी चुका ही देता'। एक साधारण व्यवसाई हो कर भी वे असाधारण थे । उनका मन बहुत ही निर्मल था। उनका हृदय ममता से भरा था। सकारात्मक चिंतन के व्यक्ति थे। उनके जीवन से सभी युवा व्यवसाइयों को प्रेरणा लेनी चाहिए ।
विजय केसरी,
( कथाकार / स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक ,हजारीबाग - 825 301.
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