( शीर्षक से यह संस्मरण आलेख रांची से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'रांची एक्सप्रेस'के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित है। )
मैंने कभी कल्पना भी ना किया था कि हम सबों के प्रिय साहित्यकार भारत यायावर इस तरह अचानक चले जाएंगे ।
यह संस्मरण दिल में पत्थर रखकर लिख पाया हूं ।
आज सुबह इस संस्मरण की एक प्रति मैंने कथाकार रतन वर्मा को दिया।
वे मेरे ही सामने आलेख को पढ़ने लगे।
उनकी नजर जैसे ही भारत यायावर की तस्वीर पर पड़ी। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े ।
उन्होंने कहा कि इस आलेख को बाद में पढ़ लूंगा ।
भारत यायावर के निधन से रतन वर्मा काफी मर्माहत है। आगे उन्होंने कहा कि भारत यायावर के कारण ही मैं साहित्य में हूं। भारत यायावर ने मुझमें क्या देख लिया ?
वे मेरे पीछे ही पड़ गए । मुझे एक कथाकार बनाकर ही दम लिया ।
फिर रतन वर्मा जी ने कहा कि भारत यायावर जैसे साहित्यकार बरसों बाद पैदा लेते हैं। इनका संपूर्ण जीवन साहित्य सृजन में ही बीता । इनके निधन से हिंदी साहिब जगत ने एक महत्वपूर्ण साहित्यकार को खो दिया है।