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उदयन शर्मा की पत्रकारिता / टिल्लन रिछारिया

 उदयन शर्मा ! सिर्फ एक नाम नहीं अपने दौर की पत्रकारिता की जिंदा दास्तान हैं ।...आपातकाल वाला दौर जा चुका था ।...धर्मयुग में  उसके सम्पादकीय विभाग के एक साथ तीन सितारों के फोटो सहित  विदाई की सूचना प्रकाशित होती है । सुरेंद्र पताप सिंह , उदयन शर्मा और रविन्द्र श्रीवास्तव । सुरेंद्र प्रताप सिंह  और उदयन शर्मा आनंद बाज़ार ग्रुप की पत्रिका 'रविवार 'जा रहे हैं और रवींद्र श्रीवास्तव बम्बई में ही पत्रिका 'बनिता भारती 'से जुड़ रहे हैं । आनंद बाज़ार की पत्रिका 'संडे 'में  एम जे अकबर टाइम्स ऑफ इंडिया से पहले ही जा चुके जा चुके हैं । सुरेंद्र प्रताप सिंह ने सम्पादन तो उदयन शर्मा ने रिपोर्टिंग चुना है ।...यह आपातकाल के घटाटोप से निकली पत्रकारिता का वसंत काल है । ...रविवार आई और छा गई । पत्रकारिता अब साहित्यिक लहजे ,

सजावटी बनावटी भाषाई परिवेश से निकल कर आंखों में आंखें डाल तेज तर्रार भाषा और तीखे तेवर के साथ कुलांचे भर रही है । उदयन शर्मा की रिपोर्टिंग ने कारपोरेट और राजनीतिकों हलकों में बेचैनी पैदा कर दी है ।...दिल्ली के आई एन एस  के गेट पर सत्यनारायण शर्मा जी मुलाकात करवाते हैं । वह मुलाकात अनंत विस्तार पाती है और एक दिलफ़रेब पत्रकार के बहुरंगी जीवन की विविधताओं से रू-ब-रू कराती है ।...रविवार्णित नये मानदंड गढ़ती जा रही हैं , अपराध की जो घटनाएं दैनिक अखबारों मे सुर्खियां बन  सत्यकथा और मनोहर कहानी के गर्भ में समा जाती थीं अब वे ज्यादा खरे तेवर और विश्लेषण के साथ रविवार के पन्नों पर ज्यादा प्रभावी ढंग  से उभार पा रही हैं ।1980 में बांदा जिले के कोल गदहिया गाँव में एक बलात्कार कांड होता हैं । उदयन शर्मा आये हैं कवर करने । कर्वी में मुलाकात होती है । मुझसे कहते हैं साथ चलने के लिए ।...मैं उन्हें हिंदी एक्सप्रेस के इंटरव्यू के लिए बम्बई जाने की बात बताता हूँ । ठीक हैं , अभी मेरे साथ चलो । रिपोर्टिंग से लौट कर एक लंबी चिट्टी लिखते हैं धर्मयुग के गणेश मंत्री जी के लिए । चिट्टी लिफाफे में बंद कर देते हुए कहते हैं ये मंत्री जी को दे देना । ...फिर जब 1980 से 86 तक बम्बई रहा तब गाहेबगाहे मुलाकात होती रही । कोलकाता जाने का मौका मिला , ग्वालियर से कोलकाता के लिए नई ट्रेन चली थी 'चंबल एक्सप्रेस 'रेलवे की ओर से थी यह यात्रा , तब मैं झांसी जागरण में था । इसी के बाद मैं क्रिकेट मैच के लिए रुक गया था । लौट कर  जागरण के लिए 8 पेज का पुलआउट 'आलराउंडर 'बनाया था । बाद में इसी आलराउंडर को मैंने राष्ट्रीय सहारा में रहते हुए फूल फ्लेजेड खेल वीकली के रूप में सहारा के लिए निकाला जो अपने आप मे बहु प्रशंसित रहा । पूरे आकर प्रकार का  दैनिक अखबार वाले फूल साइज के इस 16 पेज के अखबार को  फ़िल्म के स्क्रीन की तर्ज़ का खेल अखबार माना गया । ...कोलकाता मे क्रिकेट का रिलायन्स कप चल रहा था।  मैं हफ्ते भर वहां रहा  एक मित्र किरण के साथ वे बम्बई से परिचित थे ।...

इंग्‍लैंड में लगातार तीन क्रिकेट विश्‍व कप का आयोजन होने के बाद 1987 का विश्व कप पहली बार इंग्लैंड से बाहर आयोजित किया गया. 1987 के विश्व कप की मेजबानी भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से की थी. चौथे क्रिकेट विश्व कप का नाम इस के प्रायोजक रिलायंस कंपनी के नाम पर रिलायंस विश्व कप रखा गया था. इस विश्व कप में पहली बार एक पारी में कुल ओवरों की संख्या 60 से घटाकर 50 कर दी गयी थी. खिलाड़ियों को सफेद रंग की पारंपरिक पोशाक पहन कर मैच खेलना अनिवार्य था. साथ ही मैच में लाल रंग की क्रिकेट गेंद का प्रयोग किया गया था.यह भारत और पाकिस्तान में 8 अक्टूबर से 8 नवंबर 1987 तक आयोजित किया गया था - इंग्लैंड के बाहर आयोजित होने वाला पहला ऐसा टूर्नामेंट था ।...ऑस्ट्रेलिया ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड को सात रन से हराकर कोलकाता के ईडन गार्डन स्टेडियम में  सबसे करीबी मुकाबले में विश्व कप फाइनल लड़ा था। दोनों मेजबान राष्ट्र, भारत और पाकिस्तान सेमीफाइनल में समाप्त होने के बाद, फाइनल में पहुंचने में असफल रहे। वेस्ट इंडीज उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया और ग्रुप स्टेज से आगे नहीं बढ़ पाया। ...मेरे लिए कोलकाता की यातरा काफी रोमांचक यादगार रही । कोलकाता प्रवास के दौरान मैं चर्चित फोटोग्राफर अमिय तरफदार से उनके स्टूडियो पार्कस्ट्रीट में मिला । इसी साल उन्हें  फोटोग्राफी का बड़ा पुरस्कार मिला था । ...मैच वाले दिन उदयन जी से मैंने कहा ईडन गार्डेन में मैच तो दिखा दीजिये । बोले , क्या देखोगे , वहां कुछ समझ में नहीं आता है । यहीं टी वी में देखो ।बाद में ईडन गार्डन घुमा देंगे ।...उदयन जी  ने बाद में बड़ा  महत्वपूर्ण गिफ्ट दिया , अपना फोटोग्राफर बुला कर इस विश्व कप के खूब सारे फोटो दिए जो मेरे बहुत काम आए । ...अब फिर मिलते हैं उदयन शर्मा दिल्ली में.... संडे आब्जर्वर के सम्पादक के रूप में1989 में । इन दिनों मैं दैनिक वीर अर्जुन में हूँ ।वीर अर्जुन से मैं राष्ट्रीय सहारा में आ गया हूँ । ...समय चार कदम ही चला था  पता चला  उदयन शर्मा जी सहारा आ रहे हैं । ये बात खुद सहाराश्री सुब्रत राय जी ने हमें विशेष मंतव्य जे साथ बताई  । बोले , आप और उदयन जी वगैरा सब साथय के तो हैं न , यहां आ रहे हैं , सामंजस्य बिठाए रहिएगा । राज बब्बर चाहते कि उदयन जी साथ आ जाएं । ...मैने उन्हें आश्वस्थ किया , सब ठीक रहेगा आप निश्चिंत रहें ।...बहरहाल उदयन जी सहारा मैं  आ गए ।... बड़े जोश जुनून के साथ उदयन जी का तैयारी अभियान चला । इस बीच यह भाव ताव भी की 'उदयन जी आ गए , उदयन..  जी आ गए '...उदयन जी को तरह तरह के मशवरे दिए जाने लगे । हमारी 'उमंग 'की टीम  जो अभी तक 'परम स्वतंत्र न सिर  पर कोउ 'वाले मोड़ में थी हलचल में आ गई , बोली , हमे अपने बच्चे का नया पापा नहीं चाहिए । मने कहा , निश्चिंत रहे बच्चे के आपा और पापा आप ही रहेंगे ।...धीरे धीरे उदयन जी रमने लगे , मैं हालचाल लेता , पूछता सब ठीक है , मेरे लायक कुछ है । ...बोलते , आल इज़ वेल , अभी तुम्हारे लिए कुछ नहीं है ।...मीटिंग दर मीटिंग उदयन जी सहारा कल्चर से वाकिफ होने लगे । स्पष्ट होने लगा कि उदयन जी फिलहाल  सम्पादकीय पेज देखेंगे , एक दो सहयोगियों के साथ वे  सम्पादकीय पेज के नाक नक्श संवारने मैनेज थे । एक दिन मुझे बुलाया कर कहा , अब आओ बताते है तुम्हें क्या करना है , अखबारों के  समपादकीय पेज देखते हो , तीन सम्पादकीय होते हैं , तीसरा सम्पादकीय कुछ अलग हट कर होता है ...तो ये जो कुछ हटकर होता है ये तुम्हे लिखना है ।...विषय क्या होगा । ...वही सब जो तुम । अपने अंदाज में बोलते हो ।...यानी , चाय , समोसा , पान , पानदान ,  कुर्ता , पाजामा कुछ भी ।...हैं, यही सब होगा , कालम का नाम बताओ । ...कालम का नाम होगा 'मुतफर्रिक ' ...क्या मतलब इसका । ...इसका मतलब है , इधर उधर की । थीक  है । तो शुरू हो जाइए , कल दे दो परसों के अखबार में छपेगा , रोज़ छपेगा , संडे छोड़ कर । यह कॉलम छलने जाने लगा तो लिखने वाले का ना। दिया वाया 'टिल्लन जी '। तो जो पहला आइटम छपा उसका शीषर्क था 'समय के साथ चलो यानी बॉस के साथ चलो । ....बॉस यानी उदयन शर्मा जी के नामोल्लेख के साथ इस 'मुतफर्रिक "कॉलम का श्री गणेश हुआ ।



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