बम्बई में रवींद्र श्रीवास्तव जी से हफ्ते में तीन-चार मुलाकातें हो ही जातीं थीं । हमारे करंट की बिल्डिंग जॉली मेकर्स से सड़क पर नुक्कड़ पर एक दो बिल्डिंग बाद एम्बेसी बिल्डिंग में आपका मित्र प्रकाशन की पत्रिकाओं , माया , मनोरमा ,मनोहर कहानियों के व्यूरो का ऑफिस था। अक्सर करंट से निकल कर मैं शाम वहीं बिताता था ।
धर्मयुग आने पहले आप इलाहाबाद के दैनिक भारत में रहे । धर्मयुग के बाद आपने फ़िल्म स्टार धनेंद्र के साथ मिल कर 'सिनेमा की मैगज़ीन 'बाइस्कोप 'निकाली जो टाइम्स ग्रुप की फ़िल्म मैगज़ीन 'माधुरी 'से चार गुना यानी 1 लाख 10 हजार के सर्कुलेशन तक पहुंच गई । बड़ा हंगामा हुआ । फिर वनिता भारती, उसकके बाद ये मित्र प्रकाशन में आ गए ।..मित्र प्रकाशन का अच्छा बाज़ार था तब ।...आप की गतिविधियों का केंद्र ,सिनेमा, मनोरंजन , कला , फैशन आदि था । आप के पास बैठ कर पूरी बम्बई की हलचल का पता चल जाता था ।...एक दिन बोले , टिल्लन स्टारडस्ट का हिंदी आ रहा है कहो तो बात करूं । पर तब मैं करंट के नशे में था ।....असंपादित