छठ,सरोजनी नगर,1960
साउथ दिल्ली के सरोजनी नगर और नेताजी नगर के सरकारी बाबुओं के तोड़ दिए घरों के अवशेषों में छठ से जुड़ी ढेरों स्म़ृतियां बिखरी हुईं हैं। इनमें कच्चे जलाशय बन जाते थे और व्रती अपनी रस्मों को पूरा किया करती थीं। ये 60 और 70 के दशकों की बातें हैं। तब तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि राजधानी में आगे चलकर छठ पर यमुना में दर्जनों सरकारी बकभी बनेंगे। उस दौर में सरोजनी नगर का फ्लैट नंबर सी-155 पूर्वांचल समाज की गतिविधियों का केन्द्र था। तब सरोजनी नगर को विनय नगर कहा जाता था।
उस दौर में समाज के पुराण पुरुष श्रीकांत दुबे के फ्लैट में आसपास के लोग छठ की तैयारियों की बैठकें किया करते थे। उन दिनों तो यहां बमुश्किल से एक दर्जन पूर्वांचल के परिवार थे। छठ से कुछ दिन पहले सब लोग पहाड़गंज से पूजा की सामग्री जैसे लोटा या कलश और थाली, पांच गन्ने जिसमें पत्ते लगे हों, पानी वाला नारियल, अक्षत, पीला सिंदूर, दीपक, घी, बाती, कुमकुम, चंदन, धूपबत्ती, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, फूल, हरे पान के पत्ते, साबुत सुपाड़ी, शहद लेने डीटीसी की बस नंबर 17 से जाया करते थे। क्या उत्साह और आनंद का वातावरण होता था।
पहाड़गंज जाने वाली टोली में श्रीकांत दुबे, केदारनाथ पाठक,त्रिवेणी सहाय और राम जतन राय शामिल रहते थे। इन सबने ही दिल्ली में भोजपुरी समाज का 1956 में गठन किया था। आप कह सकते हैं कि राजधानी में छठ महापर्व को मनाने की शुरूआत करने वाले ये सबसे शुरूआती दौर के चेहरे थे। ये राजधानी में आकर बसने वाले भोजपुरियों को ढूंढते रहते थे अपने साथ जोड़ने के लिए। ये उनके सुख-दुख में चट्टान की तरह खड़े रहते थे।
इसी तरह से भोजपुरी समाज की तरफ से सरोजनी नगर में हुए एक छठ के कार्यक्रम में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी श्रीमती राजवंशी देवी प्रसाद भी शामिल होने आईं थीं। वे सबके साथ भोजपुरी में बोल रही थीं। संभवत: राजेन्द्र बाबू ने छठ के कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। पर वे भोजपुरी समाज के प्रतिनिधियों से मिलते थे।भोजपुरी समाज के आग्रह के बाद ही राष्ट्रपति भवन में होली मिलन का आयोजन शुरू हो गया था।
दिल्ली भोजपुरी समाज के लिए 1968 खास रहा। उस साल समाज ने मारीशस के भारत में पहले उच्चायुक्त श्री रविन्द्र घरबरन को छठ समारोह में आमंत्रित किया और फिऱ उनका आईटीओ के आईएमओ हॉल में भव्य अभिनंदन किया। उस अवसर पर केन्द्रीय मंत्री डा. राम सुभग सिंह और दिल्ली के उप राज्यपाल बालेश्वर राय भी मौजूद थे। लगभग सभी वक्ता भोजपुरी में बोले थे।
मारीशस के उच्चायुक्त ने भी अपना वक्तव्य भोजपुरी में दिया था । उसे सुनकर वहां मौजूद सैकड़ों भोजपुरी समाज के लोग भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा था कि हम भले ही मारीशस में रहते हैं, पर हम हैं तो भोजपुरी। हम दिवाली और छठ से दूर नहीं जा सकते।
उस कार्यक्रम में श्रीकांत दूबे के पुत्र अजित कुमार दूबे भी मौजूद थे। वे उस दिन को याद करते हुए बताते हैं कि मारीशस नया-नया आजाद हुआ था। उसे भारत के बाहर लघु भारत के रूप में देखा जा रहा था। जब उसके उच्चायुक्त जब भारत आए तो तय हुआ कि उन्हें छठ के कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा।
फिर दिल्ली में एशियाई खेलों का 1982 में आयोजन हुआ। यहां अनेक स्टेडियम और अन्य इमारतें बनीं। उस निर्माण कार्यों के लिए बड़ी संख्या में बिहार एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश मूल के मज़दूर दिल्ली में आए और यहां के हो गए। इसके साथ ही राजधानी में सार्वजनिक छठ पूजा का प्रचलन बढ़ता चला गया।
दिल्ली सरकार द्वारा छठ घाटों के रख रखाव की व्यवस्था की जाने लगी।सबसे पहले साहब सिंह वर्मा के मुख्यमंत्रित्व काल में 8 घाटों को सरकारी घाट घोषित किया गया जो शीला दीक्षित के कार्यकाल में संख्या 72 तक पहुँची एवं वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में यह संख्या 1100 से ऊपर पहुँच चुकी है।
विवेक शुक्ला
नवभारत टाइम्स, 11 नवंबर, 2021 को मेरे कॉलम साड्डी दिल्ली में छपे लेख के अंश।
Chhat picture by Pradeep Saurabh ji