प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
सूर्य जब भी पश्चिम में गया है अस्त ही हुआ है
*हमारे पास तो पहले से ही अमृत से भरे कलश थे...!*
*फिर हम वह अमृत फेंक कर उनमें कीचड़ भरने का काम क्यों कर रहे हैं...?🤔*
*जरा इन पर विचार करें...👇*
० यदि *मातृनवमी* थी,
तो Mother’s day क्यों लाया गया?
० यदि *कौमुदी महोत्सव* था,
तो Valentine day क्यों लाया गया?
० यदि *गुरुपूर्णिमा* थी,
तो Teacher’s day क्यों लाया गया?
० यदि *धन्वन्तरि जयन्ती* थी,
तो Doctor’s day क्यों लाया गया?
० यदि *विश्वकर्मा जयंती* थी,
तो Technology day क्यों लाया गया?
० यदि *सन्तान सप्तमी* थी,
तो Children’s day क्यों लाया गया?
० यदि *नवरात्रि* और *कन्या भोज* था,
तो Daughter’s day क्यों लाया गया?
० *रक्षाबंधन* है तो Sister’s day क्यों ?
० *भाईदूज* है तो Brother’s day क्यों ?
० *आंवला नवमी, तुलसी विवाह* मनाने वाले हिंदुओं को Environment day की क्या आवश्यकता ?
० केवल इतना ही नहीं, *नारद जयन्ती* ब्रह्माण्डीय पत्रकारिता दिवस है...
० *पितृपक्ष* ७ पीढ़ियों तक के पूर्वजों का पितृपर्व है...
० *नवरात्रि* को स्त्री के नवरूपों के दिवस के रूप में स्मरण कीजिये...
*सनातन पर्वों को गर्व से मनाईये...*
*पश्चिमी अंधानुकरण मत अपनाइये*
ध्यान रखे...
"सूर्य जब भी पश्चिम में गया है तब अस्त ही हुआ है "
अपनी संस्कारी जड़ों की ओर लौटिए। अपने सनातन मूल की ओर लौटिए। व्रत, पर्व, त्यौहारों को मनाइए। *अपनी संस्कृति और सभ्यता को जीवंत कीजिये।*
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