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मोदी की दिल्ली में पुतिन का रूस / विवेक शुक्ला

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 पुतिन दिल्ली में देखिए रूस


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आज   दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शिखर वार्ता है। पुतिन को दिल्ली में अपने देश की सुगंध और प्रतीक मिलेंगे। उन्हें चाणक्यपुरी के नेहरु पार्क में लेनिन की आदमकम मूर्ति मिलेगी। रूसी क्रांति के नायक ब्लादिमीर लेनिन की मूर्ति 1987 से लगी हुई है। इसकी स्थापना रूस के तब के प्रधानमंत्री निकोलाई रियाजकोव की उपस्थिति में  1987 में हुई थी। उस अवसर पर राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी मौजूद थे। 


यहां हर साल 22 अप्रैल को लेनिन की जयंती पर वामपंथी विचारों के प्रति समर्पित राजनीतिक कार्यकर्ता,रंगकर्मी वगैरह पहुंचते हैं। लेनिन की मूर्ति में गति व भाव का शानदार मिश्रण देखने को मिलता है। इस पर हिन्दी और अंग्रेजी में ‘लेनिन’ लिखा है। लेनिन के चित्र माकपा और भाकपा के दफ्तरों में भी लगे हुए हैं।


लियो टॉल्स्टॉय से पुश्किन तक

अगर राष्ट्रपति पुतिन कनॉट प्लेस क्षेत्र में आएं तो उन्हें मिलेगा टॉल्स्टॉय मार्ग और उसके कुछ दूर मंडी हाउस क्षेत्र में रूसी कवि पुश्किन की आदमकद प्रतिमा। सब जानते हैं कि लियो टॉल्स्टॉय महान लेखक थे, उनकी रचनाओं का गांधी जी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा था। दोनों के बीच पत्र-व्यवहार भी होता था।  टॉल्स्टॉय मार्ग,  बाराखंभा रोड से शुरू होकर संसद मार्ग तक जाता है। जिधर संसद मार्ग की सीमा आरम्भ होती है, उधर ये स़ड़क समाप्त हो जाती है। 


ये एक किलोमीटर से भी कुछ छोटी सड़क है। टॉलस्टाय की एक प्रतिमा जनपथ पर स्थित जवाहर व्यापार भवन ( एसटीसी) में लगी हुई है।   टालस्टाय मार्ग का पहले नाम होता था सर हेग किलिंग रोड। किलिंग चीफ इंजीनियर थे जब नई दिल्ली का निर्माण हो रहा था। वे एडविन लुटियन के साथी थे। खैर,1968 के आसपास इस सड़क का नाम हो गया ‘वार एंड पीस’ जैसे कालजयी उपन्यास के लेखक के नाम पर। 1970 के शुरू के कुछ सालों तक एक बोर्ड पर कीलिंग रोड भी लिखा था।


 अगर रूसी राष्ट्रपति की टोली फिरोजशाह रोड पर जाए तो उन्हें मिलेगी अलेक्सांद्र पुश्किन की आदमकम मूर्ति। ये मूर्ति राजधानी की कला-संस्कृति की दुनिया के गढ़ में स्थापित है। इसके ठीक पीछे रविन्द्र भवन है। अलेक्सांद्र पुश्किन को रूसी भाषा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। उन्हें आधुनिक रूसी कविता का संस्थापक भी माना जाता है। पुश्किन के 38 वर्ष के छोटे जीवनकाल को हम 5 खंडों में बाँटकर समझ सकते हैं। 26 मई 1799 को उनके जन्म से 1820 तक का समय बाल्यकाल और प्रारंभिक साहित्य रचना को समेटता है। 1820 से 1824 का समय निर्वासन काल है। 1824 से 1826 के बीच वे मिखायेलोव्स्कोये में रहे। 1826-1831 में वे ज़ार के करीब आकर प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचे। 


किस रूसी की कर्म भूमि थी भारत


रुस के भारत में पूर्व राजदूत अलेक्जेंडर कदाकिन के नाम पर चाणक्यपुरी में  सड़क है। उन्हें भारत का सच्चा मित्र माना जाता था। उनका 2017 में निधन हो गया था। 67 साल के  कदाकिन  धारा प्रवाह हिंदी बोलते थे। वो 2009 से भारत में रुस के राजदूत के तौर पर कार्यरत थे। उन्होंने 1972 में भारत में रुसी दूतावास में ‘थर्ड सेक्रेटरी'के तौर पर अपने राजनयिक कॅरियर की शुरुआत की थी। जिस सड़क का नाम अलेक्जेंडर एम कदाकिन रोड रखा गया है, वो पहले ऑफिसर्स मेस रोड के नाम से जाती थी।


ये सड़क चाणक्यपुरी में आर्मी बैटल ऑनर्स मेस के निकट स्थित है। यह सड़क सरदार पटेल मार्ग को सैन मार्टिन मार्ग से जोड़ती है। सरकार ने अलेक्जेंडर कदाकिन की स्मृति को जीवित रखने के लिए दिल्ली के अहम क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सड़क का फिर से नामकरण किया था। कदानिन का जन्म रूस में हुआ था, लेकिन भारत उनकी कर्मभूमि थी।


 इस बीच, पुतिन को फिरोजशाह रोड पर स्थित रूसी सूचना केन्द्र और रूसी एंबेसी के बारे में तो पता ही होगा। करीब 25 साल पहले तक रूसी एंबेसी का एक दफ्तर बाराखंभा रोड पर भी था।

Vivek Shukla 

Navbharattimes 6 December 2021


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