$ 0 0 प्रस्तुति -- संगीता सिन्हा खोए हुए शेरों की तलाश माँगता है देश,फिर सुभाष और आज़ाद माँगता है देश ।महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के जन्म दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन........🇮🇳🙏वह ख़ून कहो किस मतलब काजिसमें उबाल का नाम नहीं।वह ख़ून कहो किस मतलब काआ सके देश के काम नहीं।वह ख़ून कहो किस मतलब काजिसमें जीवन, न रवानी है!जो परवश होकर बहता है,वह ख़ून नहीं, पानी है!उस दिन लोगों ने सही-सहीख़ून की कीमत पहचानी थी।जिस दिन सुभाष ने बर्मा मेंमॉंगी उनसे कुर्बानी थी।बोले, स्वतंत्रता की ख़ातिरबलिदान तुम्हें करना होगा।तुम बहुत जी चुके जग में,लेकिन आगे मरना होगा।आज़ादी के चरणों में जो,जयमाल चढ़ाई जाएगी।वह सुनो, तुम्हारे शीशों केफूलों से गूँथी जाएगी।आजादी का संग्राम कहींपैसे पर खेला जाता है?यह शीश कटाने का सौदानंगे सर झेला जाता है”यूँ कहते-कहते वक्ता कीआँखों में ख़ून उतर आया!मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठादमकी उनकी रक्तिम काया!आजानु-बाहु ऊँची करके,वे बोले, रक्त मुझे देना।इसके बदले भारत कीआज़ादी तुम मुझसे लेना।हो गई सभा में उथल-पुथलसीने में दिल न समाते थे।स्वर इनक्लाब के नारों केकोसों तक छाए जाते थे।`हम देंगे-देंगे ख़ून'शब्द बस यही सुनाई देते थेरण में जाने को युवक खड़ेतैयार दिखाई देते थे। बोले सुभाष, इस तरह नहींबातों से मतलब सरता है।लो यह कागज़ है कौन यहॉंआकर हस्ताक्षर करता है?इसको भरनेवाले जन कोसर्वस्व-समर्पण करना हैअपना तन-मन-धन-जन-जीवनमाता को अर्पण करना हैपर यह साधारण पत्र नहींआज़ादी का परवाना हैइस पर तुमको अपने तन काकुछ उज्जवल रक्त गिराना है!वह आगे आए जिसके तन मेंखून भारतीय बहता हो।वह आगे आए जो अपने कोहिंदुस्तानी कहता हो!वह आगे आए, जो इस परखूनी हस्ताक्षर करता हो!मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आएजो इसको हँसकर लेता हो!सारी जनता हुँकार उठी-हम आते हैं, हम आते हैं!माता के चरणों में यह लो,हम अपना रक्त चढ़ाते हैं। ।# गोपाल प्रसाद व्यास