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नेताजी क़ो कोटि कोटि प्रणाम /गोपाल प्रसाद व्यास

प्रस्तुति --  संगीता सिन्हा 


खोए हुए शेरों की तलाश माँगता है देश,

फिर सुभाष और आज़ाद माँगता है देश ।

महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के जन्म दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन........🇮🇳🙏


वह ख़ून कहो किस मतलब का

जिसमें उबाल का नाम नहीं।

वह ख़ून कहो किस मतलब का

आ सके देश के काम नहीं।



वह ख़ून कहो किस मतलब का

जिसमें जीवन, न रवानी है!

जो परवश होकर बहता है,

वह ख़ून नहीं, पानी है!


उस दिन लोगों ने सही-सही

ख़ून की कीमत पहचानी थी।

जिस दिन सुभाष ने बर्मा में

मॉंगी उनसे कुर्बानी थी।


बोले, स्वतंत्रता की ख़ातिर

बलिदान तुम्हें करना होगा।

तुम बहुत जी चुके जग में,

लेकिन आगे मरना होगा।


आज़ादी के चरणों   में जो,

जयमाल चढ़ाई जाएगी।

वह सुनो, तुम्हारे शीशों के

फूलों से गूँथी जाएगी।


आजादी का संग्राम कहीं

पैसे पर खेला जाता है?

यह शीश कटाने का सौदा

नंगे सर झेला जाता है”


यूँ कहते-कहते वक्ता की

आँखों में ख़ून उतर आया!

मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा

दमकी उनकी रक्तिम काया!


आजानु-बाहु ऊँची करके,

वे बोले, रक्त मुझे देना।

इसके बदले भारत की

आज़ादी तुम मुझसे लेना।


हो गई सभा में उथल-पुथल

सीने में दिल न समाते थे।

स्वर इनक्लाब के नारों के

कोसों तक छाए जाते थे।


`हम देंगे-देंगे ख़ून'

शब्द बस यही सुनाई देते थे

रण में जाने को युवक खड़े

तैयार दिखाई देते थे। 


बोले सुभाष, इस तरह नहीं

बातों से मतलब सरता है।

लो यह कागज़ है कौन यहॉं

आकर हस्ताक्षर करता है?


इसको भरनेवाले जन को

सर्वस्व-समर्पण करना है

अपना तन-मन-धन-जन-जीवन

माता को अर्पण करना है


पर यह साधारण पत्र नहीं

आज़ादी का परवाना है

इस पर तुमको अपने तन का

कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!


वह आगे आए जिसके तन में

खून भारतीय बहता हो।

वह आगे आए जो अपने को

हिंदुस्तानी कहता हो!


वह आगे आए, जो इस पर

खूनी हस्ताक्षर करता हो!

मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए

जो इसको हँसकर लेता हो!


सारी जनता हुँकार उठी-

हम आते हैं, हम आते हैं!

माता के चरणों में यह लो,

हम अपना रक्त चढ़ाते हैं। ।


# गोपाल प्रसाद व्यास





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