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सुभाष भौमिक अंबेडकर स्टेडियम में / विवेक शुक्ला

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सुभाष भौमिक को अंबेडकर स्टेडियम में दिल्ली के फुटबॉल प्रेमियों ने 1970 से 1980 के दशकों के दौरान अपने जलवे बिखते हुए खूब देखा है। उनका गेंद पर कंट्रोल और विरोधी टीम के खिलाड़ियों को चकमा देने की कला लाजवाब थी। भौमिक को दिल्ली ने कोलकात्ता के ईस्ट बंगाल क्लब और मोहन बागान की टीमों की तरफ से खेलते हुए देखा था। वे बेहद उम्दा राइट आउट थे। वे थोड़े से स्थूल थे पर इसके बावजूद वे मैदान में लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे।


 दरअसल दिल्ली में 20-25 साल पहले कोलकात्ता और पंजाब की टीमों के मैचों को देखने के लिए दर्शक बड़ी तादाद में उमड़ते थे। ईस्ट बंगाल और मोहन बागान को दिल्ली भरपूर प्यार देती थी। खासतौर पर  ईस्ट बंगाल का लाल एवं सुनहरा रंग दिल्ली के फुटबॉल के शैदाइयों की कई पीढ़ियों को अपनी तरफ खींचता रहा है। पूर्व भारतीय दिग्गज फुटबॉलर और मशहूर कोच सुभाष भौमिक का लंबी बीमारी के बाद विगत शनिवार को निधन हो गया।  सुभाष भौमिक 1970 में एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली फुटबॉल टीम के सदस्य थे। 


 अगर बात 1960 के दशक की करें तो दिल्ली को चुन्नी गोस्वामी का खेल भी बहुत पसंद था। डुरंड कप का 1965 का फाइनल मैच मोहन बागान बनाम पंजाब पुलिस के बीच  शुरू होने वाला था। अंबेडकर स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा था। राष्ट्रपति एस. राधाकृष्नन मैच देखने स्टेडियम में आए हुए थे। उन्होंने देखा कि मोहन बागान के खिलाड़ियों के साथ चुन्नी गोस्वामी भी अभ्यास कर रहे हैं। 


राष्ट्रपति जी ने चुन्नी गोस्वामी को अपने पास बुलाकर कहा, “ मुझे लगता है कि तुम फाइनल मैच का स्थायी हिस्सा बन गए हो।”जरा सोचिए कि कितने खुशनसीब होते हैं वे लोग, जिनके फैन राष्ट्रपति भी होते हैं। चुन्नी गोस्वामी 1959 से  लेकर 1965 तक के हरेक डुरंड फाइनल मैच में खेले थे। दिल्ली उनकी मैदान में लय,ताल और गति की दिवानी थी।


 कोलकाता के किन खिलाड़ियों को पसंद करती दिल्ली


अगर बात सत्तर और अस्सी के दशकों की करें तो तब ईस्ट बंगाल, मोहन बागान और मोहम्डन स्पोर्टिंग के मैचों को देखने के लिए दिल्ली के दर्शक बेताब  रहते थे। ये सब टीमें अंबेडकर स्टेडियम में डीसीएम और डुरंड फुटबॉल कप में खेलती थी। कोलकाता की टीमों के सुरजीत सेन गुप्ता, सुधीर कर्माकर, भास्कर घोष, मोहम्मद हबीब,मनोरंजन भट्टाचार्य, सुभाष भौमिक, श्याम थापा जैसे बेहतरीन खिलाड़ियों की लय,ताल और गति को देखने के लिए दर्शकों में कमाल का उत्साह रहता था। ये मैच के शुरू होने से एक-दो घंटे पहले ही स्टेडियम में बैठ जाते थे। 


इन टीमों के मैच जब पंजाब के जेसीटी क्लब,बीएसएफ या पंजाब पुलिस से होते तो नजारा कमाल का होता था। पंजाब और बंगाल की टीमों के मैच बेहद संघर्ष के बाद समाप्त होते थे। इस तरह के मैचों में एक तरफ बंगाली दर्शक और दूसरी तरफ पंजाबी दर्शक होते थे। पंजाबी दर्शकों में सिखों की संख्या खासी रहा करती थी।


 पर 1984 के बाद सिख दर्शक अंबेडकर स्टेडियम से दूर होने लगे। उसके बाद अंबेडकर स्टेडियम में बंगाल और पंजाब की टीमों के बीच पहले वाले कांटे के मुकाबले होने लगभग बंद हो गए। यह मानना होगा कि बंगाली फुटबॉल प्रेमी भी पंजाब की टीमों के इंदर सिंह, हरजिंदर सिंह,मंजीत सिंह, सुखविंदर सिंह जैसे बेहद प्रतिभावान खिलाड़ियों की क्षमताओं का लोहा मानते थे।


 ईस्ट बंगाल-मोहन बगान के मैच किसे बांटते थे


ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच होने वाले मैचों से दिल्ली का बंगाली समाज भी बंट जाता था। ईस्ट बंगाल को दिल्ली में मुख्य रूप से सपोर्ट मिलती थी पूर्वी बंगाल ( अब बांग्लादेश) से देश के बंटवारे के समय बसे बंगालियों की। इनके पुऱखे देश के बंटवारे के वक्त दिल्ली आए थे। ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच होने वाले मैचों में यह दूरियां साफ तौर पर नजर आती थीं। 


मोहन बागान के साथ  मौजूदा बंगाल से संबंध रखने वाले बंगाली बंधु खड़े होते थे। पर जब ये दोनों टीमें पंजाब की बीएसएफ, जेसीटी मिल्स या पंजाब पुलिस  की टीमों से भिड़ती तब सब बंगबंधु एक हो जाते।ईस्ट बंगाल और मोहन बागान की टीम जब राजधानी में मॉडर्न स्कूल या मिन्टो रोड के प्रेस ग्राउंड में अभ्यास करती तब भी भारी संख्या में स्कूलों- कॉलेजों के नौजवान इसके स्टार खिलाड़ियों को करीब से देखने के लिए पहुंच जाते। अर्थशास्त्री डा.अर्मत्य सेन भी ईस्ट बंगाल के मैच देखने के लिए अंबेडकर स्टेडियम में मौजूद रहते थे। 

Vivek Shukla


Navbharattimes 24 January 2022.

Picture- Subhash Bhowmick


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