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रवि अरोड़ा की नजर से......

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 थूक , हिजाब और बेरोजगारी  / रवि अरोड़ा



टेलीविजन पर मोदी जी का प्रायोजित इंटरव्यू देख रहा था । पूर्व निर्धारित सवालों के जवाब में मोदी जी धुआंधार बैटिंग कर रहे थे । मतदान की पूर्व संध्या पर जब प्रचार थम चुका था उस समय मोदी जी खुलेआम विपक्षियों को गरिया रहे थे और अपनी पीठ ठोक रहे थे । गज़ब  सेटिंग है कि नियमों के विरुद्ध हुआ यह इंटरव्यू सभी चैनल वालों ने पूरा दिखाया और तमाम अखबारों ने भी उसे प्रमुखता से छापा । बेशक सारी दुनिया ने इसका संज्ञान लिया मगर चुनाव आयोग की इस पर नज़र ही नहीं गई। खैर, अपने इस इंटरव्यू में मोदी जी ने जो कुछ भी कहा उससे मैं खुद को सहमत करने की जद्दोजहद अभी कर ही रहा था कि इसी बीच वट्स एप पर एक वीडियो किसी ने भेज दिया । उस वीडियो में बागपत का एक जूता व्यापारी राजीव तोमर जो कि कर्ज में डूबा है, जहर खा रहा है और रोते हुए कह रहा है कि मेरी मौत के लिए मोदी जिम्मेदार है । फेसबुक पर लाइव चले इस वीडियो में वह आरोप लगा रहा है कि मोदी सरकार छोटे व्यापारियों और किसानों की हितैषी नहीं है । बकौल उसके मोदी में शर्म होगी तो वह चीजें बदल देगा । इस व्यापारी के जहर खाने के बाद वीडियो में उसकी पत्नी भी जहर खाती हुई दिखाई पड़ती है । सच कहूं तो इस वीडियो को देखने के बाद मोदी जी की आत्मश्लाघी वार्ता पूरी देखने की इच्छा मर गई और मैंने टीवी बंद कर दिया । 


इस वीडियो ने इतना हिला दिया था कि रात में ढंग से नींद ही नहीं आई । सुबह हुई तो आधा दर्जन अखबार चाटने की अपनी पुरानी आदत से दो चार हुआ । सभी अखबारों में एक बड़ी खबर उतनी ही चुपके से सरकाई गई थी जितने चुपके से सरकार ने राज्य सभा में इसे प्रस्तुत किया था । खबर के मुताबिक एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानाद राय राज्य सभा में स्वीकार कर रहे हैं कि देश में पिछले तीन सालों में 16 हजार व्यापारियों ने दिवालिया होने के कारण आत्म हत्या कर ली है और 9 हजार से अधिक युवकों ने भी बेरोजगारी से तंग आकर अपने प्राण त्याग दिए । इतनी बड़ी खबर जिस पर संसद तक हिल जानी चाहिए थी और खुद प्रधान मंत्री को आकर सफाई देनी चाहिए थी , वह एक जूनियर मंत्री के मार्फत बेहद हल्के में निपटा दी गई और सरकार का इशारा समझ कर मीडिया ने भी इसे हौले से ही कालीन के नीचे सरका दिया । सरकार की नीतियों के चलते पच्चीस हजार लोगों की मौत के बजाय प्रधान मंत्री की लफ्फाजी पर अपनी सारी ताकत लगाने वाले मीडिया जगत के प्रति मन वितृष्णा से भर गया । रही सही कसर अब शाहरूख खान के थूकने और हिजाब कांड जैसी खबरों ने पूरी कर दी है । 


समझ नहीं आ रहा कि ये हो क्या रहा है ? कोई अपनी आदरणीय की मय्यत पर फातिहा पढ़ कर फूके तो हमें थूकता लगता है और खुले आम थूक लगा कर कोई पर्चे बांटे तो हम उसे अमृत समझ कर ग्रहण कर लेते हैं । कथित धर्म संसद के नाम पर नरसंहार की बात करने वालों पर हम चुप रहते हैं और कोई लड़की हिजाब पहन पर स्कूल कालेज जाए तो हमारी त्यौरियां चढ़ जाती हैं । ठीक है कि चुनाव हैं । बेशक इस बेला में खुराफातें होती ही हैं । मगर कोई सीमा तो तय हो । बिलो द बेल्ट वार न करने का कोई मानक तो हो । कम से कम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए तो जहर उगलने की कोई सीमा निश्चित होनी ही चाहिए । सबसे बढ़ कर मुल्क के मीडिया के लिए कोई प्रभावी आचार संहिता तो हो जिसके अनुरूप उन्हें कार्य करने के लिए बाध्य किया जा सके । कम से कम इतना तो हो ही जाए कि वे बेशक मुल्क में पांच करोड़ बीस लाख नए बेरोजगारों के पैदा होने की बड़ी  खबर न दिखाएं मगर ये थूक और हिजाब जैसी बकवास तो न ही परोसें ।


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