पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों से भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में तीन बातें उभर कर मजबूत तथ्य के तौर पर सामने आई हैं। ◆ एक- नरेंद्र मोदी का करिश्मा और उनके नेतृत्व वाली भाजपा ने जो "मजबूत नेता- दृढ़ इच्छाशक्ति" की रणनीति अपनाई हुई है, वो अन्य सभी दलों पर भारी है। मोदी का व्यक्तिगत प्रभाव जनता में बरकरार है। यह इससे साबित हुआ है कि कोरोना की दूसरी लहर से निपट पाने में उत्तरप्रदेश सरकार की नाकाफी कोशिशों से पैदा हुए गुस्से, किसान आंदोलन के कारण होने वाले नुकसान की जताई जा रही आशंका ,पेट्रोल की कीमतों से बढ़ती महंगाई का आक्रोश ये सब मुद्दे गौण हो गए? मोदी ने योगी के बजाय खुद को वोट देने की अपील की। जिसका असर हुआ। उन्होंने यादव कुनबे के परिवार वाद और उनकी सत्ता के दौरान दबंगई की याद दिलाई, प्रियंका गांधी पर भी कटाक्ष किये। कुल मिलाकर मोदी का प्रचार काम कर गया।
◆ दो- सोनिया-राहुल-प्रियंका के त्रिकोणीय हाईकमान वाली दुविधा से ग्रस्त कांग्रेस बुरी तरह तबाही की ओर है। उत्तरप्रदेश के पार्टी के प्रदर्शन की चर्चा बेमानी है क्योंकि सूबे में काँग्रेस का कोई वोटबैंक है ही नहीं। प्रियंका गांधी ने तारीफे काबिल मेहनत की जिससे जहां एक तरफ उसकी खुद की राजनीतिक छवि भाई राहुल के मुकाबले चमक कर सामने आई। दूसरा, अस्तित्व की चुनौती झेल रही पार्टी का कार्यकर्ता नई जिंदगी पा गया। भविष्य के लिए संगठन संघर्ष के लिए तैयार हो गया। लेकिन पंजाब और उत्तराखंड ऐसे राज्य थे जहां काँग्रेस सत्ता में आ सकती थी, ढीले हाईकमान, बेतुके निर्णयों से खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
राहुल ने कैप्टन अमरिंदर को जिस ढंग से बेइज्जत करके मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारा वो जबरदस्त नुकसान पहुंचा गया। ऊपर से प्रशांत किशोर की सलाह पर दलित मुख्यमंत्री देने की जल्दबाजी में चन्नी को बना दिया जिसकी जट सिखों में तो दूर की बात, आरक्षित वर्ग के पंजाबियों में भी पकड़ नहीं है। कैप्टन के विकल्प के लिहाज से बहुत हल्का नेता दे दिया। रही सही कसर प्रियंका गांधी की शह पर माहौल बिगाड़ने के बड़बोले खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्दू ने पूरी कर दी। सोनिया-राहुल ने डैमेज कंट्रोल के कोई प्रयास नहीं किये। इस उम्मीद से खुशफहमी में थे कि दलित मुख्यमंत्री मास्टरस्ट्रोक है।
यही हालत उत्तराखंड में हुई। हाईकमान की कमजोरी के मद्देनजर हरीश रावत ने बगावती तेवर दिखाए और दबा लिया। नतीजे सामने हैं।
कुल मिलाकर , काँग्रेस को अगर, आई रिपीट ,अगर बचाना है तो गांधी परिवार को अपने गिरहबान में झांकना होगा। राहुल गांधी को किनारे करना होगा, चूंकि गांधी परिवार के नेतृत्व के बगैर पार्टी चल ही नहीं सकती तो प्रियंका को अध्यक्ष बनाना होगा।
◆ तीन- अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में शानदार जीत हासिल करके भावी प्रधानमंत्री की रेस में खुद को अन्य दावेदारों से आगे कर लिया है। यह अलग बात है कि इन परिणामों के बाद मोदी और मजबूत हुए हैं। 2024 में उनको हराना बेहद मुश्किल होगा। हां यह जरूर है कि मीडिया राहुल के बजाय केजरीवाल को विपक्ष के नेता के तौर पर ज्यादा तरजीह देगा। अब केजरीवाल गृह मंत्री अमित शाह के निशाने पर पहले से ज्यादा रहेंगे। क्योंकि अगला चुनाव गुजरात में होना है जहां आम आदमी पार्टी पूरी ताकत झोंकेंगी। भाजपा और संघ परिवार भी नहीं चाहेगा कि केजरीवाल की पार्टी देश में काँग्रेस की जगह ले ले। खुद को प्रधानमंत्री पद की दावेदार समझने वाली ममता बनर्जी भी अब केजरीवाल के उभार के बाद रणनीति बदल सकती हैं। बहरहाल, केजरीवाल फोकस में रहेंगे,मीडिया के भी, जनता के भी। उनका दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस स्वीकार्यता पा रहा है।