पिछले पांच सालों में रांची कोई 12-15 बार गया हूँ फिर भी रांची मेरे लिए कल की तरह ही आज भी नया और लगभग अनजान शहर हैं. साल 2016 में कुछ माह के लिए रांची में रहने का मौका मिला. ख़ासकर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के जलवो के चलते रांची शहर और उनके कोच चंचल भट्टाचार्य की खबरें भी यदा कदा मिल जाती थी तो धोनी की सफलता क़ो लेकर चंचल के योगदान क़ो दिल्ली में भी चमकदार तरीके से देखा और परिभाषित किया जा रहा था. बेमोल भाव में भी कोई धोनी की परवाह करने वाला नहीं था मगर बालकपन से ही धोनी पर नजर रखने वाले चंचल की पारखी नजर क़ो केवल क्रिकेट और धोनी तक सीमित करना एक तरह से उनके प्रति अन्याय होगा. चंचल क़ो रांची की बजाय सभी खेलो और पूरे झारखण्ड का कोच कहा जाना ही शायद चंचल की पहचान की सार्थक परिभाषा होगी.
हाँ तो रांची पहुंचने के बाद अगले ही दिन रांची एक्सप्रेस अख़बार के दफ्तर में किसी ने मेरा परिचय खेल डेस्क पर काम कर रहें चंचल से कराया. मैंने सामान्य तौर पर इसे बेभाव लिया तब बताता गया की चंचल ही धोनी के कोच रहें हैं. इस बार मैं चौंक सा गया और उन्हें एक पत्रकार के रुप में सामने देखना अजीब लगा. पत्रकार और कोच चंचल जी से काफ़ी देर तक बातें होती रही.
चंचल दिन भर खेलो की गतिविधियों में व्यस्त रहते तो शाम क़ो आकर 8-10 खबरें लिखते थे. पेज की साज सज्जा से लेकर सभी खेलो के लिए भी जुटे जाते. रांची एक्सप्रेस अख़बार के दफ्तर में कोई तीन बार उनके साथ दर्जन भर युवा या किशोर खिलाड़ियों क़ो लाकर मिलवाया.
रांची एक्सप्रेस के तिरंगा कार्यक्रम के किसी समारोह में चंचल जी ने दर्जनब्भीर उन खिलाड़ियों से मुलाक़ात कराई जो एशियाड ओलम्पिक कॉमन वेल्थ गेम सहित देश और राज्य के लिए कोई हॉकी फूटबाल समेत ढेरों खेलो में भाग ले चुके थे.1980 के मास्को ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने वाली हॉकी टीम के डूंगड़ूँग आदि से भी मिला खेलो क़ो लेकर किस्से कहानियों से भरे चंचल के साथ समय बीताने का अनोखा सुख था. संयोगवश मेरे रांची प्रवास के दौरान ही महेंद्र सिंह धोनी पर बनी फ़िल्म का प्रदर्शन हुआ. पूरा शहर इस फ़िल्म क़ो लेकर उत्तेजित सा था. माहिर पत्रकार के साथ आँखो देखा हाल सुनाने में दक्ष उदय वर्मा जी भी धोनी क़ो लेकर अपने पिटारे से ढेरों किस्सों क़ो बता रहें थे. किस तरह सीनियर खिलाड़ियों के पीछे धोनी लगा रहता था या गाहेँ बेगाहेँ वो टिफिन पर हाथ साफ कर देता था सबो के पास धोनी की शैतानियो क़ो लेकर किस्से थे मगर चंचल अक्सर धोनी पर खामोश ही रहते. चंचल क़ो कभी भी डिंग हाँकते या धोनी के कोच की तरह अपना परिचय देते नहीं सुना. जबकि रांची एक्सप्रेस अख़बार के ही कई साथियों ने बताया की धोनी पर आज भी चंचल दा के हज़ारो रूपये बाकी होंगे. अरबपति बन गये धोनी के इस पहलू क़ो जानना अजीब सा लगा मगर चंचल दा ने इस पर कुछ कहने की बजाय उन्होंने कहा धोनी की तरह ही मेरे सैकड़ों खिलाडी हैं. उन पर क़र्ज़ की नहीं लगन की यादें मन में हैं. सभी खिलाड़ियों की पहचान ही मेरी पूंजी हैं. शान्त सागर की तरह खुद में लीन चंचल अपने नाम के ग्लैमर से दूर आज भी उनके कच्चेंपन क़ो तराशने निखारने मांजने और आकार देने में तल्लिन हैं. उनका मानना हैं की बच्चों के सामने दोस्त बनकर आगे बढ़ाना होता हैं.. शायद यही उनका मंत्र हैं कि खिलाड़ियों क़ो धोनी बनाने के बाद भी चंचल सबो के सामने सहज़ सरल सर्व सुलभ शांत होकर सबके साथ हैं. रांची छोड़ने के सालों साल बीत जाने के बाद भी चंचल मेरे मन में आज भी सजीव हैं. शायद झारखण्ड के सभी खिलाड़ियों कि पहली पसंद भी हैं.