🙃भारतीय पत्रकारिता के लगभग 100 साला सफर में कार्टून की हालत आज भी बड़ी दयनीय हैं. अंग्रेजी अखबारों में कार्टूनिंग की हालत हिंदी से बेहतर तो रही हैं. कुछ कार्टूनिस्ट इसकी लाज रखी हैं मगर हिंदी समेत तमाम भारतीय भाषाओ के सैकड़ों अखबारों क़ो यदि इकठ्ठा करके भी देखें तो भारतीय मीडिया में आज तक कार्टूनिंग का विकास नहीं हो पाया हैं. यानी कार्टून जगत आज भी अपनी पहचान साख और गुणवत्ता के स्तर पर अपनी राह की तलाश में हैं. उस पर यह संयोग एक दुश्वार सा प्रतीत होता हैं की कार्टून के स्टैण्डर्ड क़ो आगे ले जाने वाले नये पुराने कार्टूनिस्तो की तादाद इतनी कम और कमतर हैं की कार्टून के विकास और विस्तार के बाद भविष्य पर ही सवाल गहराता जा रहा हैं.
अलबत्ता मैं कार्टूनिंग जगत का हाल चाल लेने के लिए यह लेख नहीं लिख रहा हूँ बल्कि झारखंड के बेहतरीन कार्टूनिस्ट मोनी के ऊपर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ जिनके सक्रिय कार्टूनिस्ट जीवन का अभी 50 वा साल (1972-2022 ) चल रहा हैं. रांची जैसे शहर से रांची एक्सप्रेस अख़बार के प्रकाशन का 60 साल भी होने जा रहा हैं. यहां पर कल काअखंड बिहार और आज झारखंड के धनबाद से प्रकाशित अख़बार आवाज़ के प्रकाशन का 75 साल चल रहा हैं और यह हिंदी के सबसे पुराने अखबारों में एक हैं मगर आवाज से कनिष्ठ होकर भी रांची एक्सप्रेस कई मामलो में आवाज से बेहतर सिद्ध हुआ. आज यह सोचना भी चकित करता हैं की अपने साप्ताहिक आकार में भी रांची एक्सप्रेस के साथ कार्टूनिस्ट के रुप में मात्र 14 साल के मोनी लगातार कार्टून बनाते थे. बाद में 1977-78 से कॉलेजी छात्र मोनी उर्फ़ तपोव्रत चक्रवर्ती क़ो रांची एक्सप्रेस का स्टॉफऱ बनाया गया. मोनी क़ो बतौर कार्टूनिस्ट जोड़ने के पीछे तत्कालीन संपादक बलवीर दत्त की बड़ी भूमिका रही. जिसे साकार करते हुए मोनी ने बिहार क्षेत्र में ही सही मगर अपनी गुणवता से अपनी चमक क़ो राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया. इस मामले में रांची का यह अखबात पटना के नये पुराने अखबारों पर भी भारी पड़ता था. मोनी का दर्द था की उनके कार्टून के प्रसार और चर्चे का दायरा सीमित हैं जिससे उनकी पहचान का परचम पुरी तरह बेशक लहरा नहीं पाता था तो दूसरे कार्टूनों से भी वे कम. ही सामना करते थे लिहाज़ा उनकी रचनात्मकता की मौलिकता अनोखापन और अनूठा संवाद की चुभन का असर सबको मोहता था क्योंकि मीडिया में कार्टून का मतलब ही मोनी होता था. टपोव्रत चक्रवर्ती के नाम के बावजूद अपने घरेलू बाल पुकारू नाम मोनी से ही वे विख्यात हुए.
: यह एक संयोग ही हैं कि मिलकर अलग हो जाने के छह साल कर बाद जब मैं मोनी जी से बात करने कि इच्छा प्रकट की तो मेरे उस समय (2016) के दोस्तों और सहकार्मियों में ऋतु राज वर्षा और नवनीत नंदन ने सबका नंबर उपलब्ध कराया. मोनी. क़ो मुझसे बात करके तो ख़ुशी हुई मगर ख़ासकर हिंदी पत्रकारिता में कार्टून की हालत पर वे चिंतित दिखे बकौल मोनी कार्टून की हालत पिछले 50 साल में भी जस का तस ही हैं. 50 सालों में 10-20 भी ऐसे कार्टूनिस्टो का नहीं प्रकट होना इसकी दयनीयता क़ो बता रहा हैं जो कुछ कार्टूनिस्ट सक्रिय भी हैं तो सब अलग अलग राज्यों में अकेले चमक रहें हैं जिससे इस कार्टून क्षेत्र क़ो सबलता मिलने का सामूहिक फल सामने नहीं आ रहा. ढेरों कार्टूनिस्ट भी एक दूसरे से अनजान हैं
मोनी के 50 साला कार्टूनिस्ट जीवन की सबसे बड़ी ताक़त हैं की वे रांची के थे रांची के हैं और तमाम उम्र रांची वाला ही बन कर रह गये. रांची से बाहर न जाने के ढेरों कारण और विवशता भी हो सकती हैं मगर मोनी जैसा बडा सितारा तप व्रत और चक्र (तपोव्रत चक्रवर्ती )धारण करके भी बिहार और झारखंड में (से ) ही गांडीव के सारथी बन अपनी अलग पहचान क़ो बुलंद रखा .
: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से प्रकाशित सभी बड़े अखबारों के साथ भी आज नियमित स्टाफ के रुप में कार्टूनिस्ट कार्यरत नहीं हैं. थोड़ा पीछे जाकर देखें तो (1983-2000) नवभारत टाइम्स जनसत्ता के साथ काक सुधीर तैलंग इरफ़ान राजेंद्र घोपडरकर जैसे कार्टूनिस्टो ने हिंदी कार्टूनिंग क़ो बड़ा आकार दिया या अंग्रेजी कार्टूनिंग के बराबर समतुल्य कर दिया था. समय के साथ साथ तैलंग अंग्रेजी अख़बार में चले गये तो जनसत्ता वाले काक नवभारत टाइम्स में आकर थोड़े ही ही दिनों में अपनी चमक खो बैठे. तो राष्ट्रीय सहारा में उसी समय सक्रिय गोविन्द के कार्टूनों से उम्मीद जगी थी,मगर अपने संस्थान में संपादक बनने और अन्य बड़े दायित्वों के सामने कार्टूनिस्ट गोविन्द का कद बौना होकर खो गया.
: मैं बतौर कार्टूनिस्ट मोनी क़ो 1983 से जानता हूँ और वे मुझे सदा आकर्षित भी करते थे मगर लगातार अख़बार नहीं देखने की वजह से उनसे मेरा कोई हरा भरा रिश्ता नहीं था. दिल्ली में रहते हुए भी मोनी मेरे मन में सजीव थे. अलबत्ता 2016 में रांची प्रवास के दौरान मोनी से मिला और लगातार बातें चर्चा और क्या नया बनाया हैं इसकी मन में उत्कंठा बनी रहती थी. आज मोनी उर्फ़ तपोव्रत चक्रवर्ती दो दशक तक रांची एक्सप्रेस के साथ जुड़े होने के बाद रांची के ही अन्य अख़बार प्रभात खबर के संग जुड़ गये और लगभग दो दशक तक उसके साथ सक्रिय रहने के बाद मोनी एक बार फिर रांची एक्सप्रेस में आ गये और आजकल खूबसूरत सांध्य अख़बार गांडीव के साथ जमकर लगे हुए हैं.
मोनी का कहना हैं की एक कार्टूनिस्ट कभी बुढ़ा नहीं होता हरदम मानसिक रुप से जवान रहता हैं. समय के साथ कार्टून बनाने की तकनीक पर मोनी का मानना हैं कि आजकल कंप्यूटर से कार्टून बनाये जा रहें हैं मगर हाथ से कलम कूची ब्रश के संग ही बनाने का आनंद हैं. मोनी की सक्रियता क़ो सलाम 🙏🏿.