नाम त्रिभुवन ! मगर सारे भुवन नाप लिए. उनके कदमों में वामन की गति - यति देखी जा सकती है . पहाड़ी रास्ते जानते हैं कि एक दीवाना - बंजारा हज़ारों किलोमीटर दूर से मोटर साइकिल घरघराता हुआ उसके दामन में आकर सिर टिका देगा. वह रास्ते की सारी मुश्किलों को रौंदता हुआ पहुँचेगा और उसे अपनी आँखों में भर लेगा. वह त्रिनेत्र है. तीन आँखें हैं त्रिभुवन की. दो अपनी और एक कैमरे की आँख है. वह प्रकृति को अपनी पेंटिंग में उतारते हैं, साथ ही अपने कैमरे भी क़ैद कर लेते हैं.
इनके चित्रों को ध्यान से देखिए. रोशनी की लकीरें ऊपर की ओर उठती हुई दिखाई देंगी. मानों दृश्य , प्रेक्षकों के साथ संवाद कर रहे हो. त्रिभुवन प्रकृति के चितेरे हैं.
अपने लैंडस्केप में दृश्यों के भीतर जैसे आत्मा को तलाशते हैं. जैसे पहाड़ अभी अभी अपने पंख खोल देगा. वृक्ष ठहाके लगाएँगे. बर्फ़ अपनी ठंडी बाँहें खोल देगी. सड़कें करवट लेने की बेचैनी में बदहवास लंबी होती चली जाएँगी.
चित्रकार इनकी आत्मा को ढूँढते हैं, दृश्यों में. कला अपने उद्देश्य में यहाँ सफल है कि वह साधारण में असाधारण को ढूँढती है. या साधारण का असाधारणीकरण कर देती है. त्रिभुवन अपनी पेंटिंग में यही तो करते नज़र आते हैं. कुछ तलाशते हैं. दृश्यों की आत्माएँ ढूँढ रहे या प्रकृति के गूढ़तम रहस्यों को मुखरित करते हैं. प्रकृति इतनी विराट है कि उसे रंगों और रेखाओं में ठीक ठीक चित्रित नहीं किया जा सकता. उसकी कॉपी नहीं की जा सकती. कोई भी कला प्रकृति को साधने का प्रयत्न कर सकती है. चितेरे त्रिभुवन वही करते हैं. हम तक चित्रों के माध्यम से प्रकृति के अबूझ रहस्यों को पहुँचाते हैं. प्रकृति को वे “एक्सप्लोर “ करते चलते हैं, विभिन्न माध्यमों से. उनके पास ब्रश है, कैनवस है और कैमरा है. प्रिँट है. उनकी अभिव्यक्ति के दो सशक्त माध्यम उनके पास है. कैमरे से भी वे जादू जगाते हैं. तस्वीरें पेंटिंग -सी लगती हैं. कई बार भ्रम जगाते हैं कि पेंटिंग देख रहे हैं या तस्वीरें. प्रकृति की गतियों और आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त करने का कौशल अनूठा है. कई बार इनके चित्रों से गुजरते हुए मुझे एक ख़ास क़िस्म का विद्रोह नज़र आता है. प्रकृति के मौलिक रुप के साथ रचनात्मक विद्रोह, वो जो छुपाती है, चित्रकार उसे उघाड़ कर असली रंगों में एक्सपोज कर देते हैं. चित्र की इसी प्रवृति को विलियम हैजलिट ने मानवद्रोह (misanthropy) कहा है. जबकि “ कीथ” ने लैंडस्केप को “ homage to the subject” कहा है.
दो परस्पर विरोधी बयान एक साथ यहाँ खड़े दिखाई देते हैं. त्रिभुवन खोजी यात्री और विद्रोही चित्रकार हैं जो पूरी श्रद्धा के साथ यात्रा की डायरी पेंट करते जाते हैं. यात्रा का इतिहास है उनके चित्र जो एक ख़ास समय की प्रकृति के मिज़ाज को पकड़ते हैं. यात्रा की स्मृतियाँ , संवेदनशील बयान दर्ज करती हैं. वे सिर्फ़ प्रकृति का “ competent application “ भर नहीं होती.
उनमें दृश्यों की आत्मा का शोरगुल समाया रहता है. चितेरे इसी की खोज करते हैं. बयान को रंगों और रेखाओं में बदल देना, बड़ा कौशल है.
त्रिभुवन को यह कला बखूबी आती है तभी वे बर्फीले पहाड़ के भीतर से रंगों का इंद्रधनुष निकाल लाते हैं. स्थिर पहाड़ की गतियाँ दिखाते हैं. शांत पड़ी सड़कों की मौन अपील सुन लेते हैं. सड़कें यात्री के पदचाप से सिहर उठती हैं. प्रकृति के हर उपादान का मनुष्यों से अलग संबंध बनता है. उनका अलग महत्व है.
कैमरे की आँख से वे अपनी आँख जोड़कर ये सब देखते हैं . तब पेंटिंग और फ़ोटो का फ़र्क़ मिट जाता है.
यहाँ उनकी पेंटिंग और फ़ोटो दोनों लगा रही हूँ.