Quantcast
Channel: पत्रकारिता / जनसंचार
Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

विजयनगर सम्राट महाराज कृष्ण देवराय

$
0
0

 'हमारी विभूतियाँ ‘  में हम आज चर्चा करेंगे विजय नगर साम्राज्य के महान शासक कायस्थ कुल गौरव महाराजा कृष्ण देवराय की :

महान राजा कृष्ण देवराय का जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी को कर्नाटक के हम्पी में हुआ था। उनके पिता का नाम तुलुवा नरसा नायक और माता का नाम नागला देवी था। उनके बड़े भाई का नाम वीर नरसिंह था। 

राजा कृष्ण देवराय के पूर्वजों ने एक महान साम्राज्य की नींव रखी जिसे विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1350 ई. से 1565 ई.) कहा गया। देवराय ने इसे विस्तार दिया और मृत्यु पर्यंत तक अक्षुण बनाए रखा। विजयनगर साम्राज्य की स्थापना इतिहास की एक कालजयी घटना है। 'विजयनगर'का अर्थ होता है 'जीत का शहर'। सम्राट कृष्ण देवराय की ख्याति उत्तर के चित्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन और महाराजा भोज से कम नहीं है। जिस तरह उत्तर भारत में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, बाजीराव और पृथ्वीराज सिंह चौहान आदि ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था, उसी तरह दक्षिण भारत में राजा कृष्ण देवराय और उनके पूर्वजों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा और सम्मान को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था।

कृष्ण देवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे, जिन्हें 'अष्ट दिग्गज'कहा जाता था। अष्ट प्रधान या अष्ट दिग्गजों की मंत्रिपरिषद समाज के रक्षण कार्य पर दृष्टि रखती थी। सेना और गुप्तचर सीधे राजा के अधीन थे। राजा तक प्रजा की सीधे पहुंच थी और कोई भी व्यक्ति निश्चित समय पर राजा को अपनी वेदना सुना सकता था। कृष्ण देवराय कन्नड़ भाषी क्षेत्र में जन्मे ऐसे महान राजा थे, जिनकी मुख्य साहित्यिक रचना तेलुगु भाषा में रचित थी। कृष्ण देवराय तेलुगु साहित्य के महान विद्वान थे। उन्होंने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अमुक्त माल्यद’ या 'विस्वुवितीय'की रचना की। उनकी यह रचना तेलुगु के पांच महाकाव्यों में से एक है। कृष्ण देवराय ने संस्कृत भाषा में एक नाटक ‘जाम्बवती कल्याण’ की भी रचना की थी। इसके अलावा संस्कृत में उन्होंने 'परिणय’, ‘सकलकथासार– संग्रहम’, ‘मदारसाचरित्र’, ‘सत्यवधु– परिणय’ भी लिखा।

सम्राट का साम्राज्य अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक भारत के बड़े भूभाग में फैला हुआ था जिसमें आज के कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, गोhवा और ओडिशा प्रदेश आते हैं। महाराजा के राज्य की सीमाएं पूर्व में विशाखापट्टनम, पश्चिम में कोंकण और दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक पहुंच गई थीं। हिन्द महासागर में स्थित कुछ द्वीप भी उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे। उनके राज्य की राजधानी हम्पी थी। हम्पी के एक और  तुंगभद्रा नदी तो दूसरी ओर ग्रेनाइड पत्थरों से बनी प्रकृति की अद्भुत रचना देखते ही बनती है। इसकी गणना दुनिया के महान शहरों में की जाती है। हम्पी मौजूदा कर्नाटक का हिस्सा है।


 कृष्ण देवराय के राज्य में आंतरिक शांति होने के कारण प्रजा में साहित्य, संगीत और कला को प्रोत्साहन मिला। जनता भी स्वतंत्रता से जीवनयापन करती थी, जिसके कारण कुछ लोग विलासी भी हो गए थे। मदिरालयों और वेश्यालयों पर कराधान होने के कारण इनका व्यापार स्वतंत्र था। अत्यधिक स्वतंत्रता का जनता ने खूब लाभ उठाया। जनता के बीच राजा लोकनायक की तरह पूजे जाते थे। सम्राट कृष्णदेव राय को 1529 में हम्पी में मृत्यु हो गई।



Viewing all articles
Browse latest Browse all 3437

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>