डॉ.शंकर दयाल शर्मा देश के 25 जुलाई 1992 – 25 जुलाई 1997 तक नवें राष्ट्रपति रहे। उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में जॉर्ज गिल्बर्ट स्वेल को पराजित किया था। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवाई थी। बुद्धिमान और अति विनम्र डॉ.शंकर दयाल शर्मा 1971 में भोपाल सीट से लोकसभा के सदस्य बने और इस तरह उनका दिल्ली से संबंध बन गया। वे 1974 में केन्द्रीय संचार मंत्री बने।
उनके राष्ट्रपति बनने से पहले उनकी बेटी गीतंजली माकन और दामाद ललित माकन की आतंकियों ने कीर्ति नगर में उस समय हत्या कर दी थी जब ये दोनों घर के बाहर थे। यह घटना 31 जुलाई, 1985 की है। ललित माकन साउथ दिल्ली से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य थे। वे कांग्रेस के नेता अजय माकन के चाचा थे। जब ये जघन्य कांड हुआ था तब डॉ. शंकर दयाल शर्मा आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे। हत्या का कारण 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगे में माकन की भूमिका को बताया जाता है।ललित माकन सहित अन्य कांग्रेसी नेताओं पर सिखों के खिलाफ दंगा भड़काने के आरोप थे।
31 जुलाई 1985 को कीर्ति नगर में मौजूद अपने निवास पर लोगों से मुलाकात के बाद माकन अपनी कार में बैठ रहे थे तभी मौके पर स्कूटर व ऑटो से आए तीन आतंकियों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। इस घटना में ललित माकन, उनकी पत्नी गीतांजलि व सहयोगी बाल किशन की मौत हो गई थी जबकि सुरेश मलिक घायल हो गए थे।
बहरहाल, इस भयानक हत्याकांड के कई सालों के बाद डॉ. शर्मा भारत के राष्ट्रपति बने। वे सच्चे गांधीवादी थे। गांधी जी की जयंती और पुण्यतिथि पर वे और उनकी पत्नी श्रीमती विमला शर्मा राजघाट और गांधी स्मृति और दर्शन में अवश्य पहुंचते थे।
डॉ.शंकर दयाल शर्मा का निधन और कंधार कांड
डॉ.शंकर दयाल शर्मा का 26 दिसंबर 1999 में राजधानी में जब निधन हुआ तो देश कंधार कांड से जूझ रहा था। दरअसल इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण की घटना के बाद सारा देश हाईजैक विमान में सवार यात्रियों और क्रू मेंबर्स की कुशलता की प्रार्थना कर रहा था। सरकार भी कोशिश कर रही थी कि सारा मामला शांति से हल हो जाए। इसे कंधार कांड के रूप में याद किया जाता है। 24 दिसंबर 1999 को नेपाल से दिल्ली आ रहे एयर इंडिया के विमान का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। विमान में 176 यात्रियों और 11 क्रू मेंबर थे। जब यह सारा मामला चल रहा था तब डॉ. शंकर दयाल शर्मा का निधन हुआ तो उनकी मृत्यु की खबर को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। कारण यह था कि उस समय सारे देश की निगाहें सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच चल रही बातचीत पर टिकी हुई थी। अपहरणकर्ता 3 खूंखार आतंकवादियों की रिहाई की मांग कर रहे थे। अंत में भारत सरकार को तीनों आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था।
डॉ.शंकर दयाल शर्मा और राष्ट्रपति भवन दिवस