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(वशिष्ठ नारायण सिंह ) जिसकी भारत और बिहार ने कभी नहीं सुध ली

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 कृष्ण मेहता


          गणितज्ञ डा0 वशिष्ठ नारायण सिंह सदियों में पैदा होने वाली प्रतिभा थी ।काश !हमने उन्हें समझ कर सम्मान दिया होता तो आज भारत गणित के क्षेत्र में विश्व गुरु होता ।

       आज हम इस मुकाम पर खड़े होकर देखते हैं तो लगता है कि उनकी गलती यह थी कि जब दुनिया गणित में उनका लोहा मान रही थी ।उनको भरपूर सम्मान दे रही थी ।उस चरम विंदु पर वो भारत लौट आए ।ख्वाब था कि भारत के नौजवानों को गणित में शिरोमणि बनाएंगे । उनका ध्यान विज्ञान में गणित की अहमियत को समझाएंगे ।इसी सपने के साथ वे विदेशी सारे सम्मान को ठोकर मार कर अपने वतन लौट आए ।

       यहां वे जिस संस्थान में जाते उनके सहकर्मी उन्हें मजाक का पात्र बनाकर उपेक्षित करते ।उन संस्थानों के उच्च पदों पर बैठे हुए लोग उन्हें अपने लिए खतरा समझते । वह लोग जानते थे कि योग्यता के क्षेत्र में वे डा0 वशिष्ठ से मुकाबला नहीं कर सकते ।किसी योग्य व्यक्ति को अगर पागल करना है तो उसकी खिल्ली उड़ाओ । वही हुआ जब वो ज्यादा परेशान होते थे । तो संस्थान बदल लेते थे । भारतीय प्रोधोगिकी संस्थान कानपुर से मुम्बई फिर भारतीय सांख्यिकी  संस्थान में वो भटकते रहे । कहीं भी जैसे वो काम करना चाहते थे वैसा माहौल नहीं मिला ।1973 में उनका विवाह रानी सिंह से हुआ ।वो भी टिका नहीं या टिकने नहीं दिया ।उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया ।

     बात आगे बढ़ाने से पहले उनके बारे में जानकारी लें ।उनका जन्म 1942 में बिहार के एक सुदूर गांव बसंतपुर में हुआ । शिक्षा नेतरहाट स्कूल में हुई ।1958 में हायर सेकंडरी तक आते आते गणित के क्षेत्र में उन्होंने स्कूल में धाक जमा ली ।एक सवाल को पांच -छै तरीके से हल करने लगे । उन्हें पटना विश्वविद्यालय में बीएससी में प्रवेश मिला और यहां से उन्हें 1961 में गणित की उच्च शिक्षा के लिए कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय बर्कले भिजवा दिया गया ।

       यहीं से उन्होंने गणित की दुनिया में तहलका मचाना शुरू कर दिया ।डाक्टर आइसटीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देकर उन्होंने विज्ञान के संसार में हलचल पैदा कर दी ।गणित में गौस के प्रमेय को लेकर नयी थ्योरी सामने रख दी । उसी वर्ष उन्होंने पीएचडी की ।

       25 के इस नौजवान को 1967 में कोलम्बिया इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिक्स का डायरेक्टर बना दिया। 1969 में नासा ने उन्हें एक घटना को आज भी वहां याद किया जाता है कि अपोलो अंतरिक्षयान से लांच से पहले उसके कम्प्यूटर संक्षेप में बंद कर दिये गये ।वशिष्ठ नारायण सिंह कागज पेन से काम करते रहे ।उपस्थित वैज्ञानिक दंग रह गए यह पढ़कर कागज जब कम्प्यूटर ने काम करना शुरू किया तो उसकी गणना और डाक्टर वशिष्ठ की गणना एक थी । एक नहीं अनेक इस तरह तमाम शोध  से उन्होंने वैज्ञानिकों को दंग किया ।गणित के लिए नए प्रयोग व जानकारी से उसे समृद्ध किया ।

       भारतीय संस्थानों में जमे हुए लोगों ने वास्तव में उन्हें पागल कर दिया । वो भाग निकले । बरसों बाद वो एक गांव में शादी समारोह की झूठी पत्तलों से खाना निकालकर खाते हुए मिले ।बदहाल ऐसे कि पहचानना मुश्किल । एक शख्स ने पहचाना बड़ी मशक्कत से उन्हें घर लाया गया ।बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पागल खाने में भर्ती कराया । रोग निकला सिजोफ्रेनिया !आज भी एक सवाल शेष है कि क्या उनकी अहमियत को देखते हुए अच्छे इलाज की व्यवस्था नहीं की जा सकती थी ।

        मैं 1984 में मैं उनके गांव बसंतपुर गया उनके एक टीचर शिवाय बाबू तो रोने लगे, कहा -काश हमार बबुआ हिन्दुस्तान में न आया होता ।"इस महान व्यक्ति को जिन्दा रहते सम्मान दिया गया होता जिसका वो हकदार था ।काश  ! :::::::: !

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***आनंद शर्मा की वाल से साभार***


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