बहुत सारे बोलते हैं कि उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। वह पाई-पाई का मोहताज है। यह भी कहा जाता है कि चमड़ी चली जाए पर दमड़ी नहीं देगा। यह कहावत क्यों बना है
एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा.पाई-पाई का हिसाब रखना व सोलह आने सच जैसे मुहावरे तो आप जानते ही होंगे। इनका चलन भी भाषा के बाजार में ¨जदा है, पर जिन मुद्राओं से ये मुहावरे बने हैं, अब वे बाजार के लिए इतिहास बन चुकी हैं। चलन से पूरी तरह से बाहर ये मुद्राएं भाषा के नवीन बाजार में अब भी चलन में हैं। युवा पीढ़ी हमारी प्राचीन मुद्राओं, फूटी कौड़ी, कौड़ी, दमड़ी, आना, ढेला, पाई के बारे में भले न जानती हो, लेकिन इनसे जुड़़े मुहावरे उनकी जुंबा पर आज भी ¨जदा हैं।
भारतीय मुद्रा का इतिहास बहुत पुराना है। मुगल शासन से लेकर आज तक भारतीय मुद्रा कैसे शुरू हुई, इसके बारे में कहा जाता है कि मुगल शासन के बाद भारतीय मुद्रा को समय-समय अनुसार विभिन्न प्रकार से जाना जाता रहा। सबसे पहले प्राचीन भारतीय मुद्रा फूटी कौड़ी से कौड़ी, कौड़ी से दमड़ी, दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना, आना से रुपया बना। अगर किसी के पास 256 दमड़ी होती थी तो वह 192 पाई के बराबर होती थी।
इसी तरह 128 धेला, 64 पैसे, व 16 आना 1 रुपये के बराबर होता था। वहीं तीन फूटी कौड़ी को एक कौड़ी और 10 कौड़ी एक दमड़ी कहा जाता रहा। दो दमड़ी से एक धेला बनता था। डेढ़ पाई से एक धेला, तीन पाई को एक पैसा कहा जाता रहा। तब चार पैसा एक आना होता था। उसके बाद 1, 2, 3, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे, 1 रुपया तथा 2, 5, 10 रुपये का सिक्का भारतीय मुद्रा में शामिल हुआ। अब भारतीय मुद्रा में 50 पैसे और इससे पहले के सिक्के भारतीय रिजर्व बैंक ने बंद कर दिए हैं।
युवा पीढ़ी को पता ही नहीं कि कभी इतिहास बनी ये मुद्राएं ही पूरे बाजार को चलाती थीं। इनसे पूरा बाजार खरीदा जाता था। अब इनके बार में युवा पीढ़ी जानती ही नहीं। उनसे जुड़े मुहावरे बोलने वाली ये पीढ़ी इन मुद्राओं के बारे में पूछने पर चुप्पी साध जाती है। पर इतना तो सच है कि वह मुद्राएं अब भले ही बाजार खरीदने की ताकत नहीं रखतीं, लेकिन 21वीं सदी के इस समृद्ध भाषा के दौर में भी अपने चलन को बनाए रखे हुए हैं।
युवा पीढ़ी कहती है कि मुहावरों को तो जानते हैं, इसे पढ़ाया गया है, लेकिन इन प्राचीन मुद्राओं के बारे में हमे कुछ पता नहीं है।