प्रिय विनोद!
तुम्हारी उदारता गजब की है ।तुम दोस्ती में में आंख ही बंद कर लेते हो।हर किसी बढ़िया रहे भूत को गले लगा लेते हो।न कोई गिला न कोई शिकवा।कौन न मर जाए तुम्हारे इस शंकर पन पर!भूत-पिशाच सब सिर पर मृदंग करते रहें,उनसे वही अपनापा। चाहे वो दिखावे का ही व्यवहारिक अपनापा हो।कहां से लाते हो इतना सदा नीरा शहद?सब में मिठास ढूंढ़ लेते हो?
तुमने बहुत मेहनत और दक्षता से आंदोलनजीवी किताब लिखी है।तुम्हें बार-बधाई/शुभकामनाएं दे चुका हूं।देता रहूंगा।लेकिन इतनी भी क्या आफत आ गई कि हर पापी-पाखंडी को किताब भेंटकर लोट-पोट नजर आते हो? तुम्हारी किताब का भव्य विमोचन उत्सव हो चुका है।इसके पहले तुमने क ई भगवा पुरूषों को किताब भेंट की थी।इन तस्वीरों को खुशी-खुशी अपनी सोशल मीडिया की वाल पर स्थापित भी कर चुके हो।इस पर हम दोनों के साझा अग्रज पत्रकार आनंद स्वरूप वर्माजी जी ने सख्त एतराज सोशल मीडिया में उठाया था।चलिए, आदरणीय वर्मा जी, तो खांटी 24कैरेट वाले धुर वामपंथी विचार धारा के हैं।उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रचंड ईमानदारी और कट्टर सिद्धांत वादिता से जिया है।वे क्षुब्ध रहे थे।
कल तुमने एक पोस्ट में अपनी किताब राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश से भेंट की चंस्पा की।हरिवंश की तारीफ में कुछ कसीदा भी चेंपा।ये मुझे भी अखरा।बहुत अखरा !
माना कि हरिवंश जी तुम्हारे पुराने मित्र हैं।सच तो ये है कि वे हम सभी जन पक्षधर पत्रकारों के चहेते रहे हैं।मेरे भी आदरणीय रहे हैं।कुछ महीने उनके अखबार के लिए दिल्ली से रिपोर्टिंग भी कर चुका हूं।वे इंसान के रूप में भी बहुत उम्दा रहे हैं।लेकिन उप सभापति के रूप में वे अपना भ्रष्टतम रूप भी दिखा चुके हैं।राजनीतिक आकाआओं को खुश करने के लिए महाशय ने जबरन बहु चर्चित किसानों से जुड़ा विधेयक पास घोषित किया था।ये सर्वथा गलत था।संसद की गरिमा के साथ बलात्कार था।मैंने उसी दौर में बड़ी पीड़ा के साथ जमकर आलोचना की थी।उनको बुरा भी लगा।लेकिन मुझे कोई अफसोस नहीं है।अब तुम इसी घोर अवसरवादी को सार्वजनिक तौर पर गदगद होकर गले लगाते फोटो चिपका रहे हो,तो विनोद !बहुत पीड़ा हुई।तुम मेरे करीबी बेहतरीन मित्र हो।मुझसे ज्यादा उम्दा जन पक्षधरता वाले रहे हो,लेकिन इस उम्र में अचानक शंकर भोले बनने की क्या सूझी?जब कि जानते हो,हम-तुम शंकर नहीं बन सकते।सामाजिक भूत-प्रेतों को गले लगाकर उनकी मुक्ति नहीं करा सकते, तो फिर अपनी संजोई हुई जन पक्षधर छवि को क्यों तार-होने दिया जाए?बोलो!विनोद!