आजमगढ़ विश्वविद्यालय में शोधपीठों की भी स्थापना हो वाइस चांसलर साहब!
@ अरविन्द सिंह
पिछले दिनों सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय आजमगढ़ के कुलपति प्रोफेसर पीके शर्मा जी से एक सौहार्द मुलाक़ात उनके विश्वविद्यालय के अस्थाई कार्यालय में हुई। साथ में थे मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक अखिलेश यादव। इसके पहले उनसे दो मुलाकातें और हुईं थीं, पहली इसी कार्यालय में, तो दूसरी स्थानीय गरुण होटल में उनके नागरिक अभिनंदन में, उनके सम्मान में माल्यार्पण करने लिए मुझे संचालक द्वारा सामने से बुलाया गया था।
सामान्य शिष्टाचार भेंट के बाद उन्होंने कहा - 'पिताजी के निधन का समाचार मिला, तेरहवीं में अचानक से कहीं शायद बाहर जाने से आ नहीं सका।'
इस दौरान विभिन्न विषयों पर बातचीत होती रही, विशेषकर विश्वविद्यालय की गरिमा, शैक्षिक स्तर और उसकी भविष्य की परियोजनाओं पर। विश्वविद्यालय की उपाधि का मूल्यांकन देश और दुनिया में एक बड़े और मूल्यपरक शैक्षिक केन्द्र के रूप में हो, इसकी उपाधि को सम्मान मिले और सबसे बड़ी बात जो मेरे द्वारा उठाया गया कि-संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी में विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों से कितनी मदद मिल पाएगी। यह बहुत ही जरूरी सवाल है, क्यों कि एक विद्यार्थी -जो अपने जीवन का 3-4 या05-6 बरस या उससे भी अधिक समय उपाधियों के लिए विश्वविद्यालय को जब देगा,तो इन उपाधियों के पाठ्यक्रम उसके कंप्टीशन में कितनी मदद दे सकेंगे, इस पर भी विश्वविद्यालय के शिक्षा परिषद और कुलपति महोदय को ध्यान देना होगा। एक राज्य विश्वविद्यालय के रुप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय जब पूरब का आक्सफोर्ड बन सकता है तो आजमगढ़ का यह राज्य विश्वविद्यालय, क्या उस तरह की गरिमा और महानता को छू भी सकता है? यह सवाल भी और चुनौती भी।
दरअसल, यह संभव है इसके शिल्पकारों और परिकल्पकों की विराट और महान सोच पर, उसके महान उद्देश्यों पर,। उनके त्याग और समर्पण पर। इस पर ध्यान देना चाहिए विश्वविद्यालय अभियान के मित्रों और विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों को। अन्यथा की स्थिति में यह भी एक उपाधि वितरण केन्द्र बन कर एक महाविद्यालय की गरिमा को भी नहीं छू पाएगा।
यद्यपि आज कल कुलपतियों की नियुक्ति राजनीतिक हो रहीं हैं, लेकिन आज़मगढ के कुलपति प्रोफेसर पीके शर्मा जी एक कुशल कृषि वैज्ञानिक और योग्य परिकल्पक हैं।
अपनी विशेषज्ञता से वे कृषि क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय की भूमिका को अग्रणी रखना चाहते हैं, जिससे कृषि और उससे जुड़े उद्योगों का विस्तार हो, यहां के कृषकों के जीवन में खुशहाली आएं। इस निमित्त वे विश्वविद्यालय कैंपस से सटे कुछ और जमीन चाह रहे हैं, 15-20 एकड़ भी मिल जाए तो भी एग्रीकल्चर फार्मिंग और एजूकेशन हब बना सके। अगर सटे न मिले सके तो 1-2 किमी की दूरी पर भी मिल सके तो यह परियोजना जमीं पर उतरती नज़र आएंगी।
उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय में लगभग सभी आधुनिक पाठ्यक्रमों को रखा गया है, पत्रकारिता को भी रखा गया है।
यह उनकी दूरदर्शिता और अनुभव की उपज है। इसी के साथ आजमगढ़ उनसे यह भी अपेक्षा रखता है कि- आजमगढ़ की पौराणिकता, ऐतिहासिकता, साहित्यिकता और आजादी के आंदोलन में योगदान आदि विषयों पर गहन अध्ययन के लिए -1- महापंडित राहुल सांकृत्यायन शोधपीठ, 2- गुरुभक्त सिंह भक्त शोध पीठ, 3-अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध शोध पीठों की स्थापना पर भी पहल करें।
निश्चित ही यह विश्वविद्यालय अपने उद्देश्यों को लेकर शिक्षा जगत में एक नया हस्तक्षेप कर सकेगा।
हार्दिक शुभकामनाएं के साथ!
अंत में -
''वतन की रेत मुझे एड़ियां रगड़ने दें/
मुझे यकीं हैं पानी यहीं से निकलेगा।''