आतंक, बन्नू, बन्नूवाली मेट्रो में और दादा ध्यानचंद / विवेक शुक्ल
पाकिस्तान का बन्नू शहर। राजधानी दिल्ली तथा एनसी/ आर में बन्नू से आकर बसे हजारों परिवार रहते हैं। दादा ध्यानचंद भी बन्नू में रहे। बन्नू वाला पाकिस्तान हॉकी का सुपर स्टार अब्दुल रशीद दिल्ली में रहा। बन्नू से आए परिवारों के बुजुर्ग सदस्य बीते दो-तीन दिनों से वहां तहरीक-ए-तालिबान के आतंकियों के आतंक पर नजर रख रहे थे। खैबर पख्तूनख्वा सूबे के बन्नू में स्थित काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट में मिलिट्री इंटेलीजेंस और पुलिस के कुछ अधिकारियों को बंधक बना लिया था। अंत में,दो दर्जन से ज्यादा आंतकी मारे गए।
बहरहाल, राजधानी और फरीदाबाद में बड़ी तादाद में बन्नू वाले रहते हैं। वहां पर इनका समाज है। आप कभी मूलचंद मेट्रो स्टेशन से फरीदाबाद के सफर पर निकलिए। आपको रास्ते में पंजाबी से मिलती-जुलती इस जुबान को बोलने वालों की तादाद क्रमश: बढ़ती है। ‘यारा, मौसम ठड्डा थिंदा’( बंधु, मौसम ठंडा हो रहा है) या ‘भ्रा,ठिक इन मुंडा-कुंड़ी’ ( भाई,बेटा-बेटी ठीक है?)। ‘ आप कौन सी जुबान बोल रहे है?’,हम एक सहयात्री से पूछते हैं। कुछ ठहर कर जवाब मिलता है, ‘ये बन्नूवाली है। इसे डेरेवाली भी कहते है’। बन्नू से1947 में विस्थापित लोग दिल्ली और फरीदाबाद में बसाए गए थे।
बन्नू में दादा ध्यानचंदO
आप फरीदाबाद से मेट्रो रेल में वापस दिल्ली वापस आ रहे होते हैं,तो आपको फिर से बन्नूवाली सुनाई देने लगती है। कुछ मुसाफिर बन्नूवाली बोल रहे होते हैं। यानी आपको फरीदाबाद के सफर में बन्नूवाली सुनाई देती रहेगी। इस बीच, दादा ध्यानचंद ने भी अपनी जिंदगी के कुछ साल बन्नू में गुजारे हैं। ये 1940 के दशक के आरंभ की बातें हैं। वे तब सेना में थे और हॉकी की दुनिया में जादूगर का दर्जा हसिल कर चुके थे। पाकिस्तान हॉकी टीम के कप्तान रहे अब्दल रशीद कहते थे कि बन्नू में हॉकी को ले जाने वाले दादा ध्यानचंद ही थे। वे जब वहां के मैदानों में खेला करते थे तब सारा बन्नू शहर उनकी मैदान में लय,गति और ताल देखने के लिए पहुंचता था। सेंटर हॉफ की पोजिशन पर खेलते थे अब्दुल रशीद। वे पाकिस्तान की टीम के क्रमश: 1972 के म्युनिख ओलंपिक खेलों में कप्तान और 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में कोच थे। रशीद को सक्रिय हॉकी छोड़ते ही पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) ने 1980 में अपने दिल्ली के दफ्तर में ट्रांसफर कर दिया। वे यहां कार्गो मैनेजर के पद पर काम करने लगे। रशीद दिल्ली आने के बाद शिवाजी स्टेडियम हॉकी के मैच देखने जाने लगे।
जब दिल्ली में खेलता था बन्नू वाला
बन्नू वाले अब्दुल रशीद दिल्ली आने के बाद शिवाजी स्टेडियम मैच देखने चले जाते। एक दिन उन्हें मैच देखते हुए दिल्ली हॉकी के दो बेहतरीन खिलाड़ियों कुक्कू वालिया और भूपिंदर सिंह ने पहचान लिया। आखिर रशीद हॉकी की दुनिया का बेहद जाना-पहचाना चेहरा रहे थे। रशीद दर्शक दीर्घा से दिल्ली हॉकी लीग का एक मैच देख रहे थे। रशीद को भी अच्छा लगा कि उन्हें यहां किसी ने पहचाना लिया। उन्होंने दोनों से दिल्ली हॉकी लीग में खेलने की इच्छा जताई। भूपिंदर सिंह ने उन्हें उसी समय खालसा ब्लूज से खेलने की ऑफर दे दी। और देखते ही देखते, पाकिस्तान का पूर्व कप्तान दिल्ली में खेलने लगा। वे दो साल खालसा ब्लूज से खेले। हालांकि उनमें पहले वाला तो दमखम नहीं रहा था पर वे बीच-बीच में अपने जौहर दिखा देते थे। वे यहां के नौजवान खिलाड़ियों को हॉकी की बारीकियां भी बताने लगे। वे लगभग तीन साल यहां पर रहने के बाद 1983 में वापस चले गए। पर उनका अपने दिल्ली के मित्रों से संबंध बना रहा। वे भी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बन्नू शहर से आते थे। रशीद का कुछ समय पहले निधन हो गया था।
उनकी रामलीला में उर्दू
- इस बीच, फरीदाबाद के बन्नू समाज की रामलीला में संवाद बन्नूवाली तथा उर्दू में होते हैं। एक उर्दू का संवाद राम-रावण के बीच का पेश है। रावण को ललकारते हुए राम कहते हैं, “रावण,तुम शैतान हो। तुम जुल्म की निशानी हो। तुम्हें जीने का कोई हक नहीं है।” रावण का जवाब। “ राम,मैंने मौत पर फतेह पा ली है। पूरी कायनात में मेरे से ज्यादा बड़ा और ताकतवर शख्स कोई नहीं है। मेरे से फलक भी खौफ खाता है। तू जा अपना काम कर।” उर्दू में रामलीला क्यों? रामलीला की बात हो और हनुमान जी सामने न आएं ये हो नहीं सकता। तो पेश हनुमान जी एक संवाद। वे सीता के पास पहुंचते हैं। सीता कैद में रावण की। वे सीता के सामने नतमस्तक होकर अपना परिचय देने के बाद कहते है- “ मां, मैं आपको बहिफाजत के साथ भगवान राम के पास ले जाऊंगा। आप कतई फिक्र मत करें। मुझे तो अभी भगवान राम का हुक्म नहीं है,अगर होता तो मैं आपको अभी वापस ले जाता इन शैतानों से दूर।” एक संवाद सीता-रावण का भी। रावण कहता है, ‘अब भूल जा अपने शौहर को। मैं ही हूं तेरा शौहर।’ ये सुनकर गुस्से में सीता कहती हैं- ‘दगा-फरेब से मुझको ले आया तू। जलील शख्स। मनहूस इंसान। तू खाक हो जाएगा।’
विवेक शुक्ला, नवभारत टाइम्स, 22 दिसंबर 2022
Pictures- Dhayan Chand, scene in Banno and Abdul Rashid, former Pakistan hockey captain.