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धूमिल होती पत्रकारिता और गली गली में पत्रकार

 *धूमिल होती पत्रकारिता पर संगठन से लेकर अफसरशाही तक सभी खामोश*▪️


 *एक अनपढ़ छाप पत्रकार हर गली नुक्कड़ चौराहे पर ले रहा है जन्म/* ▪️


 अहमद खान*✍️

*सहारनपुर/*✔️

 *आज के इस डिजिटल युग में टीवी न्यूज़ चैनल के नाम पर एवं समाचार पत्रों के नामों तक ऐसे तथाकथित अनपढ़ छाप पत्रकारों ने मोर्चा संभाला लिया है, जो कबाड तस्कर,से लेकर आलू सब्जी प्याज बेचने वाले हुआ करते थे. जो अपनी शिक्षा दीक्षा से अज्ञानी तो है ही इसके अतिरिक्त पत्रकारिता के ज्ञान से भी अज्ञानी हैं, खैर व्यवसाय छोटा हो या बड़ा व्यवसाय तो व्यवसाय होता है, और मेहनत करने में शर्म कैसी लेकिन असल मुद्दा तो यह कि कुछ ऐसे ही तथाकथित अज्ञानी अनपढ़ छाप पत्रकारों ने पत्रकारिता के नाम पर पत्रकारिता कि दुनिया में घुसपैठ करके पत्रकारिता को शेमलेसफुल कि श्रेणी में डाल रखा है. यह तथाकथित अनपढ़ छाप पत्रकार सुबह से लेकर शाम तक अपने मोटर वाहन पर चहल कदमी करते हुए देखे जा सकते हैं, जिनके टारगेट पर शहर भर में बन रहे या तो अवैध भवन निर्माण होते हैं या फिर किसी चौकी थानों के इर्द-गिर्द घूमते हुए आपको नजर आ जाएंगे. और कमाल तो देखिए हुजूर इन तथाकथित निरक्षर पत्रकारों के हाथों में अगर आप कलम थमाकर इनसे एक  प्रार्थना पत्र भी लिखवाएं तो हुज़ूर यह तथाकथित पत्रकार प्रार्थना पत्र का मसौदा भी सही प्रकार से नही बना सकते, यह स्वयं को क्राइम रिपोर्टर का दर्जा देकर जैसा लोहा ऐसी चोट के अनुसार ही अपने कार्य को अंजाम देते हैं. यह तथाकथित पत्रकार चौकी थानों में बैठ कर आए हुए फरियादियों से उसकी फरियाद पर अपना ध्यान केंद्रित कम ही रखते हैं, क्योंकि संबंधित प्रार्थना पत्र इनकी समझ से परे है और मौके पर नोटिंग करना या लिखना इन्हें आता नहीं, क्योंकि इनका लक्ष फरियादियों को गोल मोल घुमा कर देखना और उन्हें परखना अपनी सेटिंग बाजी के खेल में यह लोग अधिक माहिर होते हैं, यहां तक कि चौकी इंचार्ज महोदय को भी इसकी भनक नहीं हो पाती है यह तथाकथित अज्ञानी पत्रकार महोदय जो प्रार्थना पत्र लिखने में भी सक्षम नहीं हैं, केवल इंचार्ज महोदय उसके आईडेंटी कार्ड से ही उसे पत्रकार समझ बैठे हैं,यह तथाकथित निरक्षर पत्रकार अपना हुलिया भी वास्तविक पत्रकारों की तर्ज पर उसी प्रकार से बना लेते हैं, बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती है जनाब यह झोला उठाए पूरे शहर का भ्रमण करते फिरते हैं, और जहां कहीं भी इन्हें अवैध निर्माण होता हुआ दिखाई देता है, तो उस भवन निर्माण स्वामी पर अपने ही जैसे तथाकथित पत्रकारों का झुंड बनाकर बारी बारी से उस बेचारे पर धावा बोल देते हैं.यह तथाकथित अनपढ़ छाप पत्रकार विकास प्राधिकरण के कुछ छोटे मोटे कर्मचारियों से सेटिंग बाजी  करके अपने घरों का चूल्हा चौके का तो बंदोबस्त कर ही लेते हैं, अर्थात अपनी रोटियां तो सीधी कर लेते हैं और बचे कुचे पैसे से अपने मोटर वाहन में अगले दिन के लिए तेल डलवा कर फिर किसी भोले भाले व्यक्ति को हलाल करने के लिए निकल पड़ते हैं, इससे पत्रकारिता तो बदनाम हो ही रही है इसके अतिरिक्त विकास प्राधिकरण को कलंकित करने का कार्य भी जमकर कर रहे हैं, जिस प्रकार से सहारनपुर जिले में पत्रकारों की बाढ़ ने एक कहर सा मचाया हुआ है, इससे ना सिर्फ वास्तविक पत्रकारिता धूमिल हो रही है अपितु वास्तविक पत्रकारों की छवि को भी इन अनपढ़ छाप पत्रकारों के द्वारा धूमिल किया जा रहा है. आश्चर्य होता है कि इस भयजनक  मुद्दे पर पत्रकारों के संगठन भी इन तथाकथित पत्रकारों का तमाशा खामोशी से बैठ कर देख रहे हैं. इसमें कोई दौराय नहीं है कि अगर इन तथाकथित पत्रकारों पर अभी से ही नकेल नहीं कसी गई तो आने वाले समय में पत्रकारिता पर इसके बड़े घातक परिणाम देखने को मिल सकते हैं. हर गली नुक्कड़ चौराहे पर दिन प्रतिदिन एक तथाकथित अनपढ़ पत्रकार जन्म ले रहा है, इसे रोकने के लिए जिम्मेदारान संगठनों को आगे आकर पत्रकारिता को बचाने की मुहिम छेड़नी ही होगी, इसके अतिरिक्त शासन प्रशासन को भी सचेत करना होगा,यह झोलाछाप पत्रकार जिस प्रकार से आम जनमानस के बीच पत्रकारिता के नाम पर एक ऐसा भय का माहौल उत्पन्न किए हुए हैं, की पत्रकारिता को भी इन झोलाछाप निरक्षर पत्रकारों से शर्म सी महसूस होने लगी है एक समय वो था कि एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त हुआ करती थी। कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द राजनेताओं,व प्रशासनिक अधिकारियों की कुर्सी को हिलाकर रख देता था। लेकिन आज कुछ ऐसे ही तथाकथित पत्रकारों ने ऐसा संवाद कायम कर दिया है कि अधिकारी और राजनेता तक इस पत्रकारिता से कतराते हुए दिखाई देते हैं, आपको यह भी बताता चलूँ कि पत्रकारिता ने ही हमारे देश की आज़ादी में अपनी अहम् भूमिका निभाई थी। जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को जागरूकता लाने के उद्देश्य से अपनी बातों को उन तक पहुचाने व अंग्रेजो की गतिविधियों को लोगो से रुबरू कराने के लिए उस वक्त समाचार पत्र,व पत्रिकाओं की शुरूआत कि गयी थी। जिससे समाचार-पत्र पत्रिकाओं ने देश के लोगो को जोड़ने व एकजुट करने में एक अहम भूमिका निभाई थी! लेकिन आज यही पत्रकारिता पत्रकारिता की रक्षा करने वालों से अपनी लाज बचाने की गुहार लगा रही है. लेकिन अफसोस सब खामोश हैं.*


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