प्रारूप समिति
By 13/06/2011 21:16:00
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तीसरे प्रेस आयोग के लिए आयोजित पहली बैठक में जो सुझाव आये थे उन्हें शामिल करके एक प्राथमिक प्रारूप तैयार कर लिया गया है और इसी प्रारूप को अब आगामी 15-16 जुलाई को इंदौर में वितरित किया जाएगा जहां प्रभाष परंपरा न्यास की ओर से भाषाई पत्रकारिता का महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी द्वारा तैयार इस प्रारूप में तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत पर बल देते हुए बताया गया है कि आज भाषाई पत्रकारिता का युग है. अभी देश के जो दस चोटी के अखबार हैं वे सभी भारतीय भाषाओं के हैं. आनेवाले दशक में भारतीय भाषाओं के पाठकों की संख्या में असाधारण वृद्धि होने जा रही है....इसलिए इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि प्रेस व मीडिया के माध्यम से नये सिरे से सांस्कृतिक आक्रमण, उपभोक्तावाद और लोकमत अनुकूलन के प्रयास किये जाएंगे. ऐसे में आधिपत्य की लड़ाई में बहुआयामी निरंकुशता पैदा होगी. आयोग के लिए दलील देते हुए रामशरण जोशी अपने प्रस्तावना में लिखते हैं कि "इस संभावित अराजकता, उच्छृंखलता, निरंकुशता जैसी प्रवृत्तियों से निपटने के लिए राज्य, पत्रकार, नेता, संवेदनशील प्रेसपति और कानूनविदों को सक्रिय होना होगा. इस दृष्टि से तीसरे आयोग की स्थापना की दिशा में बहुस्तरीय कदम उठाने होंगे."
इसी बहुस्तरीय कदमों की दिशा में पहला कदम है एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन जो कि तीसरे प्रेस आयोग की संभावना को मजबूत करने के लिए प्रारूप पर काम करेगा. रविवार की बैठक में मौजूद नामवर सिंह ने कहा कि पिछले दो प्रेस आयोग से अलग यह प्रेस आयोग सिर्फ सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों का आयोग न हो बल्कि जैसे लोकपाल के लिए जनता और सरकार के प्रतिनिधियों की समिति बनी है उसी तर्ज पर एक समिति बने.
न्यास की योजना यह है कि अगले एक महीने तक इस बारे में और विचार आमंत्रित करके इंदौर में इस विषय पर विचार विमर्श किया जाएगा और वहां जो प्रारूप अथवा प्रस्ताव पारित होगा उसे लोकसभा के स्पीकर मीरा कुमार को सौंप दिया जाएगा. न्यासी रामबहादुर राय का कहना है कि क्योंकि संसद ही सर्वोच्च है इसलिए हम सरकार के पास जाने से बेहतर समझते हैं कि हम संसद को कहेंगे कि वह तीसरे प्रेस आयोग के लिए पहल करे.
रविवार की बैठक में करीब 100 पत्रकार मौजूद थे जिन्होंने तीसरे प्रेस आयोग के लिए आयोजित परिचर्चा में भाग लिया.
वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी द्वारा तैयार इस प्रारूप में तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत पर बल देते हुए बताया गया है कि आज भाषाई पत्रकारिता का युग है. अभी देश के जो दस चोटी के अखबार हैं वे सभी भारतीय भाषाओं के हैं. आनेवाले दशक में भारतीय भाषाओं के पाठकों की संख्या में असाधारण वृद्धि होने जा रही है....इसलिए इस बात का खतरा बढ़ जाता है कि प्रेस व मीडिया के माध्यम से नये सिरे से सांस्कृतिक आक्रमण, उपभोक्तावाद और लोकमत अनुकूलन के प्रयास किये जाएंगे. ऐसे में आधिपत्य की लड़ाई में बहुआयामी निरंकुशता पैदा होगी. आयोग के लिए दलील देते हुए रामशरण जोशी अपने प्रस्तावना में लिखते हैं कि "इस संभावित अराजकता, उच्छृंखलता, निरंकुशता जैसी प्रवृत्तियों से निपटने के लिए राज्य, पत्रकार, नेता, संवेदनशील प्रेसपति और कानूनविदों को सक्रिय होना होगा. इस दृष्टि से तीसरे आयोग की स्थापना की दिशा में बहुस्तरीय कदम उठाने होंगे."
इसी बहुस्तरीय कदमों की दिशा में पहला कदम है एक तीन सदस्यीय कमेटी का गठन जो कि तीसरे प्रेस आयोग की संभावना को मजबूत करने के लिए प्रारूप पर काम करेगा. रविवार की बैठक में मौजूद नामवर सिंह ने कहा कि पिछले दो प्रेस आयोग से अलग यह प्रेस आयोग सिर्फ सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों का आयोग न हो बल्कि जैसे लोकपाल के लिए जनता और सरकार के प्रतिनिधियों की समिति बनी है उसी तर्ज पर एक समिति बने.
न्यास की योजना यह है कि अगले एक महीने तक इस बारे में और विचार आमंत्रित करके इंदौर में इस विषय पर विचार विमर्श किया जाएगा और वहां जो प्रारूप अथवा प्रस्ताव पारित होगा उसे लोकसभा के स्पीकर मीरा कुमार को सौंप दिया जाएगा. न्यासी रामबहादुर राय का कहना है कि क्योंकि संसद ही सर्वोच्च है इसलिए हम सरकार के पास जाने से बेहतर समझते हैं कि हम संसद को कहेंगे कि वह तीसरे प्रेस आयोग के लिए पहल करे.
रविवार की बैठक में करीब 100 पत्रकार मौजूद थे जिन्होंने तीसरे प्रेस आयोग के लिए आयोजित परिचर्चा में भाग लिया.