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 कांग्रेसजनों की संख्या बढ़ी तो बदल सकती है, तस्वीर


उदय केसरी ही


केंद्र सरकार की ‘गलत नीतियों’ को उजागर करने, लोगों को जागरूक करने और  2024 में मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ झारखंड के 24 जिलों में प्रखंड व पंचायत स्तरों पर जाकर कांग्रेस ने राज्यव्यापी 13 दिवसीय जय भारत सत्याग्रह यात्रा कार्यक्रम किए। 16 अप्रैल को रांची के पुराना विधानसभा मैदान में यह यात्रा कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर आयोजित सभा में झारखंड प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे ने बताया कि इस यात्रा में राज्य के सभी 24 जिलों के 30,000 से अधिक कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। 

वैसे, झारखंड में कांग्रेस के इस जय भारत सत्याग्रह यात्रा को मिशन-2024 की तैयारी की शुरुआत के रूप में भी देखा जा रहा है। इसे देखते हुए झारखंड के बाकी प्रमुख दल भी तैयारी में लग गए हैं। 11 अप्रैल को बीजेपी का राजधानी में सचिवालय घेराव कार्यक्रम हो, या फिर जेएमएम द्वारा कुछ माह पहले चलाई गई खातियानी जोहार यात्रा तथा अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लगातार हो रहे दौरे हो या फिर आजसू द्वारा चलाई जा रही सामाजिक न्याय यात्रा हो, इन कार्यक्रमों को राजनीतिक गलियारे में मिशन-2024 की तैयारी के रूप में ही देखा जा रहा है।

लेकिन यहां सवाल झारखंड में कांग्रेस के जनाधार का है। उसे क्या राज्यभर में 13 दिनों तक चली जयभारत सत्याग्रह यात्रा से आपेक्षित गति या प्रगति मिलेगी? इसका जवाब तो अगले चुनाव बाद ही स्पष्ट तौर पर मिलेगा, पर लोकतंत्र में प्रायः ऐसी कोशिशों का कुछ ना कुछ लाभ जरूर मिलता है। वैसे, झारखंड के चुनावी दंगलों के इतिहास में कांग्रेस ज्यादातर तीसरे नंबर की पार्टी रही है, लेकिन यदि झारखंड राज्य स्थापना के बाद से यहां कांग्रेस के जनाधार पर नजर डालें, तो आपको एक आंकलन के आधार पर यह जानना रोचक होगा कि झारखंड में कांग्रेस संगठन से जुड़े कुल सक्रिय नेताओं व कार्यकर्ताओं की जितनी संख्या है, उससे करीब 70 गुना अधिक यहां कांग्रेस के वोटर हैं। मतलब, यदि जयभारत सत्याग्रह यात्रा में हिस्सा लिये राज्यभर के 30 हजार नेताओं कार्यकर्ताओं को ही सक्रिय मान लें, तो इसका 70 गुना यानी करीब 21 लाख वोटर पिछले चार चुनावों से कांग्रेस को वोट करते रहे हैं। मतलब मोटे तौर पर इसे झारखंड में कांग्रेस का इनटैक्ट जनाधार कह सकते हैं।

जाहिर है 2024 के मद्देनजर इस जनाधार को बढ़ाना कांग्रेस की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन क्या यह सिर्फ हर स्तर की जानसभाओं के जरिए संभव होगा। शायद नहीं। क्योंकि जनसभाओं से कहीं अधिक प्रभावी जमीन पर कार्यकताओं की सक्रियता होती है। इसलिए कांग्रेस को झारखंड में अपने संगठन से बड़ी संख्या में नए लोगों को जोड़ने और संगठन की शक्ति को तेजी से विस्तार देने की आवश्यकता है। इसके लिए झारखंड के सभी 24 जिलों में सघन सदस्यता अभियान चलाने की जरूरत है। क्योंकि यदि ऐसा होता है तो फिलहाल राज्य में कांग्रेस के जनाधार की जो गणित है, उसके आधार पर औसतन देखें तो संगठन में एक नए सदस्य या कार्यकर्ता को जोड़ने का अर्थ होगा 70 नए वोटरों तक अपनी पहुंच बनाना। और यह अनुमानित गणित यदि जमीन पर फिट बैठती है, तो 2024 में कांग्रेस की तकदीर और झारखंड में तस्वीर दोनों बदल सकती है।

अब आपके दिमाग में यह सवाल आ रहा होगा कि एक कार्यकर्ता के बराबर 70 वोटर का फार्मूला आया कहां से? तो बता दें यह फार्मूला पिछले चार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को मिले वोट प्रतिशत और मतदान प्रतिशत को छानकर मोटेतौर पर निकाला गया है। उल्लेखनीय है कि पृथक झारखंड के पहले विधानसभा चुनाव 2005 में कांग्रेस को सबसे अधिक 16.16% वोट मिले, जबकि इसके बाद काफी उतार चढ़ाव आया। जैसे इसके बाद  2009 के चुनाव में यही वोट प्रतिशत घटकर 12.05% हो गया। फिर 2014 के चुनाव यह वोट प्रतिशत और घटकर सबसे कम यानी 10.46% पर आ गया। लेकिन इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में थोड़ा सुधार भी हुआ, इसबार उसे 13.88% वोट मिले। अब इन चारों चुनावों के वोट प्रतिशत का औसत निकाले तो 13.13% होता है। यानी इन चुनावों में हुए मतदान में कम से कम 13% से ज्यादा वोट कांग्रेस के खाते में तो जाता ही है। अब जान लें 2019 में झारखंड में वोट देने योग्य कुल मतदाता 2,26,17,612 थे। पांच चरणों हुए चुनावों में मतदान प्रतिशत 65 से 70% तक रहा था। इसे यदि अधिकतम 70% ही मान लें तो बूथ तक जाकर वोट देने वाले वोटरों की संख्या करीब 1,58,32,328 होती है। अब इसमें से औसत 13% कांग्रेस के वोटरों को निकाल लें, तो वह करीब 20,58,202 होगा। और अब यदि इन कांग्रेस के वोटरों को 30 हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं से डिवाइड कर दें तो 68.60 आएगा। इसी संख्या को थोड़ी छूट देकर राउंड करके 70 गुना कहा गया है। यानी स्पष्ट है एक कांग्रेस कार्यकर्ता बराबर 70 वोटर।


उदय केसरी

(राजनीतिक विश्लेषक)

बरही

हजारीबाग।


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