गढ़कुंडार महोत्सव में आज से बिखरेगी सांस्कृतिक छटा
प्रस्तुति - स्वामी शरण
गढ़कुंडार का दुर्ग और उसके भग्नावशेष गढ़कुंडार मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक गांव है। इस गांव का नाम यहां स्थित प्रसिद्ध दुर्ग या गढ़ के नाम पर पढ़ा है। यह किला उस काल की न केवल बेजोड़ शिल्पकला का नमूना है, बल्कि उस खूनी प्रणय गाथा के अंत का गवाह भी है, जो विश्वासघात की नींव पर रची गई थी।
गढ़कुंडार का प्राचीन नाम गढ़कुरार है। यहां के ऐतिहासिक वैभव से आम लोगों को अवगत कराने के लिए हर साल गढ़कुंडार महोत्सव का आयोजन किया जाता है। 27 दिसंबर से इस तीन दिवसीय महोत्सव की रंगारंग सांस्कृतिक शुरुआत होगी। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी तथा जिला प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम होगा। इसमें देश के ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा नृत्य, लोक नृत्य एवं गीत संगीत की आकर्षक प्रस्तुतियां दी जाएंगी। कार्यक्रम की शुरुआत केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार एवं प्रदेश सरकार की राज्यमंत्री ललिता यादव करेंगी। बड़ी संख्या में देश के कोने- कोने से लोग महाराज खेत सिंह खंगार की जयंती मनाने यहां आते हैं।
गढ़कुंडार का किला निवाड़ी से 25 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है। यह 11 वीं शताब्दी में जुझौती प्रदेश की राजधानी था। गढ़कुंडार उस समय उत्तर भारत का एक बड़ा शहर था। सन 1182 ई. में महाराज खेत सिंह खंगार ने चंदेलों के समय से आबाद इस सैनिक मुख्यालय के स्थान पर अजेय दुर्गम दुर्ग का निर्माण करवाया था। घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बना यह किला दूर से तो दिखाई देता है, किंतु जैसे- जैसे इसके नजदीक पहुंचते हैं यह दिखाई देना बंद हो जाता है। आक्रमण की दृष्टि से यह पूर्ण सुरक्षित है अतः इसे दुर्गुम दुर्ग कहा जाता है। यह किला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन इमारत है। यह पहाड़ों की ऐसी ऊंचाई पर बना है कि तोपों के गोले इसे नहीं तोड़ सकते थे, लेकिन इस किले से बहुत दूर तक दुश्मन को देखकर उसे आसानी से मारा जा सकता था। महल के नीचे के तल से एक सुरंग महल के बाहर कुएं तक जाती है इस कुएं को जौहर कुआं भी कहते हैं। जब खंगार राजा और मोहम्मद तुगलक के बीच लड़ाई हुई और कुंडार के राजा युद्ध में मारे गए तब राजमहल की रानियों और राजकुमारी केशर ने इसी कुएं में आग जलाकर अपने प्राणों की आहुति दी थी। गढ़कुंडार किले का संबंध बुंदेला, चंदेल और खंगार राजाओं से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है।
गढ़कुंडार में खेतसिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली
वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के अलावा बुंदेलखंड में निवास करते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी। खेतसिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव के पुत्र थे। रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह अभिन्न मित्र हुआ करते थे। इसके चलते पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह बचपन से ही मित्र हो गए। खेतसिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी। इस बात का उल्लेख चंदबरदाई के रासो में भी है। गढ़कुंडार में खेतसिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली। इस किले का इतिहास भी अनबूझ पहेली जैसा लगता है। यहां चंदेलों का पहले ही एक किला था, जिसे जिनागढ़ के नाम से जाना जाता था। खंगार वंशीय खेत सिंह बनारस से 1180 के लगभग बुंदेलखंड आए और जिनागढ़ पर कब्जा कर लिया। उसने एक नए राज्य की स्थापना की। उसके पोते ने किले का नव निर्माण कराया और गढ़कुंडार नाम रखा।
टीकमगढ़। गढ़कुंडार का ऐतिहासिक किला।
महोत्सव
गढ़कुंडार का प्राचीन नाम गढ़कुरार है। यहां के ऐतिहासिक वैभव से आम लोगों को अवगत कराने के लिए हर साल गढ़कुंडार महोत्सव का आयोजन किया जाता है। 27 दिसंबर से इस तीन दिवसीय महोत्सव की रंगारंग सांस्कृतिक शुरुआत होगी। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी तथा जिला प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम होगा। इसमें देश के ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा नृत्य, लोक नृत्य एवं गीत संगीत की आकर्षक प्रस्तुतियां दी जाएंगी। कार्यक्रम की शुरुआत केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार एवं प्रदेश सरकार की राज्यमंत्री ललिता यादव करेंगी। बड़ी संख्या में देश के कोने- कोने से लोग महाराज खेत सिंह खंगार की जयंती मनाने यहां आते हैं।
गढ़कुंडार का किला निवाड़ी से 25 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है। यह 11 वीं शताब्दी में जुझौती प्रदेश की राजधानी था। गढ़कुंडार उस समय उत्तर भारत का एक बड़ा शहर था। सन 1182 ई. में महाराज खेत सिंह खंगार ने चंदेलों के समय से आबाद इस सैनिक मुख्यालय के स्थान पर अजेय दुर्गम दुर्ग का निर्माण करवाया था। घने जंगलों और पहाड़ों के बीच बना यह किला दूर से तो दिखाई देता है, किंतु जैसे- जैसे इसके नजदीक पहुंचते हैं यह दिखाई देना बंद हो जाता है। आक्रमण की दृष्टि से यह पूर्ण सुरक्षित है अतः इसे दुर्गुम दुर्ग कहा जाता है। यह किला उत्तर भारत की सबसे प्राचीन इमारत है। यह पहाड़ों की ऐसी ऊंचाई पर बना है कि तोपों के गोले इसे नहीं तोड़ सकते थे, लेकिन इस किले से बहुत दूर तक दुश्मन को देखकर उसे आसानी से मारा जा सकता था। महल के नीचे के तल से एक सुरंग महल के बाहर कुएं तक जाती है इस कुएं को जौहर कुआं भी कहते हैं। जब खंगार राजा और मोहम्मद तुगलक के बीच लड़ाई हुई और कुंडार के राजा युद्ध में मारे गए तब राजमहल की रानियों और राजकुमारी केशर ने इसी कुएं में आग जलाकर अपने प्राणों की आहुति दी थी। गढ़कुंडार किले का संबंध बुंदेला, चंदेल और खंगार राजाओं से रहा है, परंतु इसके पुनर्निर्माण और इसे नई पहचान देने का श्रेय खंगारों को जाता है।
गढ़कुंडार में खेतसिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली
वर्तमान में खंगार क्षत्रिय समाज के परिवार गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के अलावा बुंदेलखंड में निवास करते हैं। 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेतसिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को हराकर इस दुर्ग पर कब्जा करने के बाद खंगार राज्य की नींव डाली थी। खेतसिंह गुजरात राज्य के राजा रूढ़देव के पुत्र थे। रूढ़देव और पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर सिंह अभिन्न मित्र हुआ करते थे। इसके चलते पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह बचपन से ही मित्र हो गए। खेतसिंह की गिनती पृथ्वीराज के महान सेनापतियों में की जाती थी। इस बात का उल्लेख चंदबरदाई के रासो में भी है। गढ़कुंडार में खेतसिंह ने खंगार राज्य की नींव डाली। इस किले का इतिहास भी अनबूझ पहेली जैसा लगता है। यहां चंदेलों का पहले ही एक किला था, जिसे जिनागढ़ के नाम से जाना जाता था। खंगार वंशीय खेत सिंह बनारस से 1180 के लगभग बुंदेलखंड आए और जिनागढ़ पर कब्जा कर लिया। उसने एक नए राज्य की स्थापना की। उसके पोते ने किले का नव निर्माण कराया और गढ़कुंडार नाम रखा।
टीकमगढ़। गढ़कुंडार का ऐतिहासिक किला।
महोत्सव