By 02/01/2012 13:08:00
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भारत अगर गांवों का देश है तो भारत की विशेषता भी शहरों में नहीं बल्कि गांवों में ही बसती है. दो लाख पैंसठ हजार ग्राम पंचायतों के समुच्चय से जो भारत बनता है वह उस शहरी भारत से बिल्कुल अलग और निराला है जिसमें रहने के लिए हम अभिशप्त हैं. भारत के हर गांव एक स्वतंत्र और संप्रभु ईकाई हैं. उनकी अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था है. इन व्यवस्थाओं का विधिवत आंकलन करके उन्हें समझे बिना भारत को समग्रता में समझना नामुमकिन है. ऐसे में जब हमारा मीडिया निहायत शहरी और केन्द्रीकृत होता जा रहा है एक पत्रिका अगर इस विविधता को समझने और समेटने की कोशिश करे तो किसे अच्छा नहीं लगेगा.
भारत की इसी विविधता को समझने की कोशिश की है दिल्ली से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका संडे इंडियन ने. संडे इंडियन ने नये साल पर जो वार्षिक विशेषांक निकाला है वह भारत के गांवों पर केन्द्रित है. "अजब गांव, गजब कहानी"शीर्षक से इस विशेषांक में भारत के कुछ उन गांवों की कहानियां समेटने की कोशिश की गई है जो न सिर्फ अनूठी हैं बल्कि देखने सुनने में हमें सहसा चौंकाती भी हैं.मसलन, उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में एक ऐसा गांव है जो सिर्फ कहने के लिए गांव है जबकि इसकी आबादी किसी कस्बे से कम नहीं है. गमहर की आबादी करीब अस्सी हजार है और इस गांव की विशेषता है कि यहां हर घर से कोई न कोई सेना में तैनात है. गहमर भारत या एशिया ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा गांव है. लेकिन दूसरी तरफ पंजाब के एक ऐसे गांव की भी कहानी है जहां संपन्नता तो है लेकिन रहनेवाले लोग नहीं है. पंजाब का खरोड़ी गांव इतना संपन्न है कि शहर भी चिढ़ जाए लेकिन यहां के निवासी अब यहां नहीं बल्कि अमेरिका और कनाडा में रहते हैं.
शहरों में भले ही अंग्रेजी का बोलबाला हो लेकिन भारत के गांवों की अपनी बोली अपनी भाषा और अपना संस्कार है. भारत की मूल भाषा संस्कृत के बारे में भले ही हमारे शहर भूलना बेहतर विकल्प मानते हों लेकिन कर्नाटक में मत्तूर नाम का एक ऐसा गांव भी है जहां हर कोई संस्कृत बोलता है. संस्कृत ही यहां की संस्कृति है. महाराष्ट्र का शिराला गांव ऐसा है जहां सर्पों के साथ जीने की कला विकसित की गई है. यहां सांप डराते नहीं बल्कि जीने की उम्मीद बंधाते हैं. फिर असम में एक गांव ऐसा भी है जहां प्राचीन तंत्र विद्या को उनके वास्तविक स्वरूप में संभालकर रखा गया है.
ऐसी ही अनेक कहानियों और घटनाओं से भरे इस अंक को निश्चित रूप से संग्रहणीय बनाया जा सकता है. कम से कम अगर कल हम भारत के विविधता भरे गांवों के बारे में जानने चले तो कम से कम हमारे पास कुछ संदर्भ सामग्री तो रहेगी ही.