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हिंदी विश्‍वविद्यालय में आध्‍यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव पर

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वर्धा : समाचार को प्रकाशित कराना मीडिया का एक छोटासा हिस्‍सा है।

मीडिया के केंद्र में सामाजिक बदलाव का अहम तत्‍व है। मीडिया सामाजिक बदलाव का सशक्‍त

और प्रभावशाली माध्‍यम है। उक्‍त प्रतिपादन राष्‍ट्रीय पुस्‍तक न्‍यास के अध्‍यक्ष बलदेव भाई

शर्मा किये। वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के जनसंचार विभाग की ओर से

‘आध्‍यात्मिकता, मीडिया और सामाजिक बदलाव’ विषय पर आयोजित राष्‍ट्रीय मीडिया संगोष्‍ठी के

उदघाटन सत्र में बतौर मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर

मिश्र ने की।

 गोष्‍ठी का उदघाटन सोमवार दि. 18 जनवरी को अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ भवन के प्रांगण में

निर्मित माधवराव सप्रे सभा मंडप में किया गया।इस अवसर पर विशिष्‍ट अतिथि के रूप में प्रो.

चंद्रकला पाडिया, कुलपति महाराजा गंगा सिंह विश्‍वविद्यालय बीकानेर तथा भारतीय उच्‍च

अध्‍ययन संस्‍थान, शिमला की अध्‍यक्ष, वक्‍ता के रूप में सुनील अंबेकर, प्रख्‍यात सामाजिक-

सांस्‍कृतिक चिंतक, मुंबई एवं वरिष्‍ठ पत्रकार तथा बीईए, नई दिल्‍ली के महासचिव एन. के. सिंह

तथा संगोष्‍ठी निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय तथा जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. कृपा शंकर चौबे

मंचासीन थे। 

बलदेव भाई शर्मा ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि बदलाव तो रोज हो रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल

नई पीढ़ी के बदलाव के संकेत है। परंतु इससे सबका हित नहीं हो रहा है। उन्‍होंने कहा कि भारत में

लोकजागरण से पत्रकारिता की शुरूआत हुई। हमारे संपादको एवं पत्रकारों ने जागरूकता के लिए

मीडिया को हथियार बनाया। महात्‍मा गांधी ने आध्‍यात्मिकता के बल पर बदलाव के लिए कार्य

किया और उन्‍होंने देश और समाज को अपने आचरण से सीख दी।

अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने कहा कि आध्‍यात्मिकता हर बदलाव पर

अतिक्रमण करती है। सीमाओं के पार जाना ही आध्‍यात्मिकता है। हमें सीमित सोच के परे जाकर

कार्य करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि हम जो बदल रहा है उसके पीछे चले जाते है, इस सोच को

ओर व्‍यक्ति केंद्रितता को छोड़ना होगा। मीडिया और बदलाव का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि

प्रौद्योगिकी के प्रवेश से अदभूत परिवर्तन हो रहे हैं। ज्ञान के विस्‍तार के लिए उसका मूल्‍य क्‍या है

इसका विचार होना जरूरी है।

वरिष्‍ठ पत्रकार तथा बीईए, नई दिल्‍ली के महासचिव एन. के. सिंह ने कहा कि आजकल हम ग्राहक

संस्‍कृति के झंझावात में फसते जा रहे हैं। मॉं की गोद में जो मूल्‍य हमें मिलते है वैसे नहीं मिल

पा रहे है। समाज एक प्रकार जी जड़ता में लिप्‍त होता जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि चरित्र निर्माण

की प्रक्रिया को रोक दिया गया है और यही कारण है कि भारत में अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ती

जा रही है। उन्‍होंने कहा कि मीडिया को चाहिए कि वह जनभावनाओं को अधिक महत्‍व देकर

सामाजिक बदलाव की दिशा में प्रयास करें।

प्रो. चंदकला पाडिया ने कहा कि नैतिक जीवन के मूल्‍यों को पढ़ाने को सीखाने का काम शिक्षा

संस्‍थानों का है। हमें संवाद की राजनीति करनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पूंजीवादी समाज

सांस्‍कृतिक और सामाजिक दृष्टि से हमें नियंत्रित कर रहा है।

वक्‍ता के रूप में उपस्थित सुनील अंबेकर ने कहा कि सामाजिक बदलाव के लिए गांधी, सावरकर,

अंबेडकर, तिलक और अरविंद जैसे विभूतियों ने पत्रकारिता की और समाचार पत्रों का सहारा लिया।

उनकी पत्रकारिता में निष्‍ठा, नैतिकता, चरित्र और प्रामाणिकता के साथ सामाजिक सरोकार

महत्‍वपूर्ण तत्‍व थे। उन्‍होंने कहा कि समाज में घट रही घटनाओं के संदर्भ में बदलाव के लिए

नैतिक और आध्‍यात्मिक अधिष्‍ठान जरूरी है। स्‍वागत वक्‍तव्‍य में जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष

डॉ. कृपा शंकर चौबे ने कहा‍ कि पत्रकारिता का जन्‍म ही प्रतिरोध से हुआ है। मीडिया एक उद्योग

बन गया है और उद्योग की कुछ विकृतियां मीडिया में भी प्रवेश कर गयी है। इस अवसर पर

स्‍मारिका तथा मूल्‍यानुगत मीडिया के मायने पुस्‍तक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. अनिल कुमार राय ने किया तथा आभार संगोष्‍ठी संयोजक डॉ. अख्‍तर

आलम ने माना।

संगोष्‍ठी का उदघाटन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्‍ज्‍वलन एवं विद्यार्थियों द्वारा स्‍वागत एवं

कुलगीत से किया गया। इस अवसर पर अध्‍यापक, अधिकारी, बाहर से आए प्रतिभागी, शोधार्थी तथा

विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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