हिंदी विवि में राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी
‘मीडिया का राजनीतिक अर्थशास्त्र’ पर हुआ विमर्श
वर्धा दि. 20 जनवरी 2016: संचार माध्यमों की सबसे बड़ी पूंजी उसकी विश्वसनीयता है। संचार
माध्यमों को समाज के सरोकारों के साथ जुड़कर अपनी विश्वसनीयता का परिचय देना चाहिए।
पत्रकारिता का मिशन सरोकारों से जुड़ा होना चाहिए। उक्त विचार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. सूरज पालीवाल ने व्यक्त किये। वे महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग की ओर से ‘आध्यात्मिकता, मीडिया
और सामाजिक बदलाव’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी में ‘मीडिया का
राजनीतिक अर्थशास्त्र’ विषय पर आयोजित सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे।
संगोष्ठी के तीसरे दिन बुधवार को माधवराव सप्रे सभा मंडप में आयोजित सत्र में बीज वक्ता के
रूप में गुरू गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली के संचार एवं पत्रकारिता अध्ययन केंद्र
के निदेशक प्रो. सी. पी. सिंह तथा वक्ता के रूप में सामाजिक एवं सांस्कृतिक चिंतक डॉ. भोलानाथ
मिश्र, विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका ‘बहुवचन’ के संपादक अशोक मिश्र, भीमराव अंबेडकर
विश्वविद्यालय, आगरा के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष गिरिजा शंकर शर्मा, ब्लागर अशोक मिश्र,
मेरठ मंचासीन थे। उक्त विषय पर आयोजित चर्चा में इंडियन एण्ड फॉरेन लैग्विजेज यूनिवर्सिटी,
हैदराबाद की डॉ. कोकिला, विश्वविद्यालय के स्त्री अध्ययन विभाग की प्रभारी डॉ. सुप्रिया पाठक
तथा दूरदर्शन केंद्र ग्वालियर के जयंत तोमर ने भी अपनी बात रखी।
बीज वक्तव्य में प्रो. सी. पी. सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में डिजिटल इकॉनॉमी सभी क्षेत्र में
हावी है और संचार माध्यम भी इसकी चपेट में है। स्मार्टफोन से हमारे हाथ में अखबार और टी.वी.
चैनल आ गए हैं। इस क्षेत्र में मल्टि प्लेटफॉर्म कंपनियां आ रही है और वह चैनल, अखबार निकालने
लगे हैं। इससे संचार माध्यमों का अर्थशास्त्र बदल गया है। इसका नियमन कैसे किया जाए यह बडी
चुनौती है। बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र ने राजनीतिक दल और मीडिया के अंतर्संबंधो को उजागर
करते हुए कहा कि पाठक के पास विकल्प नहीं है परंतु सोशल मीडिया के रूप में वैकल्पिक मीडिया
जरूर है। उन्होंने माना कि सोशल मीडिया से लोगों के पास शक्ति आ गयी है।
डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा ने कहा कि भलेही मीडिया में पूंजीवादी आ गये हो परंतु वे इसे नियंत्रित नहीं
कर सकते। डॉ. भोलानाथ मिश्र का कहना था कि टी. वी. के कार्यक्रम दर्शकों की निर्णय क्षमता को
प्रभावित करते हैं। चैनलों पर प्रसारित होने वाले विज्ञापन वास्तविकता से परे होते है और इसमें
ग्राहक के नाते दर्शक ठग जाते हैं। डॉ. सुप्रिया पाठक ने कहा कि मीडिया अर्थतंत्र को प्रभावित करता
है। अपराधों पर आधारित कार्यक्रमों में महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें विलेन के
रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इससे महिलाओं की नकारात्मक छवी प्रस्तुत हो रही है। जयंत
तोमर का मानना था कि आर्थिक साम्राज्यवाद के चंगुल में समाज फंसता जा रहा है। ब्लॉगर डॉ.
अशोक मिश्र ने कहा कि मीडिया बाजार के दबाव के चलते पूंजीवादियों के प्रभाव में आ रहा है।
सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में मीडिया हमारे सामने प्रस्तुत नहीं हो रहा है। सत्र का
संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे ने किया। इस अवसर पर
प्रतिभागी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।