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पत्रकार क्या होता है??

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✍,पत्रकार क्या हैं,✍*
✅ 1. जब किसी दबंग व्यक्ति  द्वारा आपके अधिकार का हनन किया जाता है तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है?
✅2. जब प्रशासन के किसी कर्मचारी द्वारा आप परेशान किये जाते हैं तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है?
✅3. जब आप अपनी बात प्रशासन तक पहुंचना चाहते हैं तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅✍4. जब कोई लेखपाल,कोटेदार, प्रधान या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आपका हक छीनने की कोशिश की जाती है तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅✍5. जब आप किसी राजनेता, अधिकारी के साथ किसी विशेष कार्यक्रम को करते हैं तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅6. जब आपको समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर भगाने की चिंता होती है तब आपको एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅🙏✍7. जब आप अपने बच्चे को स्कूल भेजते हैं और वहां उसे अध्यापक या किसी अन्य बच्चे द्वारा मानसिक यातनाएं दी जाती हैं तब एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅✍8. जब आप खेती करते हैं और  किसी कारणवश आपकी फसल का नुकसान हो जाता है तब आपको अपनी बात प्रशासन तक पहुंचाने के लिए आपको पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅🙏9.घर पर बैठ कर पूरे विश्व में क्या हो रहा है ये जानने के लिए एक पत्रकार के लेख की जरूरत पड़ती है ?
✅✍10. जब आपको किसी भी सरकारी योजना का फायदा नहीं मिल पाता तब आपको अपनी बात रखने के लिए एक पत्रकार की जरूरत पड़ती है ?
✅✍11. जब भी कोई घटना-दुर्घटना होती है तो भी पत्रकार याद आते है ?
*✍इन सवालों के जबाब स्वयं को दीजिये और फिर पत्रकारों के विषय में कुछ करने के बारे में सोचिए। हम ये नहीं कहते कि हम अच्छे हैं लेकिन सब के सब गलत होते है यह गलत बात है। एक बिना सेलरी पर काम करने वाला व्यक्ति आपको पूरा दिन और कभी कभी तो पूरी रात जागकर, तो कभी धूप तो कभी बरसात मे भीगकर आपको खबर उपलब्ध कराता है तो क्या उसे सम्मान और सहयोग मिलने का अधिकार है या नहीं आप को सोचना है।

 *क्या आप इससे सहमत हैं

🤝*🙏✍



जापानी हीरो इंडिन

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*Remembered in Japan, forgotten in India...!!*

The day was 12 November, 1948.
Tokyo Trials are going on in a huge garden house on the outskirts of Tokyo, the trial of fifty-five Japanese war criminals including Japan's the then Prime Minister Tojo, after losing WW-II.

Of these, twenty-eight people have been identified as Class-A (crimes against peace) war criminals.
If proved, the only punishment is the "death penalty".

Eleven international judges from all over the world are announcing-
"Guilty".... "Guilty"...... "Guilty".........

Suddenly one thundered-
"Not Guilty..!"

A silence came down in the hallway.
Who was this lone dissenter?

*His name was Radha Binod Pal, a Judge from India.*

Born in 1886 in the Kumbh of East Bengal, his mother made a living by taking care of a household and their cow.

For feeding the cow, Radha used to take the cow to the land near a local primary school.

When the teacher taught in school, Radha used to listen from outside.

One day the school inspector came to visit the school from the city.

He asked some questions to the students after entering the class.

Everyone was silent.

Radha said from outside the classroom window -
"I know the answer to all your questions."

And he answered all the questions one by one.

Inspector said- "Wonderful..!! Which class do you read?"

The answer came-
"I do not read...I graze a cow."

Everyone was shocked to hear that.

Calling the head teacher, the school inspector instructed the boy to take admission in school as well as provide some stipend.

This is how education of Radha Binod Pal started.

Then after passing the school final with the highest number in the district, he was admitted to Presidency College.

After taking M. Sc. from the University of Calcutta, he studied law again and got the Doctorate title.

In the context of choosing the opposite of two things he once said-
*"Law and Mathematics are not so different after all.”*

Coming back again to the International Court of Tokyo.

In his convincing argument to the rest of the jurists, he signified that the Allies, (winners of WW-II), also violated the principles of restraint and neutrality of international law.
In addition to ignoring Japan's surrender hints, they killed two hundred thousand innocent people using nuclear bombardment.

The judges were forced to drop many of the accused from Class-A to B, *after seeing the logic written on twelve hundred thirty-two pages by Radha Binod Pal.*

These Class-B war criminals were saved by him from a sure death penalty.

*His verdict in the international court gave him and India a world-famous reputation.*

*Japan respects this great man.*

In 1966 Emperor Hirohito awarded him the highest civilian honor of the country, *Kokko Kunsao.*

Two busy roads in Tokyo and Kyotto have been named after him.

*The law has been included in the syllabus of his sentence.*

*In front of the Supreme Court of Tokyo, his statue has been placed.*

 In 2007, the then Prime Minister of Japan *Shinzo Abe* expressed his desire to meet his family members in Delhi and met his son.

Dr. Radha Binod Pal (27 January 1886 - 10 January 1967) name is remembered in the history of Japan.

*In Tokyo, Japan, he has a museum and a statue in Yasukuni shrine.*

*Japan University has a research center in his name.*

*Because of his judgment on Japanese war criminals, Chinese people hate him.*

He is the author of many books related to law.

*In India, almost nobody knows him and perhaps not even his neighbors know him...!*

A hindi movie was made on him, *Tokyo Trials*, starring Irfan Khan but that movie never made headlines.

*The most underrated Indian....!*

हिंदी वर्णमाला कविताई

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प्रस्तुति - अनिल /पुतुल /अनु

*हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग।*

*अ* चानक,
*आ* कर मुझसे,
*इ* ठलाता हुआ पंछी बोला।

*ई* श्वर ने मानव को तो-
*उ* त्तम ज्ञान-दान से तौला।

*ऊ* पर हो तुम सब जीवों में-
*ऋ* ष्य तुल्य अनमोल,
*ए* क अकेली जात अनोखी।

*ऐ* सी क्या मजबूरी तुमको-
*ओ* ट रहे होंठों की शोख़ी!

*औ* र सताकर कमज़ोरों को,
*अं* ग तुम्हारा खिल जाता है;
*अ:* तुम्हें क्या मिल जाता है?


*क* हा मैंने- कि कहो,
*ख* ग आज सम्पूर्ण,
*ग* र्व से कि- हर अभाव में भी,
*घ* र तुम्हारा बड़े मजे से,
*च* ल रहा है।

*छो* टी सी- टहनी के सिरे की
*ज* गह में, बिना किसी
*झ* गड़े के, ना ही किसी-
*ट* कराव के पूरा कुनबा पल रहा है।

*ठौ* र यहीं है उसमें,
*डा* ली-डाली, पत्ते-पत्ते;
*ढ* लता सूरज-
*त* रावट देता है।

*थ* कावट सारी, पूरे
*दि* वस की-तारों की लड़ियों से
*ध* न-धान्य की लिखावट लेता है।

*ना* दान-नियति से अनजान अरे,
*प्र* गतिशील मानव,
*फ़* रेब के पुतलो,
*ब* न बैठे हो समर्थ।
*भ* ला याद कहाँ तुम्हे,
*म* नुष्यता का अर्थ?

*य* ह जो थी, प्रभु की,
*र* चना अनुपम.......

*ला* लच-लोभ के
*व* शिभूत होकर,
*श* र्म-धर्म सब तजकर।
*ष* ड्यंत्रों के खेतों में,
*स* दा पाप-बीजों को बोकर।

*हो* कर स्वयं से दूर-
*क्ष* णभंगुर सुख में अटक चुके हो।
*त्रा* स को आमंत्रित करते-
*ज्ञा* न-पथ से भटक चुके हो।

🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀🎀

कोरोना का होम्योपैथी उपचार / लिंक

ये उस समय की बात है - -

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साइकिल की सवारी

प्रस्तुति - स्वामी शरण /आत्म स्वरूप /संत शरण


हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी , *पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी.......*

तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे.
*तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।*

*"कैंची"वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे*।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और *"क्लींङ क्लींङ"करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है* ।

*आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर"से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज"उड़ाने जैसा होता था*।

हमने ना जाने कितने दफे अपने *घुटने और मुंह तोड़वाए है* और गज़ब की बात ये है कि *तब दर्द भी नही होता था,* गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और *अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में* ।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  *"जिम्मेदारियों"की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं* ।

*इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए* !

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।

और ये भी सच है की *हमारे बाद "कैंची"प्रथा विलुप्त हो गयी* ।

हम लोग दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !

*पहला चरण कैंची*

*दूसरा चरण डंडा*

*तीसरा चरण गद्दी।*

● *हम वो आखरी पीढ़ी  हैं*, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।

● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।

● *हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं*, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं।

● *हम वही पीढ़ी के लोग हैं*, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं।

● *हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं*, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है।

● *हम वो आखरी लोग हैं*, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।

● *हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं*, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है।

● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।

● *हम वो आखरी लोग हैं*, जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।

● *हम वो आखरी लोग हैं*, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़  की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है।

● *हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं*, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे  प्रोग्राम सुने हैं।

● *हम ही वो आखिर लोग हैं*, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।

● *हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं*, जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। *हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!*

*हम एक मात्र वह पीढी है*  जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.
⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨

ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है l

दिनेश श्रीवास्तव की कविताएं

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 दिनेश श्रीवास्तव: गीता महात्म्य
         ------------------------

परम दिव्य साहित्य है,भगवतगीता लेख।
पढ़ें नित्य इसको सभी,पावन यही प्रलेख।।-१

सखा,शिष्य या भक्त हों,ज्ञानी योगी रूप।
भक्ति भाव चिंतन करें,दिखता कृष्ण स्वरूप।।-२

मूल्यवान कोई नही,इससे अधिक विलेख।
ज्ञान संपदा निहित है,व्यास लिखित आलेख।।-३

आओ गीता शरण मे,अन्य शास्त्र को छोड़।
अक्षर अक्षर ज्ञान से,जीवन को दो मोड़।।-४

गीता अमृत ज्ञान है,प्रभु वाणी से युक्त।
भवसागर की मैल से,शीघ्र करे ये मुक्त।।-५

गीता गंगाजल करें,अवगाहन इक बार।
शोक मोह से शीघ्र ही,देगा यही उबार।।-६

उपनिषदों का सार है,गीता गाय समान।
कृष्ण दूहते गाय को,भक्त करें रसपान।।-७

पुत्र देवकी गान ही,गीता का है ज्ञान।
गीता सम कोई नही,दूजा शास्त्र महान।।८

कर्म,ज्ञान या भक्ति का,पावन है संयोग।
गीता में ही निहित है,यह पुरुषोत्तम योग।।-९

अति पवित्र इस ग्रन्थ में,यदुनंदन संदेश।
पालन इस संदेश का,सविनय करे 'दिनेश'।।

                  दिनेश श्रीवास्तव

                  ग़ाज़ियाबाद
[26/01, 06:54] Ds दिनेश श्रीवास्तव: हिंदी ग़ज़ल

                    -----------------

       कहाँ आज गणतंत्र हमारा?
      ----------------------------------

कहाँ आज गणतंत्र हमारा,कैसे गाऊँ गीत।
चिंता यही गिरेगी कैसे,नफ़रत की ये भीत।।

ईश्वर भी हैं बँटे यहाँ पर,ख़ुदा और जगदीश।
पेश अक़ीदत करता कोई,कहीं भक्ति संगीत।।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,कहते भाई भाई।
बाँटा इनको राजनीति ने,कभी न बनते मीत।।

झंडा ऊँचा रहे हमारा,विजयी विश्व तिरंगा भी।
खींच रहे हैं टाँग मगर,इक दूजे के विपरीत।।

संविधान है एक हमारा,झंडा भी है एक।
भाषा 'हिंदी'नहीं राष्ट्र की,वर्ष अनेकों बीत।।

रहते हैं हम यहाँ देश मे,खाते इसका अन्न।
पर पसंद आता है हमको,पाकिस्तानी रीत।।

सोने की चिड़िया था भारत,सर्वाधिक सम्पन्न।
गौरव गाथा पढ़ना है तो,देखो ज़रा अतीत।।

राष्ट्र भक्ति का नारा देते,थोथे हैं आदर्श।
तोड़ फोड़ कर भारत माँ से,दिखलाते हैं प्रीत।

केसरिया में काला धब्बा,लाल न बने सफ़ेद।
इस 'दिनेश'के साथ मिलो तुम,कटुता करो व्यतीत ।।

                       जय हिंद🇮🇳

                      दिनेश श्रीवास्तव
[27/01, 07:41] Ds दिनेश श्रीवास्तव: दोहे
                  ---------------

              मधुमय भारतवर्ष
             -----------------------

पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद
[27/01, 15:21] anami sharan: दोहे
                  ---------------

              मधुमय भारतवर्ष
             -----------------------

पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद
[27/01, 15:27] anami sharan: दोहे
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              मधुमय भारतवर्ष
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पिकानंद मधुमास या,कामसखा ऋतुराज।
मधुमाधव स्वागत करूँ, हे रतिप्रिय!मैं आज।।-१

अब वसंत का आगमन,धरती हुई विभोर।
नाच रही है साँझ भी,नाच रही है भोर।।-२

नवगति नवलय छंद से,गाती कुदरत गीत।
कोना कोना भर गया,नवरस का संगीत।।-३

कलमकार भी अब करें,अक्षर से शृंगार।
कामदेव रति का मिलन, लिखें अनूठा प्यार।।-४

कला कांति सौंदर्य का,देता शुभ संदेश।
जीवन मे हो आपके,वासंतिक परिवेश।।-५

खिले फूल अब चमन में,भौंरे गाते गीत।
कुहू कुहू कोयल करे,अब आ जाओ मीत।।।-६

ऊष्मा भी अब धूप की,देता यह अहसास।
निश्चित मेरा कंत भी,लाएगा मधुमास।।-७

पंचसरों की कामना,करते सभी सहर्ष।
शब्द,गंध,मधुरस मिले, चरम रूप उत्कर्ष।।-८

पीत पुष्प अर्पित करूँ,पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती,करना कृपा अशेष।।-९

यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।-१०

सबके घर आँगन दिखे,सौ वसंत सा हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,  मधुमय भारत वर्ष।।-११

                             दिनेश श्रीवास्तव
                              ग़ाज़ियाबाद
[29/01, 10:17] Ds दिनेश श्रीवास्तव: वसंत पंचमी
       ------------------ 

पीत पुष्प अर्पित करूँ, पूजन करूँ विशेष।
वीणापाणि सरस्वती, करना कृपा अशेष।।
यह 'दिनेश'भी कर रहा,कर को जोरि प्रणाम।
हंसवाहिनी आपकी,सुबह दोपहर शाम।।
सब के घर आँगन दिखे,सौ वसंत का हर्ष।
मातु कृपा से हो सदा,मधुमय भारत वर्ष।।

                    वसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामना।

                            दिनेश श्रीवास्तव
[05/02, 07:33] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया
                  ------///-----

                          (१)
करना वंदन ईश का,सदा झुकाना शीश।
शरणागत पर फिर कृपा,करते हैं जगदीश।।
करते हैं जगदीश,नहीं फिर दुविधा होती।
शंका होती दूर, चदुर्दिक सुविधा होती।।
करता विनय 'दिनेश',ध्यान उर में है धरना।
करके मन को शुद्ध,ईश वंदन है करना।।

                         (२)
भाया मुझको कब कहाँ,आया यहाँ वसंत।
करे ठिठोली पूछता,कहाँ हमारा कंत।।
कहाँ हमारा कंत, पूछता है वह जबसे।
प्रियतम गए विदेश,पूछता है वह तबसे।।
विरहन का वो दर्द,बढ़ाने देखो आया।
अब तो फूटी आँख, नहीं हमको है भाया।।

                           (३)

पूजा वृक्षों की करें,वे ही हैं आराध्य।
वही हमारी साधना,वही हमारे साध्य।।
वही हमारे साध्य,धरा वृक्षों से भरना।
यही हमारा कर्म,धर्म है हमको करना।।
कहता यहाँ'दिनेश',नहीं कारण है दूजा।
यही हमारे देव,वृक्ष की करनी पूजा।।

                      (४)

इससे बढ़कर कौन है,परम जगत का मित्र।
वृक्षरोपण से अधिक,तीरथ कौन पवित्र।।
तीरथ कौन पवित्र,यहाँ धरती पर इतना।
धरती का श्रृंगार,सदा करने से जितना।।
जीवन का अस्तित्व,आज कायम है जिससे।
कोई नहीं दिनेश!मित्र है बढ़कर इससे।।

                    दिनेश श्रीवास्तव
                    गाज़ियाबाद
[08/02, 11:17] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया

              -----------------

विषय------पानी
                 -------
                     (१)
पानी का संग्रह करें,बूँद बूँद का मूल्य।
बिन पानी जीवन कहाँ,पानी तो बहुमूल्य।।
पानी तो बहुमूल्य, नष्ट मत करना भाई।
ये प्रकृति की देन,इसी में रहे भलाई।।
करता विनय 'दिनेश',सुनाता यही कहानी।
समझो इसका मूल्य,व्यर्थ मत करना पानी।।

                      ( २)

पानी बिन ब्याकुल रहें,जीव जंतु संसार।
दोहन इसका रोकिए,बूंद बूंद से प्यार।।
बूंद बूंद से प्यार,सदा करना ही होगा।
सबके मन मे बात,यही धरना ही होगा।।
कहता यहाँ दिनेश,सभी की राम कहानी।।
व्यर्थ धरा पर रोज,बहाते जाते पानी।।

                     (३)

पानी हो या वृक्ष हो,करना मत संहार।
दोनो ही इस जगत में,धरती का शृंगार।।
धरती का शृंगार, वृक्ष का रोपण करना।
पानी का भी खूब,यहाँ संपोषण करना।।
करता विनय'दिनेश',सुनो अब उसकी वानी।
यहाँ लगाकर वृक्ष,बचाना होगा पानी।।

                              दिनेश श्रीवास्तव
[14/02, 10:25] Ds दिनेश श्रीवास्तव: वतन से प्यार है अपना,वतन दिलदार है अपना,
वही महबूब अपना है,वही तो यार है अपना।
धरा अपनी गगन अपना,ये भारत देश अपना है,
इसी से इश्क़ है मुझको,यही संसार है अपना।।

             प्रेम दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

                       दिनेश श्रीवास्तव
[09/03, 13:48] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "होली"पर रंग-विरंगे
                                     दोहे
                                   --------

                   
कभी न करिए रंग को,होली में बदरंग।
नशा छोड़कर खेलिए,तजिए पीना भंग।।-१

सबसे सुंदर है यहाँ, चढ़े प्रीत का रंग।
द्वेष घृणा ही देश को,करता है बदरंग।।-२

रँगिए अपने आप को,सदा श्याम के रंग।
खेलें होली आप फिर,राधा-रानी संग।।-३

साली सलहज साथ में,साले पर भी रंग।
सराबोर कर दीजिए,बचे न कोई अंग।।-४

साले को चोरी छिपे,पिला दीजिए भंग।
फिर सलहज के साथ मे,खेलें खुलकर रंग।।-५

शृंगारिक परिवेश में,उद्दीपन हो भाव।
तब अनंग के रंग का,होता प्रबल प्रभाव।।-६

यही प्रीत की रीत है,रंगों का त्योहार।
दुश्मन को भी दीजिए,निज बाहों का हार।।-७

भेज पड़ोसी देश में,भारत से कुछ रंग।
कहिए उनसे अब यहाँ, छोड़ें करना जंग।।-८



किसने क्या है कह दिया,शांत समूचा हाल।
बिन गुलाल ही हो गया,गाल कहाँ से लाल।।?-९

नेता जी भी लग रहे,रँग में रँगे सियार।
गिरगिट बनने को सदा,रहते हैं तैयार।।-१०

क्या करना मुझको यहाँ, लेकर हाथ गुलाल।
'कोरोना'ने कर दिया,सबको है बेहाल।।-११

अपने ही हाथों मलें,अपने हाथ गुलाल।
सेल्फी लेकर भेजिए,फिर अपने ससुराल।।-१२

गुझिया पापड़ देखकर,इठलाता मोमोज।
खड़ा अकेले हाट में,देता सेल्फी पोज।।-१३


केसरिया के साथ में,हरा,श्वेत का रंग।
विजयी विश्व बनाइए,अरि हो जाएँ दंग।।-१४

मन को पावन कीजिए, दिल को करें न तंग।
कभी किसी के रंग में,पड़े न कोई भंग।।-१५

ले गुलाल मत घूमिए,कर से करें प्रणाम।
देता यही दिनेश है,सबको अब पैगाम।।-१६

                      दिनेश श्रीवास्तव
[10/03, 12:37] Ds दिनेश श्रीवास्तव: "खेलें होली - होली आज"
             -----------------------------

मन के मैल मिटाकर कर आओ!
खेलें होली- होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

सदियों से जो रहा यहाँ पर,
बहती आयी है रसधारा।
करुणा प्रेम दया की अबतक,
 बहती अविरल रही त्रिधारा।
इसमें आज नहाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

धरती नभ आकाश सितारे,
सभी हमारे और तुम्हारे।
समरसता का पाठ पढ़ाते,
लगते सबको प्यारे-प्यारे।
सबको गले लगाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

नदिया पर्वत झरने जंगल,
करते रहते सबका मंगल।
एक भाव से प्यार लुटाते,
नहीं सोचते कभी अमंगल।
 मंगल भाव जगाकर आओ!
खेलें होली-होली आज।
दिल के वैर भुलाकर आओ!
खेलें होली- होली आज।।

                होली की अनंत शुभकामनाएँ।

                    दिनेश श्रीवास्तव
   
                    गाजियाबाद
[13/03, 18:14] Ds दिनेश श्रीवास्तव: कॅरोना वायरस-कारण और निदान
----------------------------------------------

एक 'कॅरोना'वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1

विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2

खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3

योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4

स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5

ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7

हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8

भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9

तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10

करें विटामिन  'सी'  सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11

रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12

आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13

                     दिनेश श्रीवास्तव
                      गाज़ियाबाद
[15/03, 15:06] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीतिका
-----------
                चिंता चिता समान
                ----------------------

चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।

पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।

क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।

नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।

जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।

चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।

कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।


             दिनेश श्रीवास्तव
[17/03, 10:12] Ds दिनेश श्रीवास्तव: बाल-कविता
----------------

बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।

नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना'को कौन सम्हाले।।

"स्वच्छमेव जयते"का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।

'कोरोना'को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।

सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।

कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।

नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी'का,
'कोरोना'को आज हराना।।

                    दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 11:11] Ds दिनेश श्रीवास्तव: दोहे-

            "कोरोना से बचाव"

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१

प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२

प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३

करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई  रोग।।-४

भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५

काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६

सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७

अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८

अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९

बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०

                      दिनेश श्रीवास्तव
[19/03, 19:03] Ds दिनेश श्रीवास्तव: गीत
                --------

अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।

मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।

कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।

निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।

कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।

                           दिनेश श्रीवास्तव
[20/03, 08:58] Ds दिनेश श्रीवास्तव: निर्भय दिवस
          ------------------

निर्भय दिवस मनाइए
खुश होइए
निर्द्वंद होकर
सो जाइये।
क्योंकि
दरिंदे सो गए
चिरंतन नींद में।
अब कभी नहीं
होगा बलात्कार,
बहू बेटियों का
होगा सत्कार।
नहीं मरेंगी बेटियाँ अब
लेकिन भ्रूण हत्या
रुकेगी कब?
हत्या तो हत्या है,
चाहे पेट में या
सड़क पर।
फाँसी का विकल्प
केवल और केवल
होता है संकल्प
हत्या न करने का
पेट मे या सड़क पर।।

                       दिनेश श्रीवास्तव

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1. *PAN*
Permanent Account Number.

2. *PDF*
Portable Document format.

3. *SIM*
Subscriber Identity Module.

4. *ATM*
Automated Teller Machine.

5. *IFSC*
Indian Financial System Code.

6. *FSSAI(Fssai)*
Food Safety & Standards
Authority of India.

7. *Wi-Fi*
Wireless Fidelity.

8. *GOOGLE*
Global Organization Of
Oriented Group
Language Of Earth.

9. *YAHOO*
Yet Another Hierarchical
Officious Oracle.

10. *WINDOW*
Wide Interactive Network
Development for
Office work Solution.

11. *COMPUTER*
Common
Oriented Machine.
Particularly United
and used under Technical
and Educational Research.

12. *VIRUS*
Vital Information
Resources Under Siege.

13. *UMTS*
Universal
Mobile Telecommunicati ons
System.

14. *AMOLED*
Active-Matrix Organic Light-
Emitting diode.

15. *OLED*
Organic
Light-Emitting diode.

16. *IMEI*
International Mobile
Equipment Identity.

17. *ESN*
Electronic
Serial Number.

18. *UPS*
Uninterruptible
Power Supply.

19. *HDMI*
High-Definition
Multimedia Interface.

20. *VPN*
Virtual Private Network.

21. *APN*
Access Point Name.

22. *LED*
Light Emitting Diode.

23. *DLNA*
Digital
Living Network Alliance.

24. *RAM*
Random Access Memory.

25. *ROM*
Read only memory.

26. *VGA*
Video Graphics Array.

27. *QVGA*
Quarter Video
Graphics Array.

28. *WVGA*
Wide video Graphics Array.

29. *WXGA*
Widescreen Extended
Graphics Array.

30. *USB*
Universal Serial Bus.

31. *WLAN*
Wireless
Local Area Network.

32. *PPI*
Pixels Per Inch.

33. *LCD*
Liquid Crystal Display.

34. *HSDPA*
High Speed Down link
Aacket Access.

35. *HSUPA*
High-Speed Uplink
Packet Access.

36. *HSPA*
High Speed
Packet Access.

37. *GPRS*
General Packet
Radio Service.

38. *EDGE*
Enhanced Data Rates
for Globa Evolution.

39. *NFC*
Near
Field Communication.

40. *OTG*
On-The-Go.

41. *S-LCD*
Super Liquid
Crystal Display.

42. *O.S*
Operating System.

43. *SNS*
Social Network Service.

44. *H.S*
HOTSPOT.

45. *P.O.I*
Point Of Interest.

46. *GPS*
Global
Positioning System.

47. *DVD*
Digital Video Disk.

48. *DTP*
Desk Top Publishing.

49. *DNSE*
Digital
Natural Sound Engine.

50. *OVI*
Ohio Video Intranet.

51. *CDMA*
Code Division
Multiple Access.

52. *WCDMA*
Wide-band Code
Division Multiple Access.

53. *GSM*
Global System
for Mobile Communications.

54. *DIVX*
Digital Internet
Video Access.

55. *APK*
Authenticated
Public Key.

56. *J2ME*
Java 2
Micro Edition.

57. *SIS*
Installation Source.

58. *DELL*
Digital Electronic
Link Library.

59. *ACER*
Acquisition
Collaboration
Experimentation Reflection.

60. *RSS*
Really
Simple Syndication.

61. *TFT*
Thin Film Transistor.

62. *AMR*
Adaptive
Multi-Rate.

63. *MPEG*
Moving Pictures
Experts Group.

64. *IVRS*
Interactive
Voice Response System.

65. *HP*
Hewlett Packard.


*Do we know actual full form*
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66. *NEWS PAPER =*
North East West South
Past and Present
Events Report.

67. *CHESS =*
Chariot,
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68. *COLD =*
Chronic,
Obstructive,
Lung,
Disease.

69. *JOKE =*
Joy of Kids
Entertainment.

70. *AIM =*
Ambition in Mind

71. *DATE =*
Day and Time Evolution.

72. *EAT =*
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73. *TEA =*
Taste and Energy
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74. *PEN =*
Power Enriched in Nib.

75. *SMILE =*
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in Lips Expression.

76. *ETC. =*
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Thinking Capacity.

77. *OK =*
Objection Killed.

78. *Or =*
Orl Korec
(Greek Word)

79. *Bye =*♥
Be with You Everytime.

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धैर्य / दिनेश श्रीवास्तव

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दोहे

                  "धैर्य"   

दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
 धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१

सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
 सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२

धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३

  जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
 धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४

राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५

जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
 संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६

विपदा है आई बड़ी, निकल रही है आह।
 धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७

विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
 धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना'से  जंग।।-८

 धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
 होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-९

धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
 धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१०

                    दिनेश श्रीवास्तव

कोरोना से बचाव का अपील / दिनेश श्रीवास्तव

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अपील / दिनेश श्रीवास्तव
              -----------

सुन सारे!कहाँ से आवत हवे रे घूम के?
जब मना बा त का जरूरत बा एने वोने घुमला के।बुझात नइखे का।पूरा देश परेशान बा आ तोहार मटरगस्ती चालू बा।।


सुन ले सुमेरवा!कान खोल के-
थेथरई मत कर न त टास्क फोर्स पकड़ लेई तब का करबे?घरवे में बैठला के काम बा।



पो सभे कान खोल के सुन लेयीं और गाँठ बाँध लेयीं-


लबर लबर कर के समान  नहीं खरीदिये।दुकान भागल नहीं जा रहा है।

बढ़िया से हाथ गोड धो के बिस्तर पर पड़े रहिए।हाथ त कई बार सबुनाइये।मन घबराए त बी बी सी लंदन घरहि में बैठ के सुन लीजिए नाहीं त घरवे में जोगीरा गाईये।बहरा जायके कौनो काम नइखे।


घर के लईकन आ बुढ़ऊ क हाथ पैर बांध के घरहि में रखिये।

भोरे खरिहान जाना है त अकेलही जाईये।

खयिनी अकेलहिं ठोकिये और अकेलही खाइये।केहुसे न त माँगिये और न दीजिए।

कोरोना भुतहा रोग नहीं है।केहू ओझा सोखा के पास मत जाइए।

बुखार खाँसी सर्दी ज़ुकाम पहिलहुँ होखे।घबराए के नइखे।हँ कई दिन से होखे त डॉक्टर बाबू के पास जरूर जाईये।

बाकी भगवान पर भरोसा रखिये।कुछु ना होई।


हाँ, मोदी क कहना मान के एक दिन 22 के घरहि में अपने को बंद कर लीजिए।

         
 🙏

             
 दिनेश श्रीवास्तव






दिनेश श्रीवास्तव की कविता

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"जनता कर्फ्यू"


जनता कर्फ्यू का करें,अभिनंदन सब लोग।
दूर भगेगा जानिए,कोरोना का रोग।।
कोरोना का रोग,बैठकर घर में रहिए।
कुछ दिन का ये कष्ट,इसे हँसकर अब सहिए।।
करता विनय दिनेश, धर्म है सबका बनता।
मोदी जी की बात,सभी अब माने जनता।।

                      दिनेश श्रीवास्तव

दिनेश श्रीवास्तव की 10 कविताएं

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 दिनेश श्रीवास्तव:


दोहें
               "धैर्य"   

दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
 धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१

सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
 सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२

धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३

  जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
 धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४

राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५

जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
 संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६

विपदा आयी है बड़ी, निकल रही है आह।
 धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७

विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
 धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना'से  जंग।।-८

संयम,साहस,धीरता,शुचिता संव्यवहार।
'कोरोना'के रोग पर,इनसे करें प्रहार।।-९

 धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
 होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-१०

तालाबंदी हो गया,प्रतिष्ठान सब बंद।
धीरज रख कर मानिए,सरकारी प्रतिबंध।।-११

धीरज का आया यही,यहाँ परीक्षण काल।
सरकारी अनुदेश पर,उठे न कभी सवाल।।-१२

अक्षरशः पालन करें,कुछ दिन की है बात।
बाद अँधेरी रात के,आता सुखद प्रभात।।-१३

धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
 धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१४

धीरज के इस काल में,पड़े न साहस मंद।
कलम सदा चलती रहे,घर दरवाजे बंद।।

'कोरोना'से मुक्त हो,स्वछ रहे परिवेश।
धैर्य न टूटे आपका,विनती करे 'दिनेश'।।-१६

                    दिनेश श्रीवास्तव

                    ग़ाज़ियाबाद


कैरोना वायरस-कारण और निदान

----------------------------------------------

एक 'कॅरोना'वायरस,जग को किया तबाह।
निकल रही सबकी यहाँ, देखो कैसी आह।।-1

विश्वतंत्र व्याकुल हुआ,मरे हजारों लोग।
आपातित इस काल को,विश्व रहा है भोग।।-2

खान-पान आचरण ही,इसका कारण आज।
रक्ष-भक्ष की जिंदगी,दूषित आज समाज।।-3

योग-साधना छोड़कर,दुराचरण है व्याप्त।
काया कलुषित हो गई, मानस शक्ति समाप्त ।।-4

स्वसन तंत्र का संक्रमण,करता विकट प्रहार।
शीघ्र काल-कवलित करे,करता है संहार।।-5

ये विषाणु का रोग है,करता शीघ्र विनास।
रोगी से दूरी बने,रहें न उसके पास।।-6

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
ये विषाणु, इसका सदा,शीघ्र फैलना काम।।-7

हो बुखार खाँसी कभी,सर्दी और ज़ुकाम।
हल्के में मत लीजिए,लक्षण यही तमाम।।-8

भोजन नहीं गरिष्ठ हो,हल्का हो व्यायाम।
रहें चिकित्सक पास में,करिए फिर विश्राम।।-9

तुलसी का सेवन करें,श्याम-मिर्च के साथ।
पत्ता डाल गिलोय का,ग्रहण करें नित क्वाथ।।-10

करें विटामिन  'सी'  सदा,अक्सर हम उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई रोग।।-11

रहना अपने देश मे,अनुनय करे 'दिनेश'।
प्यारा अपना देश है,जाना नहीं विदेश।।-12

आएँ अगर चपेट में,रखिये धीरज आप।
वैद्य दवा के साथ ही,महा मृत्युंजय जाप।।-13

                     दिनेश श्रीवास्तव
                      गाज़ियाबाद



दिनेश श्रीवास्तव: गीतिका
-----------
                चिंता चिता समान
                ----------------------

चिंता ज्वाला बन करे, नित प्रति दग्ध शरीर।
चिंता चिता समान है,अति उपजाए पीर।।

पंथी करता क्यों यहाँ, पथ की चिंता आज।
मिलता उसको है यहाँ, लिखी गई तकदीर।।

क्या लेकर आए यहाँ, जाओगे सब छोड़।
फिर तुम किसकी चाह में,होते यहाँ अधीर।।

नश्वर जीवन है यहाँ, पुनर्जन्म है सत्य।
चिंतित हैं फिर किस लिए,राजा,रंक, फ़क़ीर।।

जीवन मे किसको मिला,सब कुछ यहाँ जहान।
गया सिकंदर लौट कर,खाली हाथ शरीर।।

चिंतित हो चिंतन करे,मानव प्रज्ञाहीन।
चिंता में व्याकुल यहाँ, पीटे व्यर्थ लकीर।।

कर्मशील बनकर रहो,चिंतामुक्त 'दिनेश'।
सत्य यही सब कह गए, गीता,कृष्ण,कबीर।।


         



दिनेश श्रीवास्तव: बाल-कविता
----------------

बापू ने जो राह दिखाई,
साफ सफाई करना भाई।
रोग व्याधियाँ दूर रहेंगी,
मोदी ने भी अलख जगाई।।

नए नए ये रोग निराले,
सुने नहीं थे,देखे भाले।
इसके कारण विश्व काँपता,
'कोरोना'को कौन सम्हाले।।

"स्वच्छमेव जयते"का नारा,
नारा यही हमारा प्यारा।
इससे सारे रोग भगेंगे,
यही हमारा बने सहारा।।

'कोरोना'को दूर भगाएँ,
साफ सफाई को अपनाएँ।
बापू के संदेश जगत को,
एक बार फिर से समझाएँ।।

सभी प्रश्न का एक है उत्तर,
धोना होगा हाथ निरंतर।
गर्म गर्म पानी को पीना,
इसका यह अचूक है मंतर।।

कभी न इससे है घबराना,
भीड़ भाड में कहीं न जाना।
दूर दूर से हाथ जोड़ना,
नहीं किसी को गले लगाना।।

नीबू और संतरा खाना,
मिले आँवला उसे चबाना।
लेकर शस्त्र विटामिन 'सी'का,
'कोरोना'को आज हराना।।

               

 
दिनेश श्रीवास्तव: दोहे-

            "कोरोना से बचाव"

हाथ मिलाना छोड़कर, कर को जोरि प्रणाम।
यही हमारी सभ्यता,सुबह मिलें या शाम।।-१

प्रियजन भगिनी या सुता,गले न मिलिए आप।
दूर रहें सब प्रेमिका,छोड़ प्रेम का ताप।।-२

प्रक्षालन हो हाथ का,साबुन से भरपूर।
प्रियजन को भी कीजिये,धोने को मजबूर।।-३

करें विटामिन 'सी'सदा,भोजन में उपयोग।
प्रतिरोधक क्षमता बढ़े,लगे न कोई  रोग।।-४

भीड़ भाड़ लगता जहाँ,वहाँ न जाएँ आप।
मिल सकता है आप को,कोरोना संताप।।-५

काली मिर्च गिलोय का,तुलसी अदरक साथ।
सेंधा नमक मिलाइए, बना पीजिए क्वाथ।।-६

सेवन प्रतिदिन कीजिए,नीबू एक निचोड़।
और आंवला स्वरस भी,काम करे बेजोड़।।-७

अपनी शक्ति बढ़ाइए, फिर प्रहार पुरजोर।
कोरोना भी हारकर,भगे मचाते शोर।।-८

अक्ष भक्ष को छोड़कर,भोजन शाकाहार।
करें निरंतर आप फिर,रोगों का संहार।।-९

बहुत जरूरी हो अगर, बाहर निकलें आप।
मास्क लगाकर निकलिए,करते शिव का जाप।।-१०

                      दिनेश श्रीवास्तव



 गीत
                --------

अक्ष भक्ष की धारणा,करते हैं व्यभिचार।
यही राक्षसी वृत्तियाँ,छोड़ो मेरे यार।।

मानव करता जा रहा,अपने को ही अंत।
कथनी करनी भेद से,नहीं अछूता संत।।
ढोंग प्रदर्शन को सदा,रहता है तैयार।
यही राक्षसी-----------------------।।

कुदरत के कानून को,तोड़ रहे सब लोग।
तरह तरह की व्याधियाँ,भोग रहे सब लोग।।
कुदरत भी तैयार है,करने को प्रतिकार।
यही राक्षसी--------------------।।

निष्कंटक जीवन बने,व्यर्थ मचे क्यों शोर।
मुड़कर फिर से देखिए,इस प्रकृति की ओर।।
दोहन इसका रोकिए,बने न ये लाचार।
यही राक्षसी---------------------।।

कोरोना का रोग भी,फैला है जो आज।
लगता कुदरत ही यहाँ, हमसे है नाराज।।
नष्ट भ्रष्ट हमने किया,कुदरत का शृंगार।।
यही राक्षसी--------------------।।

                         
दिनेश श्रीवास्तव: दोहे

                  "धैर्य"   

दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
 धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१

सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
 सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२

धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३

  जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
 धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४

राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५

जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
 संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६

विपदा है आई बड़ी, निकल रही है आह।
 धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७

विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
 धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना'से  जंग।।-८

 धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
 होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-९

धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
 धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१०

                 


दिनेश श्रीवास्तव: अपील
              -----------

सुन सारे!कहाँ से आवत हवे रे घूम के?
जब मना बा त का जरूरत बा एने वोने घुमला के।बुझात नइखे का।पूरा देश परेशान बा आ तोहार मटरगस्ती चालू बा।
सुन ले सुमेरवा!कान खोल के-
थेथरई मत कर न त टास्क फोर्स पकड़ लेई तब का करबे?घरवे में बैठला के काम बा।

आपो सभे कान खोल के सुन लेयीं और गाँठ बाँध लेयीं-

लबर लबर कर के समान  नहीं खरीदिये।दुकान भागल नहीं जा रहा है।

बढ़िया से हाथ गोड धो के बिस्तर पर पड़े रहिए।हाथ त कई बार सबुनाइये।मन घबराए त बी बी सी लंदन घरहि में बैठ के सुन लीजिए नाहीं त घरवे में जोगीरा गाईये।बहरा जायके कौनो काम नइखे।

घर के लईकन आ बुढ़ऊ क हाथ पैर बांध के घरहि में रखिये।

भोरे खरिहान जाना है त अकेलही जाईये।

खयिनी अकेलहिं ठोकिये और अकेलही खाइये।केहुसे न त माँगिये और न दीजिए।

कोरोना भुतहा रोग नहीं है।केहू ओझा सोखा के पास मत जाइए।

बुखार खाँसी सर्दी ज़ुकाम पहिलहुँ होखे।घबराए के नइखे।हँ कई दिन से होखे त डॉक्टर बाबू के पास जरूर जाईये।

बाकी भगवान पर भरोसा रखिये।कुछु ना होई।

हाँ, मोदी क कहना मान के एक दिन 22 के घरहि में अपने को बंद कर लीजिए।

            🙏

               
दिनेश श्रीवास्तव:

 "जनता कर्फ्यू"

जनता कर्फ्यू का करें,अभिनंदन सब लोग।
दूर भगेगा जानिए,कोरोना का रोग।।
कोरोना का रोग,बैठकर घर में रहिए।
कुछ दिन का ये कष्ट,इसे हँसकर अब सहिए।।
करता विनय दिनेश, धर्म है सबका बनता।
मोदी जी की बात,सभी अब माने जनता।।

                       दिनेश श्रीवास्तव:

वायरस-चेन
                ---------------


तोड़ दीजिए चेन को,हो जाएँगे मुक्त।
घातक है जो वायरस,हो जाएगा सुस्त।
हो जाएगा सुस्त,यहाँ फैलाव रुकेगा।
जाएगा ये हार,और फिर यहाँ झुकेगा।।
कोई आये पास,हाथ को जोड़ लीजिए।
यही वायरस चेन, इसे अब तोड़ दीजिए।।

                      दिनेश श्रीवास्तव:

 गीतिका-

              सफल रहे अभियान
             --------------------------

जहाँ नहीं कुछ हाथ में,ईश्वर का हो ध्यान।
वही शक्ति देगा हमे,और बचेगा प्रान।।

अभी शेष है देश में,तरह तरह के शस्त्र।
अभी कृष्ण का चक्र है,अभी राम का बान।।

विश्व जगत व्याकुल हुआ,वैज्ञानिक सब फेल।
सभी धार्मिक जगत का,व्यर्थ हुआ सब ज्ञान।।

संत पुरोहित थक गए,मुल्ले सभी फ़क़ीर।
आज चिकित्सा जगत का,करना है सम्मान।।

अहर्निशं सेवामहे, लगे चिकित्सक नर्स।
बजे तालियाँ आज फिर,उनका ही हो गान।।

छोड़ छाड़ सब आज फिर,लेकर चम्मच-थाल।
उनको भी दे दीजिए,थोड़ी सी मुस्कान।।

अँधियारा तो क्षणिक है,पुनःउजाली रात।
खंडित करना है यहाँ, अँधियारे का मान।।

टूटेगा अब आज यह,महासंक्रमण चेन।
जन जन का होगा यहाँ,निश्चित ही कल्यान।।

हारेगा यह एक दिन, मन में है विश्वास।
कोरोना का बाप भी,'मोदी'का फरमान।।

संकट की यह बात है,और संक्रमण- काल।
करता विनय 'दिनेश'है,सफल रहे अभियान।।

                दिनेश श्रीवास्तव
               २२ मार्च २०२०



                 ६.४५ प्रातः

सता की चौथी पारी / मनोज कुमार

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चुनौतियों को संभावना में बदलने का नाम है शिवराज

-मनोज कुमार

कुलजमा 15 महीने के अंतराल में शिवराजसिंह चौहान की मुख्यमंत्री के रूप वापसी मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाना चाहिए. नए मध्यप्रदेश के गठन के बाद से अब तक मुख्यमंत्री के रूप में जिन नाम को हम जानते हैं, उनमें से कोई ऐसा नहीं है कि लगातार 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे होंं और बहुत छोटे अंतराल में वापस मुख्यमंत्री बनकर सत्ता में वापसी हुई हो. अपनों और परायों को मुरीद बना लेना शिवराज सिंह चौहान के व्यक्तित्व की खासियत है तो राजनीतिक कौशल का लोहा भी वे मनवाते रहे हैं. एक बार फिर मध्यप्रदेश की राजनीति में वे चाणक्य बनकर नहीं बल्कि एक सौम्य राजनेता के रूप में अपनी वापसी की है. एक जननेता और जननायक के रूप में उनकी छवि बेमिसाल है क्योंकि वे सहज हैं, सरल हैं और आम और खास दोनों के लिए सर्वदा उपलब्ध रहने वाले राजनेताओं में हैं. 13 वर्षों के अपने लम्बे कार्यकाल में ऐसे कई अवसर आए जब वे मुख्यमंत्री के रूप में नहीं बल्कि कभी घर-परिवार के मुखिया बनकर तो कभी भाई और मामा बनकर. मामा शिवराजसिंह की जब एक बार फिर वापसी हुई है तो प्रदेश की जनता की उम्मीदें और बढ़ गई है. यह उम्मीदें शिवराज सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है लेकिन सच यही है कि चुनौतियों को संभावना में बदलने का नाम ही शिवराजसिंह चौहान है.

शिवराजसिंह चौहान को आप किस रूप में देखते हैं? यह सवाल आपसे पूछा जाए तो स्वाभाविक रूप से जवाब होगा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लेकिन इससे आगे आपसे पूछा जाए कि एक आम आदमी के रूप में क्यों नहीं तो जवाब देने में थोड़ा वक्त लग सकता है. इस सवाल का जवाब देने में वक्त लगना स्वाभाविक है क्योंकि जिस कालखंड में हम जी रहे हैं अथवा पिछला समय हमने जो गुजारा है, उसमें व्यक्ति को उसके गुणों से नहीं बल्कि उसके पद और पद की हैसियत से पहचाना है. स्वाभाविक है कि शिवराजसिंह चौहान की पहचान एक मुख्यमंत्री के रूप में है और इतिहास के पन्नों में भी उन्हें इसी पहचान के साथ दर्ज किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि अपना सा लगने वाला यह मुख्यमंत्री हमारे बीच का, आज भी अपना सा ही है. शिवराजसिंह के चेहरे पर तेज है तो कामयाबी का लेकिन मुख्यमंत्री होने का गरूर पहले भी नहीं रहा और आज भी नहीं होगा. चेहरे पर राजनेता की छाप नहीं. सत्ता के शीर्ष पर बैठने की उनकी कभी शर्त नहीं रही बल्कि उनका संकल्प रहा है प्रदेश की बेहतरी का. वे राजनीति में आने से पहले भी आम आदमी की आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रहे. वे किसी विचारधारा के प्रवर्तक हो सकते हैं लेकिन वे संवेदनशील इंसान है. एक ऐसा इंसान जो अन्याय को लेकर तड़प उठता है और यह सोचे बिना कि परिणाम क्या होगा, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने निकल पड़ता है. बहुतेरों को यह ज्ञात नहीं होगा कि शिवराजसिंह चौहान किसी समय मजदूरों को कम मजदूरी मिलने के मुद्दे पर अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए थे. शिवराजसिंह चौहान का यह तेवर परिवार को अंचभा में डालने वाला था. मामूली सजा भी मिली लेकिन उन्होंने आगाज कर दिया था कि वे आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे. ऐसा भी नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान में कुछ कमियां ना हो लेकिन जो खूबियां उनके व्यक्तित्व में है, वह उन कमियों को बौना कर देती है.

कुछ पुराने दिनों को याद कर लेना भी इस अवसर पर सामयिक हो जाता है. ज्ञात रहे कि बीते 13 सालों में शिवराजसिंह चौहान के कांधे पर हाथ रखकर सैकड़ों लोग यह कहते मिल जाते थे कि शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं. ‘शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं’, इसमें अपनापन तो था ही लेकिन एक भाव यह भी कि देखो हमारे साथ पढ़ा विद्यार्थी, हमारा दोस्त शिवराजसिंह आज मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री है. थोड़े से लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि ‘हम शिवराजसिंह के साथ पढ़े हैं’ं और थोड़े से लोग होंगे जो कहते मिल जाएंगे-‘शिवराजसिंह और हम साथ पढ़े हैं.’ शिवराजसिंह के साथ सहपाठी होने की यह गर्वानुभूति सालों गुजर जाने के बाद हो रही है तो इसलिए कि शिवराजसिंह चौहान जब भोपाल के अपने स्कूल ‘मॉडल स्कूल’ में जाते हैं तो मुख्यमंत्री बनकर नहीं, स्कूल के एक पुराने विद्यार्थी की तरह. शिक्षकों का चरण स्पर्श करना नहीं भूले. सहपाठियों को नाम से याद रखना और उन्हें संबोधित करना उनकी सादगी की एक झलक है.

1956 में जब नए मध्यप्रदेश का गठन हुआ और समय-समय पर मुख्यमंत्री बदलते रहे. हर मुख्यमंत्री की अपनी शैली थी. काम करने से लेकर जीवन जीने तक. लगभग सभी मुख्यमंत्री कुछ अलग दिखना चाहते थे या लोगों ने उन्हें वैसा प्रस्तुत करने की कोशिश की लेकिन 2005 में मुख्यमंत्री के इस परम्परागत चेहरे के विपरीत सादगी भरा एक चेहरा नुमाया हुआ था शिवराजसिंह चौहान का. संसद से विधानसभा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भी उन्होंने अपने लिए कोई बनावट नहीं की. उनकी बुनावट इतनी मोहक थी कि कभी पांव पांव वाले भइया के नाम से मशहूर शिवराजसिंह मामा के नाम से मशहूर हो गए. ऐसा नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान पहले मुख्यमंत्री हों जिन्हें विशेषण दिया गया बल्कि लगभग हर मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली और उनके तेवर के अनुरूप विशेषण मिलता रहा है. कोई राजा-महाराजा कहलाए तो किसी को संवेदनशील होने का विशेषण दिया गया. संत और साध्वी के रूप में मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हालने वाले भी थे लेकिन लगातार सत्ता के शिखर पर बैठे शिवराजसिंह चौहान की सादगी चर्चा में रही. एक बार जब वे सत्ता के शीर्ष पर बैठ रहे हैं तो इस बार भी उनकी सादगी, स्पष्टवादिता और अपनों के लिए जुझारूपन एक कारण होगा.

शिवराजसिंह चौहान की सादगी भारतीय राजनीति में उन्हें अलग तरह से रखती है. ‘आम’ से ‘खास’ बनने में उनकी कोई रूचि नहीं रही सो वे जैसा थे, वैसा ही बना रहना चाहते हैं. लगभग हर जगह वे अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ पायजामा-कुरता में मिलेंगे. जब वे अवकाश पर होते हैं तो निहायत एक आदमी की तरह टीशर्ट और फुलपेंट में दिख जाते हैं. यह उनका प्रिय लिबास है. तामझाम और शोशेबाजी के इस आधुनिक दौर में शिवराजसिंह की यह सादगी उन्हें औरों से अलग, बिलकुल अलग बनाती है. शिवराजसिंह की सादगी का आलम यह है कि वे गांव-देहात के दौरे के समय धूल भरी सडक़ में अपने लोगों के साथ बैठने में कोई हिचक नहीं करते हैं.

इस अवसर पर एक घटना का उल्लेख करना लाजिमी हो जाता है. विदिशा में जब वे सडक़ निर्माण का औचक निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं और बताते हैं कि वे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं तो मजदूर उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैंं. इस वाकये से शिवराजसिंह के चेहरे पर गुस्से का भाव नहीं आता है बल्कि वे हंसी में लेते हैं. साथ चल रहे अफसरों को कहते हैं चलो, भई यहां शिवराज को कोई पहचानता नहीं. क्या यह संभव है कि एक मुख्यमंत्री को उसकी जनता पहचानने से इंकार करे और वह निर्विकार भाव से लौट आए? यह सादगी शिवराजसिंह में मिल सकती है. उनके इन्हीं अनुभवों ने उन्हें आम आदमी से जोडऩे के लिए कई तरह के जतन करने का उपाय भी बताया. इन्हीं में से एक मुख्यमंत्री आवास पर होने वाली विभिन्न वर्गों की पंचायत रही है. कभी मुख्यमंत्री आवास आम आदमी के लिए तिलस्म सा था. बाहर से लोग अंदाज लगाया करते थे कि अंदर क्या क्या होगा लेकिन जब आम आदमी को मुख्यमंत्री आवास से बुलावा आया तो यह तिलस्म टूट गया था.

शिवराजसिंह की सादगी के यह उद्धरण वह हैं जिसकी गवाही पूरा मध्यप्रदेश दे रहा है. हां, यह बात भी तय है कि जब आप शिवराजसिंह चौहान को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जांचते हैं, परखते हैं तो एक राजनेता के रूप में कुछ कमियां आप को दिख सकती हैं. कुछ फैसले सबके मन के नहीं होते हैं और इस बिना पर आप उन्हें घेरे में ले सकते हैं लेकिन एक आदमी से जब आप सवाल करेंगे तो उनका जवाब होगा कि अपना अपना सा लगने वाला यह शिवराज हमारा मुख्यमंत्री है और हमें ऐसा ही मुख्यमंत्री चाहिए. शिवराजसिंह चौहान चौथी दफा मध्यप्रदेश के सिंहासन पर विराजमान हो रहे हैं तो वह सारे मिथक टूट जाते हैं कि भाजपा हाइकमान उनकेे नाम पर सहमत नहीं है. या ऐसे ही तमाम तरह के तर्क-कुर्तक धराशायी हो जाते हैं. उन पर यह आरोप भी सहजता से कई तरह के आरोप लगाया जा सकता है लेकिन सारे आरोप बेमानी हो जाते हैं क्योंकि जो जनता से दूर है, वह सिंहासन से दूर है. 

कोरोना से डरना बहुत जरूरी है

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कोरोना वायरस के मामले...

*USA*
 पहला हफ्ता - 2
 द्वितीय हफ्ता - 105
 तृतीय हफ्ता - 613

 *France*
 प्रथम हफ्ता - 12
 द्वितीय हफ्ता - 191
 तृतीय हफ्ता - 653
 चतुर्थ हफ्ता - 4499

 *Iran*
 प्रथम हफ्ता - 2
 द्वितीय हफ्ता - 43
 तृतीय हफ्ता - 245
 चतुर्थ हफ्ता - 4747
 पांचवा हफ्ता - 12729

 *Italy*
 प्रथम हफ्ता - 3
 द्वितीय हफ्ता - 152
 तृतीय हफ्ता - 1036
 चतुर्थ हफ्ता - 6362
 पांचवा हफ्ता - 21157

 *Spain*
 प्रथम हफ्ता - 8
 तृतीय हफ्ता - 674
 चतुर्थ हफ्ता - 6043

 *India*
 प्रथम हफ्ता - 3
 द्वितीय हफ्ता - 24
 तृतीय हफ्ता - 105

साथियो, अगले दो सप्ताह भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं।
यदि हम पर्याप्त सावधानी बरतते हैं और श्रृंखला को तोड़ते हैं तो हम कोरोना वायरस का प्रकोप खत्म कर सकते हैं, वरना हमारे साथ में एक बड़ी समस्या है विशेष रूप से बुजुर्ग आबादी के लिए !
अब तक सब ठीक है।  कोरोना वायरस को रोकने के लिए भारत ने अपनी लड़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया है।
अब हम स्टेज 3 में हैं, जिसमें वायरस सामाजिक संपर्कों और सामाजिक समारोहों में फैलता है।
यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है और पुष्टि किए गए मामलों की संख्या प्रतिदिन तेजी से फैलती है जैसे कि फरवरी के अंतिम सप्ताह और मार्च के दूसरे सप्ताह के बीच इटली में हुआ था।  300 से 10,000 तक।  यदि भारत अगले 3 से 4 हफ्तों तक इस चरण का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं होता है, तो संक्रमित हजारों में नहीं बल्कि लाखों में हो सकते हैं। यह अगले एक महीने के लिए महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि अधिकांश कार्यक्रम और सार्वजनिक समारोहों को 15 अप्रैल तक बंद कर दिया गया है। सिर्फ इसी वजह से स्कूल बंद हैं, अनिवार्य यात्रा और हॉलिडे बग से बचें। अगले साल छुट्टियां भी आएंगी, इसलिए बच्चों को लेकर कोरोना के साथ अपनी किस्मत ना आज़माएं।
विवाह समारोह, जन्मदिन की पार्टी आदि फिर भी आती रहेंगी, लेकिन ये सोच कर की मुझे कहीं कुछ नहीं होने वाला अपने, अपनों व सामान्य जन के साथ खिलवाड़ ना करें,
पूरी सावधानी बरतें, मेडिकल हिस्ट्री ऑफ इंडिया में अगले 30 दिन सबसे महत्वपूर्ण होंगे।  किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए घर पर और बाहर रहते समय सभी सावधानी बरतें।
एहतियात बरतें,  घबराऐं नहीं !

*अगले एक महीने तक सावधान रहने के साथ दूसरों को शिक्षित करके एक जिम्मेदार नागरिक बनें !*

शहीदों की चिताओं पर...../ विवेक शुक्ल

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भगत सिंह की चिता को देखने वाला कौन??

विवेक शुक्ल

  आपको शायद ही कोई शख्स मिला हो जिसने भगत सिंह की चिता को जलते हुए देखा हो। आखिर 24 मार्च,1931 को गुजरे हुए अब एक लंबा अरसा हो रहा है। उन्हें उनके दोनों साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था लाहौर में। उसके बाद उनका 24 मार्च,1931 को अंतिम संस्कार किया गया रात के वक्त। भगत सिंह की चिता को सतलज नदी के करीब जलते हुए देखा था पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने। वे तब 12-13 साल के थे।
गुजराल साहब अपने माता-पिता और कुछ पड़ोसियों के साथ लाहौर से बसों में भगत सिंह की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए गए थे। उनके साथ स्वाधीनता सेनानी सत्यावती भी थीं। वो पूर्व उप राष्ट्रपति कृष्णकांत की मां थीं। तब आज की तरह न तो खबरिया चैनल थे और न ही ट्वीटर। ले- देकर अखबारों से लोग अपनी खबरों की प्यास बुझाते थे। पर,  जनता को मालूम चल गया था कि गोरी ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को उनके साथियों के साथ फांसी पर लटका दिया है और उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया है।
 “भगत सिंह तब तक देश के नायक बन चुके थे। देश चाहता था कि उन्हें फांसी न हो।” ये बातें साल 2006 में गुजराल साहब ने इस नाचीज लेखक को अपने 6, जनपथ स्थित बंगले में एक बातचीत के दौरान बताई थीं। गुजराल साहब ने बताया था कि  भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटकाए जाने के चलते पंजाब समेत सारे देश में गुस्सा था। अवाम गोरी सरकार से सख्त खफा था।

 “ मेरे पिता  श्री अवतार नारायण गुजराल को मालूम चला कि भगत सिंह को फांसीपर लटकाने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है, तो वे अंत्येष्टि स्थल पर जाने के लिए तैयार होने लगे। तब हमारे तक हमारे कई पड़ोसी भी  उनके साथ अंत्येष्टि स्थल पर जाने के लिए आग्रह करने लगे। मैं हालांकि तब बहुत छोटा था, तो भी पिता जी मुझे भगत सिंह की अंत्येष्टि में ले जाने के लिए तैयार थे। मैं भी उनके साथ गया बस में बैठकर। बस से अंत्येष्टि स्थल में पहुंचने में करीब पौना घंटा लगा था। मेरा छोटा भाई सतीश ( चित्रकार सतीश गुजराल) घर में ही रहा। हम जब वहां पर पहुंचे तो पहले से ही काफी लोग उधर पहुंच चुके थे। भगत सिंह की चिता जल रही थी। हालांकि वो कमजोर पड़ गई थी। दिन था 25 मार्च,1931।” गुजराल साहब उस मंजर को याद करते हुए भावुक होने लगे थे। उनकी आंखें नम हो रही थीं।
गुजराल साहब को याद था कि किस तरह से सैकड़ों लोग चिता के पास बिलख-बिलख कर रो रहे थे।
“ भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव के शवों को गोरी सरकार ने उनके परिवारों को नहीं सौपा था। उनका पोस्ट मार्टम करवाने से पहले ही अपने आप स्तर पर अंत्येष्टि कर दी।”
तो देश में लग जाएगी आग
दरअसल सरकार को भय था कि उनके शव उनके परिवारों को सौंपे तो देश में आग लग जाएगी। उनका यह भी कहना था कि इन तीनों शहीदों को फांसी पर लटकाने के बाद इनके शवों पर सांर्डस के परिवार वालों ने गोलियां भी मारी थीं। यानी सरकार ने बर्बरता की सारी हदों को लांघा था। उसके कई दिनों तक गुजराल साहब के घर में चूल्हा नहीं जला था। सारे देश में मातम पसर गया था। किसी को खाना खाने की सुध नहीं थी।
 कब भगत सिंह ने हैट में खिंचवाई फोटो
शहीद भगत सिंह की हैट में फोटो को सारे देश ने देखा है। उस हैट में भगत सिंह ने फोटो दिल्ली के कश्मीरी  गेट के रामनाथ फोटो स्टुडियों में खिंचवाई थी। तब उनके साथ बटुकेश्वर दत्त ने भी हैट में फोटो खिंचवाया था। यह बात 4 अप्रैल, 1929 की है। इन दोनों क्रांतिकारियों ने    चार दिनों के बाद यानी 8 अप्रैल को केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था। बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ़्तारी दी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला। इससे पहले भगत सिंह का कोई हैट में फोटो नहीं मिलता। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के साथ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपबल्किन आर्मी ( एचएसआरए) के सदस्य जयदेव कपूर भी रामनाथ फोटो स्टुडियो गए थे। कहते हैं कि कपूर ने ही उस हमले की सारी योजना की रणनीति बनाई थी।  भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की हैट में फोटो लेने वाला रामनाथ फोटो स्टुडियो  कश्मीरी गेट में सेंट जेम्स चर्च के पास ठीक वहां पर होता था। भगत सिंह केजीवन पर लंबे समय से शोध कर रहे वरिष्ठ लेखक राजशेखर व्यास ने रामनाथ फोटो स्टुडियो से दोनों क्रांतिकारियों की 1980 में फोटो खरीदी थी। रामनाथ स्टुडियो के बाहर ही  भगत सिंह की बड़ी सी फोटो लगी हुई थी। बहरहाल, बम फेंकने की घटना के बाद रामनाथ फोटो स्टुडियों पर भी पुलिस बार-बार पूछताछ के लिए आने लगी थी। जयदेव कपूर ने उपर्युक्त फोटो और नेगेटिव बाद में रामनाथ फोटो स्टुडियो  में जाकर लिए थे।

हरिभूमि मेें पब्लिश लेख


कोरोना कुण्डलियां / दिनेश श्रीवास्तव

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कोरोना महामारी तथा तद्जनित प्रभाव पर आधारित कुछ कुण्डलिया -

                    चिकित्सा-सेवक
                    ----------------------


                        ( १)

मानव सेवा में लगे,करते हो तुम काम।
तुमको करता हूँ यहाँ,शत शत बार प्रणाम।।
शत शत बार प्रणाम,चिकित्सा सेवा करते।
अहर्निशं तैयार,हमेशा ही तुम रहते।।
कहता सत्य दिनेश,सभी खाते हैं मेवा।
 तुम करते हो वीर,हमेशा मानव सेवा।।

                           (२)

करना होगा अब हमें,उनका भी सम्मान।
इस विपदा के काल मे,लगे हुए जी जान।।
लगे हुए जी जान,हमेशा तत्पर रहते।
करें चिकित्सा कर्म,नहीं हैं फिर वे डरते।।
झोली उनकी आज,प्यार से भरना होगा।
मान और सम्मान,हमेशा करना होगा।।

                    (३)

करते सेवा रात दिन, सभी चिकित्सक नर्स।
बजा तालियाँ दीजिए,उनको भी कुछ हर्ष।।
उनको भी कुछ हर्ष,दीजिए!वह मुस्काएँ।
पाकर कुछ सम्मान,आज हर्षित हो जाएँ।।
कहता सत्य दिनेश,सभी के दुख को हरते।
बने ईश-अवतार,हमारी सेवा करते।।


           मजदूर/गरीब
           -----------------
                       (४)

कोरोना ने विश्व को,किया आज है त्रस्त।
विपदा भारी आ पड़ी,अब गरीब हैं पस्त।
अब गरीब हैं पस्त, उन्हें अब कौन बचाए।
मजदूरी है बंद, कहाँ से भोजन पाए।।
कहता सत्य दिनेश,भाग्य में उनके रोना।
सबसे दुखी गरीब,बनाया है कोरोना।।

                       (५)

आती विपदा जब कभी,पहले पड़ती मार।
उस गरीब के पेट पर,जाता है वह हार।।
जाता है वह हार, टूटकर सदा बिखरता।
उसका जाता फूट, भाग्य,फिर नहीं सँवरता।।
होता दुखी दिनेश,देखकर फटती छाती।
मजदूरों के भाग्य,सदा विपदा ही आती।।

             जागरूकता/हिदायत
             --------------------------
                              (६)

शिक्षा देकर आज फिर,जागृत करें समाज।
विपदा के इस काल मे,यही जरूरत आज।।
यही जरूरत आज,करें मत लापरवाही।
कुछ दिन की है बात,बंद हो आवाजाही।।
करता विनय दिनेश,माँगता है वह भिक्षा।
सुधरें खुद भी आप,और को भी दे शिक्षा।।

                       (७)

यही हिदायत आपको,घर में रहकर आप।
बैठ वहीं पर कीजिए, माँ गायत्री जाप।।
माँ गायत्री जाप,सुखद जीवन बीतेगा।
आया जो संताप,मनुज इसको जीतेगा।।
मानो मेरी बात,करो मत कहीं शिकायत।
घर मे रहना आप,आपको यही हिदायत।।

                     ( 8)

तोड़ दीजिए चेन को,हो जाएँगे मुक्त।
घातक है जो वायरस,हो जाएगा सुस्त।।
हो जाएगा सुस्त,तभी फैलाव रुकेगा।
जाएगा ये हार, और फिर यहाँ झुकेगा।।
कोई आये पास,हाथ को जोड़ लीजिए।
यही वायरस चेन,इसे अब तोड़ दीजिए।।

                   (९)

कोरोना ने विश्व का,छीन लिया है शांति।
चेहरे सबके मलिन हैं,मुख पर दिखती क्लांति।
मुख पर दिखती क्लांति,और मुरझाया लगता।
मानव से ही दूर,आज मानव है भगता।।
करता विनय दिनेश, धैर्यता कभी न खोना।
मन मे रखना आस,नष्ट होगा कोरोना।।

                      ( १०)

सहयोगी बन कीजिए, सबका ही सहयोग।
विपदा के इस काल ने,सबसे सुंदर योग।।
सबसे सुंदर योग, अभी बाहर मत निकालें।
सरकारी अनुदेश, सभी का पालन कर लें।
करता विनय दिनेश,यहाँ पर जो हैं रोगी।
विपदा के इस काल,बने उनके सहयोगी।।


                     दिनेश श्रीवास्तव

                    ग़ाज़ियाबाद


महाकवि वाट्स एप्प के आयुर्वेदिक दोहे

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❄ *आयुर्वेद दोहे*❄

💧💧💧💧💧💧💧💧💧

पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात!
सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात!!

*धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार!*
दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार!!

*ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुना नीर!*
कब्ज खतम हो पेट की, मिट जाए हर पीर!!

*प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप!*
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप!!

*ठंडा पानी पियो मत, करता क्रूर प्रहार!*
करे हाजमे का सदा, ये तो बंटाढार!!

*भोजन करें धरती पर, अल्थी पल्थी मार!*
चबा-चबा कर खाइए, वैद्य न झांकें द्वार!!

*प्रातः काल फल रस लो, दुपहर लस्सी-छांस!*
सदा रात में दूध पी, सभी रोग का नाश!!

*प्रातः- दोपहर लीजिये, जब नियमित आहार!*
तीस मिनट की नींद लो, रोग न आवें द्वार!!

*भोजन करके रात में, घूमें कदम हजार!*
डाक्टर, ओझा, वैद्य का , लुट जाए व्यापार !!

*घूट-घूट पानी पियो, रह तनाव से दूर!*
एसिडिटी, या मोटापा, होवें चकनाचूर!!

*अर्थराइज या हार्निया, अपेंडिक्स का त्रास!*
पानी पीजै बैठकर, कभी न आवें पास!!

*रक्तचाप बढने लगे, तब मत सोचो भाय!*
सौगंध राम की खाइ के, तुरत छोड दो चाय!!

*सुबह खाइये कुवंर-सा, दुपहर यथा नरेश!*
भोजन लीजै रात में, जैसे रंक सुजीत!!

*देर रात तक जागना, रोगों का जंजाल!*
अपच,आंख के रोग सँग, तन भी रहे निढाल^^

*दर्द, घाव, फोडा, चुभन, सूजन, चोट पिराइ!*
बीस मिनट चुंबक धरौ, पिरवा जाइ हेराइ!!

*सत्तर रोगों कोे करे, चूना हमसे दूर!*
दूर करे ये बाझपन, सुस्ती अपच हुजूर!!

*भोजन करके जोहिए, केवल घंटा डेढ!*
पानी इसके बाद पी, ये औषधि का पेड!!

*अलसी, तिल, नारियल, घी सरसों का तेल!*
यही खाइए नहीं तो, हार्ट समझिए फेल!

*पहला स्थान सेंधा नमक, पहाड़ी नमक सु जान!*
श्वेत नमक है सागरी, ये है जहर समान!!

*अल्यूमिन के पात्र का, करता है जो उपयोग!*
आमंत्रित करता सदा, वह अडतालीस रोग!!

*फल या मीठा खाइके, तुरत न पीजै नीर!*
ये सब छोटी आंत में, बनते विषधर तीर!!

*चोकर खाने से सदा, बढती तन की शक्ति!*
गेहूँ मोटा पीसिए, दिल में बढे विरक्ति!!

*रोज मुलहठी चूसिए, कफ बाहर आ जाय!*
बने सुरीला कंठ भी, सबको लगत सुहाय!!

*भोजन करके खाइए, सौंफ, गुड, अजवान!*
पत्थर भी पच जायगा, जानै सकल जहान!!

*लौकी का रस पीजिए, चोकर युक्त पिसान!*
तुलसी, गुड, सेंधा नमक, हृदय रोग निदान!

*चैत्र माह में नीम की, पत्ती हर दिन खावे !*
ज्वर, डेंगू या मलेरिया, बारह मील भगावे !!

*सौ वर्षों तक वह जिए, लेते नाक से सांस!*
अल्पकाल जीवें, करें, मुंह से श्वासोच्छ्वास!!

*सितम, गर्म जल से कभी, करिये मत स्नान!*
घट जाता है आत्मबल, नैनन को नुकसान!!

*हृदय रोग से आपको, बचना है श्रीमान!*
सुरा, चाय या कोल्ड्रिंक, का मत करिए पान!!

*अगर नहावें गरम जल, तन-मन हो कमजोर!*
नयन ज्योति कमजोर हो, शक्ति घटे चहुंओर!!

*तुलसी का पत्ता करें, यदि हरदम उपयोग!*
मिट जाते हर उम्र में,तन में सारे रोग।

*कृपया इस जानकारी को जरूर आगे बढ़ाएं*

💦💦💦💦💦💦💦💦💦

सावधान सजग सतर्क और एकांतवास

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प्रस्तुति - डा.  सुधीर तोमर


पुरानी कहावत है "Rome was not built in a day",
पर अब नयी आ गयी है  'But it collapsed in a week", ...

तो भैया कर ली तरक्की!! जीत लिए देश!! कर ली औध्योगिक क्रांति!! कमा लिए पेट्रो डॉलर!! बना लिए मॉल्टी नेशनल कारपोरेशन!! कर लिया जिहाद!! बन गए सुपर पावर या अब भी कुछ बाकीं है ?

एक सूक्षम से परजीवी ने आपको घुटनों पर ला दिया ? न एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? आपका सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ?? क्या हुआ?? निकल गयी हेकड़ी ?? बस इतना ही कमाया था इतने वर्षों में कि एक छोटे से जीव ने घरों में कैद कर दिया ???

मध्य युग में पूरे यूरोप पर राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पर आ गया , मध्य पूर्व को अपने कदमों से रौंदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनों पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिश बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं , जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे , उस रूस के बॉर्डर सील हैं , जिनके एक इशारे पर दुनिया के नक़्शे बदल जाते हैं , जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं , उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे , वो चीन , आज मुँह छिपाता फिर रहा है और सबकी गालियां खा रहा है।

और ये सब आशा भरी नज़रों से देख रहे हैं हमारे सबसे पुराने सनातनी नायक की तरफ , उस भारत की ओर जिसका सदियों अपमान करते रहे , रौंदते रहे , लूटते रहे

और ये सब किया है एक  छोटे से जीव ने जो दिखाई भी नहीं देता, मतलब ये कि एक मामूली से जीव ने आपको आपकी औकात बता दी।
वैसे बता दूँ , ये कोरोना अंत नहीं, आरम्भ है , एक नए युद्ध की , एक ऐसा युद्ध जिसमें आपके हारने की सम्भावना पूरी है।

जैसे जैसे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ेगा , ग्लेशियरो के बर्फ पिघलेंगे और आज़ाद होंगे लाखों वर्षों से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तैयारी!! ये कोरोना तो झांकी है , चेतावनी है , उस आने वाली विपदा की , जिसे आपने जन्म दिया है।

मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पे ले आयी ।।।बधाई ।

और जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ??

तक्षशिला के खंडहरो में , नालंदा की राख में , शारदा पीठ के अवशेषों में , मार्तण्डय के पत्थरों में ।।

 सूक्षम एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है। ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है और सदैव चलता रहेगा। इससे लड़ने के लिए के लिए हमने हर हथियार खोज भी लिया था , मगर आपके अहंकार, आपके लालच , स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया ।

क्या चाहिए था आपको???? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार ?
यूँ ही मांग लेते। राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते ।
सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्यहीन हीं थे , ले जाते ।

मगर आपने ये क्या किया?? विश्व वंधुत्वा की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया ?
जिसका मन आया वही अश्वों पर सवार होकर चला आया , रौंदने, लूटने , मारने , जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने।

कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्षशिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया , तो कोई किसी आसमानी किताब को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबों को जला गया , किसी ने उन्माद को जिताने के लिए शारदा पीठ टुकड़े टुकड़े कर दिया , तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया ।

और आज करुण निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित , पद दलित , भारत भूमि की ओर , जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है ।

किन्तु , हम फिर भी निराश नहीं करेंगे , फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घड़ी में छाँव देगा , श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे , ऋषि दधीचि के पुत्र अपने शरीर का अस्थि मज्जा देकर भी आपको बचाएंगे ।

किन्तु...

किन्तु, मार्ग उन्हीं नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा , जिन्हें कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोड़ा था ।
आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा , जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था ।
आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा , जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया ।
उन्ही मंदिरो में जाके घंटा नाद करना होगा जिनको कभी आपने तोड़ा था,
उन्ही वेदों को पढ़ना होगा , जिन्हें कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था,
उसी चन्दन तुलसी को मष्तक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मष्तक धड़ से अलग किये गए थे ।

ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना होगा।

फिर कहता हूँ इस दुनिया को अगर जीना है , तो सोमनाथ में सर झुकाने आना ही होगा , तक्षशिला के खंडहरों से माफ़ी मांगनी ही होगी , नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया ,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मां कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ...🙏🙏🙏🕉🕉🕉

कोरोनाः कथा अनुसंधान / भविष्य के लिए

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*दृश्य 1 :*
पर्दा खुलता है : चीन बीमार हो जाता है, एक "संकट"में प्रवेश करता है और अपने व्यापार को पंगु बना देता है। पर्दा बंद हो जाता है।
उन
* SCENE II। *
पर्दा खुलता है : चीनी मुद्रा का अवमूल्यन होता है। वे कुछ नहीं करते। पर्दा बंद हो जाता है।

* SCENE III। "
पर्दा खुलता है :: यूरोप और अमरीका की कंपनियों के व्यापार में कमी के कारण  इन कंपनियों के  शेयरों के भाव गिर जाते हैं उनके मूल्य के 40% तक, जो चीन में स्थित हैं। चीन कुछ नहीं करता है।

* SCENE IV। *
पर्दा खुलता है :: दुनिया बीमार है, चीन यूरोप और अमेरिका की कंपनियों के शेयर 30% से भी कम  कीमत पर खरीद लेता है। जब दुनिया में इस बीमारी के कारण सारे व्यापार धंधे बंद पड़ जाते है, पर्दा बंद हो जाता है।

* SCENE V. *
पर्दा खुलता है: चीन ने इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया है और अब वह  यूरोप और अमेरिका में कंपनियों का मालिक है।  क्युकी यहां व्यापार धंधे ध्वस्त हो चुके हैं और वह यह तय करता है कि ये कंपनियां चीन में रहें और $ 20,000 बिलियन कमाएं। पर्दा बंद हो जाता है। नाटक इसे कहा जाता है?

 * स्कैन VI: *
 * शह और मात! *

 * फिर से देखना लेकिन सच है *

कल और आज के बीच दो वीडियो जारी हुए हैं, जिनसे मुझे कुछ संदेह हुआ,  कोई जरूरी नहीं, हो सकता है यह सिर्फ मेरी अटकल हो। पर मुझे विश्वास है कि कोरोनो वायरस को जानबूझकर स्वयं चीन द्वारा फैलाया गया था। वो पहले से ही तैयार थे।
 इस नाटक के शुरू होने के तीन हफ्ते में ही उन्होंने 12,000 बिस्तर वाले अस्पताल पहले से ही बनवा लिए केसे? क्या वास्तव में  उन्होंने इनका निर्माण दो सप्ताह में किया? हो ही नहीं सकता। वो  उनका निर्माण पहले से ही कर चुके थे। क्युंकी ये सब एक योजना का हिस्सा था।
कल उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने महामारी को रोक दिया है। वे जश्न मनाते हुए वीडियो में दिखाई देते हैं, वे घोषणा करते हैं कि उनके पास एक टीका भी है। सभी आनुवंशिक जानकारी के बिना वे इसे इतनी जल्दी कैसे बना सकते हैं? पर यदि आप खुद ही इस नाटक के निर्माता हों तो यह बिल्कुल मुश्किल भी नहीं है।
 और आज मैंने सिर्फ एक वीडियो देखा जो बताता है कि कैसे जिन पिंग जो की दुनिया के  शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति है, उसने पूरी दुनिया को बगैर किसी युद्ध के घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। कोरोना वायरस के कारण, चीन में पश्चिमी देशों की कंपनियों का कारोबार नाटकीय रूप से गिर गया। जब दुनिया भर के स्टॉक एक्सचेंजों में इन कंपनियों के शेयर के भाव गिर गए तो उन्हें चीनियों द्वारा खरीद लिया गया। अब चीन, अमेरिका और यूरोप में इन्हीं एक्सचेंजों और अपनी पूंजी द्वारा यह डिसाइड करेगा कि बाज़ार का रुख कैसा होगा, औेर कीमतों को निर्धारित करने में सक्षम होगा। पश्चिम को अपनी जरूरत की हर चीज बेचने के लिए।
क्या गजब की योजना ?

हा इसमें  संयोग से कुछ बूढ़े मर गए? कम उम्र के लोग भी मारे गए पर ना तो चीन को इसकी परवाह है और ना ही कोई  बड़ी समस्या। वो इनके परिजनों को थोड़े समय मुआवजे के रूप में पेंशन दे देगा , पर इसके एवज में उसने कितनी बड़ी लूट की है। अभी पश्चिम आर्थिक रूप से पराजित है, संकट में और बीमारी से स्तब्ध। बिना कुछ जाने कि यह सब एक योजना का हिस्सा है और बहुत ही सोच समझ कर बनाई गई परफेक्ट योजना ।
अब चीन 1.18 ट्रिलियन होल्डिंग वाले जापान के बाद अमेरिकी खजाने के सबसे बड़े मालिक है।
-------_ -------------- _------- //// - //////
अब देखिए इस नाटक के दूसरे किरदारों का रोल
कैसे रूस और उत्तर कोरिया में करोना नामक घातक बीमारी के केस इतने कम हैं या नहीं हैं जबकि वो तो चीन के सहयोगी हैं उनकी आपस में आवाजाही भी ज्यादा है। फिर भी क्युं उनके यहां करोना ने वैसा विकराल रूप नहीं दिखाया जैसा कि अन्य अमेरिकी और यूरोपीय देशों में देखने को मिला।
क्या इसलिए कि वे चीन के कट्टर सहयोगी हैं ?

दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका / दक्षिण कोरिया / यूनाइटेड किंगडम / फ्रांस / इटली / स्पेन और एशिया गंभीर रूप से प्रभावित हैं

कैसे वुहान अचानक घातक वायरस से मुक्त हुआ ?

चीन का कहना है कि उसके द्वारा उठाए गए कठोर उपाय के कारण वुहान करोना मुक्त हो गया। कैसे वो कौन से उपाय थे, चीन ने उनका खुलासा नहीं किया। चलिए हम इसको इस तरह से देखते हैं कि वुहान ही क्यों जो वायरस पूरी दुनिया में फैल गया। वो वायरस चीन के दूसरे हिस्सों में क्यूं नहीं फैला ? बीजिंग जो कि चीन की राजधानी थी वहां इसका कोई भी असर देखने को क्यूं नहीं मिला? क्या एक भी संक्रमित बीजिंग तक नहीं पहुंचा ? जबकि पूरी दुनिया में संक्रमण फैल चुका है। या फिर इस नाटक को सिर्फ वुहान के लिए रचा गया था? क्या एक भी संक्रमित व्यक्ति ने नवम्बर से लेकर जनवरी तक वुहान  से चीन के अन्य हिस्सों में यात्रा नहीं की? जबकि इसके उलट ये संक्रमित  दुनिया के लगभग हर कोने में पहुंच गए। वो भी अच्छी खासी तादाद में, कैसे? क्यू ?
बीजिंग में करोना से एक व्यक्ति नहीं मारा गया? और सिर्फ वुहान में हजारों..

यह विचार करना और  दिलचस्प है ., कि अब कैसे चीन ने इस पर काबू पा लिया? उन्होंने इसका क्या इलाज किया और फिर अब उसे व्यापार के लिए खोल भी दिया। आखिर कैसे? जबकि दुनिया भर के डाक्टर इसका इलाज ढूंढ रहे हैं तो चीनियों ने कैसे ये चमत्कार कर लिया?

खैर ..

करोना को हमें व्यापार युद्ध में यूएसए द्वारा चीन की बांह मोड़ने की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए...

अमेरिका और उपर्युक्त सभी देश आर्थिक रूप से तबाह हैं...

जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन की योजना के अनुसार ढह जाएगी।

चीन जानता है कि वह अमेरिका को सैन्य रूप से नहीं हरा सकता क्योंकि अमेरीका वर्तमान में दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश है।

तो उसने यहां वायरस का उपयोग किया ... जो कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षमताओं को पंगु बना दे।

मुझे यकीन है कि नैन्सी पेलोसी(जो कि अमेरिकी विपक्षी दल की नेता है)  को भी इसमें एक हिस्सा मिला होगा .... ट्रम्प को पछाड़ने के लिए ...।
 राष्ट्रपति ट्रम्प हमेशा से यह बताते रहे हैं कि कैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था सभी मोर्चों पर सुधार कर रही थी और नौकरियां संयुक्त राज्य अमेरिका में वापस आ रही थीं।

AMERICA GREAT AGAIN बनाने की उनकी दृष्टि को नष्ट करने का एकमात्र तरीका एक ECONOMIC HAVOC है।

नैन्सी पेलोसी महाभियोग के माध्यम से ट्रम्प को नीचे लाने में असमर्थ थी ..... इसलिए क्यू ना चीन के साथ मिलकर एक वायरस जारी करके ट्रम्प को नष्ट कर दिया जाए ।

वुहान की महामारी एक सोची समझी साजिश थी।

आप ही सोचिए महामारी के चरम पर .... चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ... उन प्रभावी क्षेत्रों का दौरा करने के लिए जाते वक़्त  बस एक साधारण आरएम 1 फेसमास्क पहने हुए थे जबकि इटली में इस महामारी का इलाज कर रहे डाक्टर पूरी तरह कवर होने और सावधानी बरतने के बाद भी संक्रमित हो रहे हैं।

राष्ट्रपति के रूप में उन्हें सिर से पैर तक ढंका जाना चाहिए था ... लेकिन ऐसा नहीं था, क्यों?  क्या इसीलिए की इस महामारी से होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से बचने के लिए उन्होंने पहले से ही कोई टीका लगा रखा था ? इसका मतलब है कि इस महामारी का इलाज पहले ही ढूंढ लिया गया था, बाद में इस वायरस को फैलाया गया है।
शायद यह सब चीन की योजना थी, अब  ECONOMIC COLLAPSE के कगार पर बैठे देशों से अधिकतर शेयर स्टॉक खरीदने के बाद विश्व अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने  की ..... बाद में चीन यह घोषणा करेगा कि उनके मेडिकल शोधकर्ताओं ने वायरस को नष्ट करने का इलाज ढूंढ लिया है और इस तरह इस नाटक की समाप्ति की घोषणा हो जाएगी और बिना किसी युद्ध के चीन ने अपना साम्राज्य पूरी दुनिया में फैला दिया। अब वह अपने देश में बैठे बैठे ही किसी भी देश की अर्थवयवस्था को हिला सकता है। जैसा की अभी भारत ने मलेशिया के साथ किया था। जब मलेशिया के राष्ट्रपति ने धारा 370 के खिलाफ बयान दिए थे, उसके बाद भारत ने वहां के बाजार को हिलाकर रख दिया। ऐसा ही अब चीन भी अपने सभी पश्चिमी गठबंधनों के साथ मिलकर विश्व के अलग अलग  देशों की अर्थव्यवस्था के साथ करेगा, और ये देश बहुत जल्द ही अपने नए मास्टर ..... चीन के गुलाम हो जाएंगे। भविष्य का युद्ध हथियारों से नहीं व्यापार से शेयर स्टॉक से लड़ा जाएगा और चीन ने इस विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी है। आपको हमें और देश को समझना होगा कि इस तरह के युद्ध में हमारी रणनीति क्या हो?
-साभार*दृश्य 1 :*
पर्दा खुलता है : चीन बीमार हो जाता है, एक "संकट"में प्रवेश करता है और अपने व्यापार को पंगु बना देता है। पर्दा बंद हो जाता है।
उन
* SCENE II। *
पर्दा खुलता है : चीनी मुद्रा का अवमूल्यन होता है। वे कुछ नहीं करते। पर्दा बंद हो जाता है।

* SCENE III। "
पर्दा खुलता है :: यूरोप और अमरीका की कंपनियों के व्यापार में कमी के कारण इन कंपनियों के शेयरों के भाव गिर जाते हैं उनके मूल्य के 40% तक, जो चीन में स्थित हैं। चीन कुछ नहीं करता है।

* SCENE IV। *
पर्दा खुलता है :: दुनिया बीमार है, चीन यूरोप और अमेरिका की कंपनियों के शेयर 30% से भी कम कीमत पर खरीद लेता है। जब दुनिया में इस बीमारी के कारण सारे व्यापार धंधे बंद पड़ जाते है, पर्दा बंद हो जाता है।

* SCENE V. *
पर्दा खुलता है: चीन ने इस बीमारी को नियंत्रित कर लिया है और अब वह यूरोप और अमेरिका में कंपनियों का मालिक है। क्युकी यहां व्यापार धंधे ध्वस्त हो चुके हैं और वह यह तय करता है कि ये कंपनियां चीन में रहें और $ 20,000 बिलियन कमाएं। पर्दा बंद हो जाता है। नाटक इसे कहा जाता है?

 * स्कैन VI: *
 * शह और मात! *

 * फिर से देखना लेकिन सच है *

कल और आज के बीच दो वीडियो जारी हुए हैं, जिनसे मुझे कुछ संदेह हुआ, कोई जरूरी नहीं, हो सकता है यह सिर्फ मेरी अटकल हो। पर मुझे विश्वास है कि कोरोनो वायरस को जानबूझकर स्वयं चीन द्वारा फैलाया गया था। वो पहले से ही तैयार थे।
 इस नाटक के शुरू होने के तीन हफ्ते में ही उन्होंने 12,000 बिस्तर वाले अस्पताल पहले से ही बनवा लिए केसे? क्या वास्तव में उन्होंने इनका निर्माण दो सप्ताह में किया? हो ही नहीं सकता। वो उनका निर्माण पहले से ही कर चुके थे। क्युंकी ये सब एक योजना का हिस्सा था।
कल उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने महामारी को रोक दिया है। वे जश्न मनाते हुए वीडियो में दिखाई देते हैं, वे घोषणा करते हैं कि उनके पास एक टीका भी है। सभी आनुवंशिक जानकारी के बिना वे इसे इतनी जल्दी कैसे बना सकते हैं? पर यदि आप खुद ही इस नाटक के निर्माता हों तो यह बिल्कुल मुश्किल भी नहीं है।
 और आज मैंने सिर्फ एक वीडियो देखा जो बताता है कि कैसे जिन पिंग जो की दुनिया के शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति है, उसने पूरी दुनिया को बगैर किसी युद्ध के घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। कोरोना वायरस के कारण, चीन में पश्चिमी देशों की कंपनियों का कारोबार नाटकीय रूप से गिर गया। जब दुनिया भर के स्टॉक एक्सचेंजों में इन कंपनियों के शेयर के भाव गिर गए तो उन्हें चीनियों द्वारा खरीद लिया गया। अब चीन, अमेरिका और यूरोप में इन्हीं एक्सचेंजों और अपनी पूंजी द्वारा यह डिसाइड करेगा कि बाज़ार का रुख कैसा होगा, औेर कीमतों को निर्धारित करने में सक्षम होगा। पश्चिम को अपनी जरूरत की हर चीज बेचने के लिए।
क्या गजब की योजना ?

हा इसमें संयोग से कुछ बूढ़े मर गए? कम उम्र के लोग भी मारे गए पर ना तो चीन को इसकी परवाह है और ना ही कोई बड़ी समस्या। वो इनके परिजनों को थोड़े समय मुआवजे के रूप में पेंशन दे देगा , पर इसके एवज में उसने कितनी बड़ी लूट की है। अभी पश्चिम आर्थिक रूप से पराजित है, संकट में और बीमारी से स्तब्ध। बिना कुछ जाने कि यह सब एक योजना का हिस्सा है और बहुत ही सोच समझ कर बनाई गई परफेक्ट योजना ।
अब चीन 1.18 ट्रिलियन होल्डिंग वाले जापान के बाद अमेरिकी खजाने के सबसे बड़े मालिक है।
-------_ -------------- _------- //// - //////
अब देखिए इस नाटक के दूसरे किरदारों का रोल
कैसे रूस और उत्तर कोरिया में करोना नामक घातक बीमारी के केस इतने कम हैं या नहीं हैं जबकि वो तो चीन के सहयोगी हैं उनकी आपस में आवाजाही भी ज्यादा है। फिर भी क्युं उनके यहां करोना ने वैसा विकराल रूप नहीं दिखाया जैसा कि अन्य अमेरिकी और यूरोपीय देशों में देखने को मिला।
क्या इसलिए कि वे चीन के कट्टर सहयोगी हैं ?

दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका / दक्षिण कोरिया / यूनाइटेड किंगडम / फ्रांस / इटली / स्पेन और एशिया गंभीर रूप से प्रभावित हैं

कैसे वुहान अचानक घातक वायरस से मुक्त हुआ ?

चीन का कहना है कि उसके द्वारा उठाए गए कठोर उपाय के कारण वुहान करोना मुक्त हो गया। कैसे वो कौन से उपाय थे, चीन ने उनका खुलासा नहीं किया। चलिए हम इसको इस तरह से देखते हैं कि वुहान ही क्यों जो वायरस पूरी दुनिया में फैल गया। वो वायरस चीन के दूसरे हिस्सों में क्यूं नहीं फैला ? बीजिंग जो कि चीन की राजधानी थी वहां इसका कोई भी असर देखने को क्यूं नहीं मिला? क्या एक भी संक्रमित बीजिंग तक नहीं पहुंचा ? जबकि पूरी दुनिया में संक्रमण फैल चुका है। या फिर इस नाटक को सिर्फ वुहान के लिए रचा गया था? क्या एक भी संक्रमित व्यक्ति ने नवम्बर से लेकर जनवरी तक वुहान से चीन के अन्य हिस्सों में यात्रा नहीं की? जबकि इसके उलट ये संक्रमित दुनिया के लगभग हर कोने में पहुंच गए। वो भी अच्छी खासी तादाद में, कैसे? क्यू ?
बीजिंग में करोना से एक व्यक्ति नहीं मारा गया? और सिर्फ वुहान में हजारों..

यह विचार करना और दिलचस्प है ., कि अब कैसे चीन ने इस पर काबू पा लिया? उन्होंने इसका क्या इलाज किया और फिर अब उसे व्यापार के लिए खोल भी दिया। आखिर कैसे? जबकि दुनिया भर के डाक्टर इसका इलाज ढूंढ रहे हैं तो चीनियों ने कैसे ये चमत्कार कर लिया?

खैर ..

करोना को हमें व्यापार युद्ध में यूएसए द्वारा चीन की बांह मोड़ने की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए...

अमेरिका और उपर्युक्त सभी देश आर्थिक रूप से तबाह हैं...

जल्द ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था चीन की योजना के अनुसार ढह जाएगी।

चीन जानता है कि वह अमेरिका को सैन्य रूप से नहीं हरा सकता क्योंकि अमेरीका वर्तमान में दुनिया में सबसे शक्तिशाली देश है।

तो उसने यहां वायरस का उपयोग किया ... जो कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षमताओं को पंगु बना दे।

मुझे यकीन है कि नैन्सी पेलोसी(जो कि अमेरिकी विपक्षी दल की नेता है) को भी इसमें एक हिस्सा मिला होगा .... ट्रम्प को पछाड़ने के लिए ...।
 राष्ट्रपति ट्रम्प हमेशा से यह बताते रहे हैं कि कैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था सभी मोर्चों पर सुधार कर रही थी और नौकरियां संयुक्त राज्य अमेरिका में वापस आ रही थीं।

AMERICA GREAT AGAIN बनाने की उनकी दृष्टि को नष्ट करने का एकमात्र तरीका एक ECONOMIC HAVOC है।

नैन्सी पेलोसी महाभियोग के माध्यम से ट्रम्प को नीचे लाने में असमर्थ थी ..... इसलिए क्यू ना चीन के साथ मिलकर एक वायरस जारी करके ट्रम्प को नष्ट कर दिया जाए ।

वुहान की महामारी एक सोची समझी साजिश थी।

आप ही सोचिए महामारी के चरम पर .... चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ... उन प्रभावी क्षेत्रों का दौरा करने के लिए जाते वक़्त बस एक साधारण आरएम 1 फेसमास्क पहने हुए थे जबकि इटली में इस महामारी का इलाज कर रहे डाक्टर पूरी तरह कवर होने और सावधानी बरतने के बाद भी संक्रमित हो रहे हैं।

राष्ट्रपति के रूप में उन्हें सिर से पैर तक ढंका जाना चाहिए था ... लेकिन ऐसा नहीं था, क्यों? क्या इसीलिए की इस महामारी से होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से बचने के लिए उन्होंने पहले से ही कोई टीका लगा रखा था ? इसका मतलब है कि इस महामारी का इलाज पहले ही ढूंढ लिया गया था, बाद में इस वायरस को फैलाया गया है।
शायद यह सब चीन की योजना थी, अब ECONOMIC COLLAPSE के कगार पर बैठे देशों से अधिकतर शेयर स्टॉक खरीदने के बाद विश्व अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने की ..... बाद में चीन यह घोषणा करेगा कि उनके मेडिकल शोधकर्ताओं ने वायरस को नष्ट करने का इलाज ढूंढ लिया है और इस तरह इस नाटक की समाप्ति की घोषणा हो जाएगी और बिना किसी युद्ध के चीन ने अपना साम्राज्य पूरी दुनिया में फैला दिया। अब वह अपने देश में बैठे बैठे ही किसी भी देश की अर्थवयवस्था को हिला सकता है। जैसा की अभी भारत ने मलेशिया के साथ किया था। जब मलेशिया के राष्ट्रपति ने धारा 370 के खिलाफ बयान दिए थे, उसके बाद भारत ने वहां के बाजार को हिलाकर रख दिया। ऐसा ही अब चीन भी अपने सभी पश्चिमी गठबंधनों के साथ मिलकर विश्व के अलग अलग देशों की अर्थव्यवस्था के साथ करेगा, और ये देश बहुत जल्द ही अपने नए मास्टर ..... चीन के गुलाम हो जाएंगे। भविष्य का युद्ध हथियारों से नहीं व्यापार से शेयर स्टॉक से लड़ा जाएगा और चीन ने इस विश्व युद्ध की शुरुआत कर दी है। आपको हमें और देश को समझना होगा कि इस तरह के युद्ध में हमारी रणनीति क्या हो?
-साभार

How to d Deal with the lockout

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Crises Management

How to deal with the Lockout

1. Stop getting frustrated and accept  that it is the need of the hour.
2. Have a briefing Session with your family and explain them that we are not on holiday but We are fighting an important battle against a pandemic,  We Can win only by being united.
3. Conduct a micro level audit of your Kitchen and stocks. Actually take a note and pen and write down. (Please do not be proud of your memory power).
4. Plan the menu for first 2 to 4 days by utilising those long stored items and perishable items.
5. Have a fair estimation of stocks like rice, wheat, oil, sugar, grains etc and plan the menu with simple items. We can definitely enjoy those 4 or 5 course meals later once we pass through this tough time.
6. A wise eater is who limit the food intake to 80%. There should remain nothing as left over. Prepare a sufficient and minimum quantity. As the physical activities are curtailed, so the food intake also to be proportionated.
7. Take Stock of medicines needed for elders and family.
8. FMCGs like Soap, Paste, hair oil, dishwash have to be rationed. Cut the soap bar into half.
9. Prepare a shopping list of only essentials. Those Wall hangings, Nail polishes, New towels, and bedsheets can be bought when normalcy returns.
10. Buy essentials based on sensible estimate. Do not stock it to Iast till Deepavali.
11. Make sure that everyone at home including you spend enough time at sunlight and doing sufficient physical exercise during the course of the day.
12. Dont do that adventurous yogasana by watching Youtube. Physical injury is the last thing you need at this time of crises.
13. When you venture out for Grocery and Pharmacy, Knock the next door and enquire if they need something. By which you will reduce the crowd at shop.
14. Avoid cash transactions. But if Currency is unavoidable put it in a separate pouch and wash your hands immediately after returning from the store.
15.Have faith in your Goverment. If you really runout of supplies, some helpline number will popup. Believe your Government. Do not heed to the negative propoganda in Social Media.
16. Drink plenty of water, Read books, talk more with family (unless you are busy with work from home schedule), Play games which keeps everybody talking and active, rather than getting glued to TV or internet.
17. Obviously when maid is not there share all the house hold work.
18. Set aside a time for Family Prayer. Thank Almighty for keeping us safe. Pray for those who work at outside 24x7, so that we live peacefully in our home. Pray for those who got stranded and suffering from hunger. Pray for them so that Almighty may feed them as He feeds the birds of the sky without fail.
19. Stay happy and send motivating messages to others. Unless it is absolutely necessary do not send pictures and Videos through Whats app and Face Book. Internet is getting overloaded. Keep it simple. Cheers.

कोरोनाः या लाक डाउन संकट??

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संपूर्ण लाक डाउन संकट के लिए जिम्मेदार कौन?
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विकास वर्मा


अचानक सबकुछ ला‌‌कडाउन के बाद देशभर में मच रहे अफ़रा-तफ़री और संकट के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? करोना महामारी के संभावित खतरों से बचने के लिए क्या सबकुछ लाक डाउन और तुरंत आनन-फानन में लाक डाउन ही एकमात्र, तात्कालिक और सबसे सही विकल्प था या इससे बेहतर कोई और विकल्प या रास्ता हो सकता था? दिल्ली समेत देश भर के तमाम महानगरों और नगरों से लाखों की संख्या में जब गरीब, मजदूर और मेहनतकशों की भीड़ गरीब और बीमारू राज्यों यूपी, बिहार और झारखंड की तरफ सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा भूखे- प्यासे और पैदल ही चले आ रहे हैं तो ये सवाल उठना लाज़िम है। क्या सचमुच सरकार (प्रधानमंत्री मोदी) के पास और कोई विकल्प नहीं बचे थे? क्या सचमुच 130 करोड़ आबादी को करोना (COVID-19) संक्रमण के संभावित खतरों से बचाने और करोना को हराने के लिए संपूर्ण लाकडाउन करने का फैसला फ़ौरी तौर पर लेना जरूरी था, चाहे आम जनता और देश को इसकी कोई भी क़ीमत चुकानी पड़े? इसका जवाब है शायद नहीं।
मेरे ख्याल से प्रधानमंत्री मोदी के पास देश को करोना संकट के संभावित संक्रमण और महामारी के खतरों से बचाने/ निपटने के लिए संपूर्ण लाक डाउन करने से पहले कई विकल्प थे। और अगर उन विकल्पों पर काम किया जाता तो शायद संपूर्ण लाक डाउन की नौबत भी नहीं आती। भारत में करोना या COVID-19 संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को आया था। इससे पहले यह चीन जहां से यह बीमारी दुनिया भर में इंपोर्ट हुई है वहां के बुहान शहर में महामारी का रूप ले चुका था। भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को इस बीमारी की भयावहता और देश में इसके संक्रमण फैलने के संभावित खतरों के बारे में भली-भांति पता (इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स और WHO की ओर से जारी एडवाइजरीज़ से ) था। यानी प्रधानमंत्री मोदी के पास पूरा फरवरी महीना और मार्च का पौने महीना यानी करीब 50 दिन का वक्त इस बीमारी के खतरों से देश की 130 करोड़ आबादी को बचाने के लिए था। इतने समय में सरकार चाहती तो बहुत कुछ कर सकती थी। लेकिन सरकार तबतक सोई रही, जबतक खतरा सिर से ऊपर बहने की स्थिति में नहीं आ गई यानी जब दुनियाभर के एक्सपर्ट्स ये कहने लगे कि भारत करोना वायरस की महामारी का एपिक सेंटर बनने वाला है। अलबत्ता समय रहते ना तो संक्रमण से बचाव के स्तर पर और ना ही देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की तैयारी के स्तर पर मोदी सरकार ने कुछ किया। एक्सपर्ट्स की मानें तो करोना वायरस का संक्रमण भारत में खुद ही नहीं पनपा है, बल्कि यह चीन और चीन के रास्ते दूसरे मूल्कों से होते हुए भारत की सरजमीं पर पहुंचा है। लिहाजा मोदी सरकार के पास पूरा वक्त था कि वह विदेशों से इस बीमारी/ संक्रमण को लेकर आने वाले पीड़ित लोगों के प्रवेश पर पहले ही पूरी कड़ाई के साथ रोक लगा देती। मसलन, जनवरी/ फरवरी में ही भारत आ रहे लोगों के वीज़ा को रद्द कर दिया जाता या रेस्टिक्ट किया जाता यानी उनकी पूर्ण स्वास्थ्य जांच के बाद ही उन्हें भारत आ रहे विमानों में प्रवेश दिया जाता। विदेश आने-जाने वालों को एडवाइजरी जारी कर दिया जाता कि वह दूसरे देशों की यात्रा नहीं करें और जो देश लौटना चाहते हैं वे जल्द से जल्द भारत वापस लौट आएं। बल्कि फरवरी के अंतिम हफ्ते और मार्च के शुरूआत में ही जब चीन समेत कई देशों में कोरोना के संक्रमण बड़े पैमाने पर फैला गए थे तो भारत की सरजमीं पर किसी भी देश से किसी शख्स की एंट्री पूरी तरह रोक दी जाती। ऐसा होता तो हम इस महामारी के संभावित खतरों से शायद देश को बचा लेते वह भी बिना संपूर्ण लाकडाउन किए। लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। इंटरनेशनल फ्लाइट्स 25 मार्च तक भारत में संक्रमित लोगों को लेकर आती रही, तब भी जब देशभर में संपूर्ण लाक डाउन हो चुका था। हाय-तौबा मचने पर इंटरनेशनल फ्लाइट्स रोकी गई है।
कल्पना कीजिए कि अगर सिर्फ अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स और बंदरगाहों को समय रहते पूरी तरह बंद करके हम कोरोना महामारी के खतरों से देश को बिना लाकडाउन किए बचा लेते तो शायद यह 21वीं सदी की सबसे बड़ी उपलब्धि होती। और फिर भी मान लें कि लाक डाउन करने की नौबत आ ही जाती तो क्या इसे चरणबद्ध रूप में नहीं किया जा सकता था? क्या देशवासियों को पहले ही इसके लिए आगाह नहीं किया जा सकता था? अपने घर-परिवार को छोड़कर हजारों किलोमीटर दूर मेहनत मज़दूरी कर रहे लाखों लोगों को उन्हें अपने घर-परिवार लौटने का मौका नहीं दिया जा सकता था? क्या सरकार रेलवे स्टेशनों पर लोगों की पूरी स्क्रीनिंग (स्वास्थ्य जांच) कर उन्हें विशेष ट्रेनें चलाकर गांव नहीं भेज सकती थी? क्या सरकारों को इस अफ़रा-तफ़री का अंदाजा नहीं था? मेरे ख्याल से सरकार के पास तमाम विकल्प और रास्ते भी थे और शायद अंदाजा भी।
 लेकिन लगता है कि मोदी सरकार के पास इस संकट से निपटने की ना तो दूरदृष्टी थी और ना ही कोई रोड मैप। बस जो करना है एक झटके में कर देना है, भले ही उसका परिणाम जो हो। 130 करोड़ जनता और देश को इसकी जो क़ीमत चुकानी पड़े। नोटबंदी की तरह देशबंदी कर दी गई। बिना सोचे-विचारे और समझे। अरे साहब, आपकी अक्ल अगर चरने चली गई थी तो कम से कम पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की नकल ही कर लेते, जहां सिंध को छोड़कर अन्य किसी प्रांत में लाक डाउन नहीं किया गया है। अच्छा पाकिस्तान तो हमारा दुश्मन है, इसलिए उसकी नकल हम कैसे कर सकते हैं। अरे साहब,  पाकिस्तान को छोड़िए हम जापान की तो नकल कर ही सकते थे, जहां अभी तक लाक डाउन नहीं किया गया है। क्या जापान में लोगों के जान की कीमत नहीं है? जापान दुनिया का ऐसा देश है जहां हर मौत के लिए सरकार को जवाब देना पड़ता है। लेकिन जापान ने इस महामारी से निपटने के लिए ना सिर्फ खुद को पूरी तरह तैयार कर रखा है, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए लाक डाउन जैसे बेहद सख्त और आत्मघाती कदम उठाने से खुद को अभी तक बचा रखा है। साथ ही देश के नागरिकों को किसी भी संभावित हालात के लिए तैयार रहने का संकेत देकर उन्हें तैयार रहने का मौका दिया है ना कि भारत की तरह जहां रातों-रात लाक डाउन का फरमान सुना कर 130 करोड़ की आबादी को संभलने तक का मौका नहीं दिया गया। क्या एक लोकतांत्रिक देश में इतना कठोर फैसला इस तरह से लिया जाता है? क्या इतनी विविधताओं से भरे देश में जहां करोड़ों लोग दैनिक मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं, वहां उनके और उनके बच्चों के जीवन को इस तरह लाक डाउन कर दिया जाएगा? देश की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देने वाला और करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर देने वाला फैसला क्या इस तरह लिया जाता है? साहब, सोचिए जरा। आप देश को करोना की महामारी से बचाने के चक्कर में कहीं लाखों लोगों के सामने भूखे पेट भरने की नौबत तो नहीं ला दिए हैं? साहब, माना कि आपको कारपोरेट, शहरी उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग की ज्यादा चिंता है। उन्हें जानमाल की हानी नहीं हो आपकी सरकार को इसकी ज्यादा चिंता है, मगर जब कभी भी आप कोई बड़ा फैसला ले रहे होते हैं मसलन नोटबंदी, देशबंदी तो इस समय महानगरों की सड़कों से देश के गांवों की तरफ सड़कों पर चल रहे लाखों गरीब मजदूर देशवासियों के चेहरे की ओर भी तो एक बार ही सही, देख तो लिया होता। इन गरीब- मजदूर लोगों ने भी तो आपको वोट दिया था। इन्हें गरीब होने की सजा तो नहीं दीजिए। आप लौकडाउन कीजिए। सारी सोसाइटियों के गेट बंद कर दीजिए। अमीर और मध्यम वर्ग के लोग इंटरनेट पर वर्क फ्राम होम करेंगे और जरूरी सामान आनलाईन मंगवा लेंगे।
 मगर जिन लाखों लोगों के पास आज भी कोई मुकम्मल घर नहीं है, जो रोज़ दिहाड़ी पर मज़दूरी करते हैं, खाते हैं और खुले आसमान के नीचे ही सोकर गुजारा करते हैं वो कैसे जीएंगे? और अब तो आप भी देख लिए होंगे साहब यह देश ग़रीबों, मज़दूरों और विस्थापितों का है। करोड़ों लोग रोजी-रोटी और रोजगार के लिए अपना गांव-घर छोड़ हजारों- हजार किलोमीटर दूर दूसरे प्रदेशों में रहते हैं। और अगर आपके "मास्टर स्ट्रोक"टाइप राष्ट्र के नाम संदेश से अजनबी शहर में अचानक करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन जाए और भविष्य पर संकट के बादल मंडरने लगे तो उसके पास अपना गांव लौटने के सिवा कोई और विकल्प है क्या?
कुछ कीजिए साहेब। ऐसे देश नहीं चल सकता है। नहीं तो आपके फरमान को, लाक डाउन को, कर्फ्यू को लाखों गरीब मजदूर ऐसे ही तोड़ देंगे। आप डंडे के दम पर अपने अदूरदर्शी फैसले और नाकामियों को नहीं छिपा सकते। अभी भी वक्त है किसी फैसले को लेने से पहले पूरा होम वर्क कीजिए। फिलहाल जो लोग देशभर में जहां-तहां फंसे हुए हैं उन्हें जांचकर उनके घर तक ट्रेन, प्लेन, बस जैसे हो उन्हें उनके घर तक सुरक्षित पहुंचाइए। खाना और पानी दीजिए।
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