कोई शुभ काम हो और उस पर विवाद न हो, ऐसा नहीं हो सकता. कल प्रतिमा सिन्हा ने अपने “स्वंय सिद्धा” पेज पर मुझसे लाइव बातचीत करते हुए कहा था- “ आपका कोई काम निर्विघ्न संपन्न नहीं होता”
यही हुआ. कल हमारी बातचीत एक घंटे चली. उसके बाद “ स्वंयसिद्घा “ नाम को लेकर विवाद शुरु.
प्रतिमा सिन्हा पर रंजीता जी ने संस्था नाम चुराने का आरोप खुलेआम लगाया. पोस्ट लिखा.
मुझे प्रतिमा और रंजीता दोनों से लगाव है. इसीलिए मैंने कल ही प्रतिमा को बोला कि नाम का मसला जल्दी निपटाओ. विवाद सार्वजनिक न हो. रंजीता जी ने पोस्ट पर अपनी आपत्ति जताते हुए एक दबी हुई चेतावनी दी थी - कॉपी राइट की. अब ये क़ानूनी मामला समझना होगा कि स्वंयसिद्धा नाम किसका है ? असली हक़दार कौन है ? किसने गढा ये शब्द ? पहली बार किसने इस्तेमाल किया? क्या लोगों को याद नहीं - अमृता प्रीतम और कृष्णा सोबती का झगड़ा ? ज़िंदगीनामा नाम को लेकर कोर्ट में लंबे समय तक केस चला. अंत में सोबती जी हार गई केस.
फ़िलहाल स्वंयसिद्धा प्रकरण पर बात करते हैं.
मैं स्वंय सिद्धा पर कुछ जानकारियाँ यहाँ शेयर कर रही हूँ.
सबसे पहले ये नाम मैंने शिवानी जी के उपन्यास पर देखा था. शिवानी जी के प्रशंसकों , पाठकों को ये किताब अब तक याद होगी. कोई नहीं भूल सकता. सच कहूँ तो इसे पढ़ने के बाद ही मुझमें लड़ने और अपनी स्वतंत्र पहचान , अपने दम बनाने की हिम्मत आई. सपने जगे. मैं ही क्या इसे पढ़ने के बाद अनेक लड़कियों के आँखों में स्वप्न जगे होंगे.
बाद में इस नाम से एक ब्लॉग देखा. पता किया तो वो कथाकार साथी अंजू शर्मा का पोपुलर ब्लॉग निकला. 2013 से उनका स्वंयसिद्घा ब्लॉग चर्चित है. मेरी भी कहानी उस पर लगी है. स्वंयसिद्धा नाम रखने के पीछे की प्रेरणा के बारे में कथाकार अंजू शर्मा बताती हैं कि “मैंने बचपन में इसी शीर्षक से एक कहानी पढ़ी थी। कम से कम 3 बार उसके बारे में पोस्ट लगा चुकी कि ये कहानी मुझे कितना haunt करती है। बस उसी की याद में ये नाम रखा था।”
इस बीच मुझे ध्यान आता है , प्रसिद्ध फ़िल्मकार शेखर कपूर ने एक धारावाहिक का निर्माण किया था - स्वंयसिद्धा नाम से. कालखंड चेक किया जा सकता है. नब्बे के दशक में वो धारावाहिक बहुत लोकप्रिय हुआ था. एक और बात याद आ रही है. शायद दिव्या शुक्ला भी स्वंयसिद्धा नाम से संस्था चलाती हैं. बहुत सालों से. वे ज़्यादा प्रचार -प्रसार नहीं करती हैं. मगर संस्था है उनकी.
इधर कविकुंभ फ़ेम , कवि रंजीता जी ने स्वंयसिद्धा सम्मान की घोषणा की थी. हमने देखा था.
स्वंयसिद्धा नाम इतना पावरफुल है कि एक ताकतवर, अपने दम मुक़ाम हासिल कर चुकी स्त्री का चेहरा उभरता है. एक ऐसी स्त्री जो अपने प्रतिकूल हालात से जूझती हुई, मुठभेड़ करती हुई अंतत: अपना मुक़ाम पा लेती है. पहचान क़ायम कर लेती है. हम सब स्त्रियाँ यही तो कर रहीं. हम सब स्वंयसिद्धा हैं. स्वंयसिद्घा स्त्री अस्मिता का सबसे पावरफुल शब्द है.
इसे कॉपीराइट एक्ट में कैसे बांध सकते हैं? ये कैसे चोरी हो सकती है? ये किसी एक स्त्री के लिए नहीं, बहुसंख्यक स्त्री के लिए उपयुक्त होता जो अपने दम पर अपनी पहचान बनाती हैं. तो क्या हम इस शब्द को सीमित कर सकते हैं? दूसरों को लिखने, इस्तेमाल करने से रोक सकते हैं?
कल को मैं अपनी आत्मकथा इस नाम से लिखूँगी तो क्या मुझे रोका जा सकता है ? मुझ पर चोरी का आरोप लगाया जा सकता है? मुझ पर केस किया जा सकता है?
तब तो सबसे पहले शिवानी जी के परिवार को इस पर आपत्ति करनी चाहिए. शेखर कपूर और प्रिया तेंदुलकर को करना चाहिए.
अंजू शर्मा को करना चाहिए. अब प्रतिमा ने अपने पेज का सुंदर नाम रख लिया है-स्वंय सृजा !!
मेरी चिंता ये है कि क्या हम कभी स्वंयसिद्धा को अपना न सकेंगे? उसे पराया कर दें , इस डर से कि कोई हमें कोर्ट में घसीट लेगा ?
या स्वंयसिद्घा किसी की निजी संपत्ति हो चुकी है.