सरोज खान
चली गईं मेनकाओं की मास्टरनी
बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान नहीं रहीं। उन्हें कुछ दिन पहले मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 72 साल की सरोज खान के पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक कुछ दिन पहले उन्होंने सांस लेने में हो रही परेशानी के बारे में बताया, जिसके बाद परिजन उन्हें अस्पताल लेकर गए। सभी लोग टेंशन में थे कि उन्हें कोविड-19 तो नहीं है? लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। वह खुद को बेहतर महसूस कर रही थीं और उम्मीद की जा रही थी कि उन्हें एक या दो दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
चार दशक से अधिक के फिल्मी सफर में सरोज खान ने करीब दो हजार से अधिक गीतों को कोरियोग्राफ किया और हमारी फिल्मी मेनकाओं की मास्टरनी के रूप में अपनी अच्छी धाक जमाई। वे बॉलीवुड में ऐसा नाम थीं, जिन्हें हर कोई जानता और उनके काम की सराहना करता है। उन्होंने वैजयंतीमाला, साधना, कुमकुम, हेलन, शर्मिला टैगोर, माला सिन्हा, वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, ज़ीनत अमान, रेखा, परवीन बॉबी, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल, करिश्मा कपूर, रवीना टंडन, ऎश्वर्या राय, करीना कपूर, आलिया भट्ट, कंगना रनौत, सनी लियोनी आदि को अपने इशारों पर नचाया। रेखा तो कई कार्यक्रमों में इस बात को कह चुकी हैं, अगर सरोज जी न साथ होतीं, तो मैं उमरावजान न होती। फ़िल्म में जो डांस है, वो सरोज जी की देन है। इसी तरह श्रीदेवी को उन्होंने मिस्टर इंडिया में नचाया। उस फ़िल्म के डांस से जहाँ श्रीदेवी लोगों की नज़र में हवा हवाई हो गईं, वहीं सरोज खान ने भी इस फ़िल्म के बाद ऊंची उड़ान भरी। उन्होंने श्रीदेवी के लिए नगीना, चांदनी, निगाहें, चालबाज़ आदि फिल्मों के लिए काम किया और स्टार कोरियोग्राफर हो गईं। उनके करियर को औऱ ऊंचाई मिली माधुरी दीक्षित के साथ। फ़िल्म तेज़ाब के गीत एक दो तीन... गीत और उस पर किए माधुरी के डांस ने फ़िल्म को सुपर डुपर हिट करा दिया। उसके बाद खलनायक का चोली के पीछे क्या है..., बेटा का धक धक करने लगा... को लोग आज भी याद करते हैं। इनसे अलग, थानेदार का तम्मा तम्मा लोगे..., दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे का मेहंदी लगाके रखना..., देवदास का डोला रे डोला..., जब वी मेट का ये इश्क हाये..., ताल का ताल से ताल मिला..., गुरु का बरसो रे मेघा मेघा... आदि सदाबहार गानों की कोरियोग्राफी उन्होंने की, जिन्हें लोगों ने खूब पसन्द किया। कुल 308 फिल्मों में अपना योगदान दे चुकीं सरोज खान को तीन बार बेस्ट कोरियोग्राफी ( देवदास, श्रृंगारम, जब वी मेट) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और आठ बार ( तेज़ाब, चालबाज़, सैलाब, बेटा, खलनायक, हम दिल दे चुके सनम, देवदास और गुरु में कोरियोग्राफी के लिए ) फिल्मफेयर अवार्ड। लगान फिल्म के लिए सरोज खान को अमेरिकन आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिला था।
बॉलिवुड में शायद ही ऐसा कोई बड़ा अभिनेता या अभिनेत्री हो जिसने सरोज खान के साथ काम नहीं किया हो। उन्होंने कोरियोग्राफी के अलावा रवि किशन और नगमा अभिनीत एक भोजपुरी फिल्म दिल दीवाना तोहार हो गईल का भी निर्माण किया, जो ठीकठाक चली थी।
भारत की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज ख़ान हर गीत में नया स्टेप बना पाना ईश्वर का आशीर्वाद मानती थीं।गीतों को सुनकर और आर्टिस्ट को ध्यान में रखकर वह हर नया डांस बनाती रहीं। उनका मानना था, अगर माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी या ऐश्वर्या राय जैसी कुशल अदाकार हों, तो थोड़े जटिल डांस स्टेप्स भी तैयार हो जाते हैं, लेकिन अगर आलिया भट्ट हैं, तो मैं उनकी क्षमता के अनुसार स्टेप्स तैयार करती थी। फिल्म देवदास के गीत डोला रे डोला गाने का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था, इस गीत को तैयार करने में मुझे काफी वक्त लगा, क्योंकि गीत में माधुरी और ऐश्वर्या जैसी अभिनेत्रियां साथ थीं और चैलेंज यह था कि दोनों की स्टेप्स किसी से कम नहीं होना चाहिए। नए कलाकारों के लिए उन्होंने यही कहा था, नाचते रहो और खुश रहो। डांस एक एक्सरसाइज भी है। डांस में इंसान हर गम भूल जाता है। असफल होने पर भी अपना काम लगातार जारी रखो, एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी, क्योंकि सूरज जब उगता है तो उसका डूबना और फिर से उगना भी तय है। ऐसी ही लाइफ और सक्सेस की फिलॉसफी है।
सरोज खान बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। उन्होंने 12 फिल्मों वीरू दादा, खिलाड़ी, हम हैं बेमिसाल, नज़र के सामने, छोटे सरकार, दिल तेरा दीवाना, जज मुजरिम, दावा, होते होते प्यार हो गया, भाई भाई, बेनाम और खंजर में बतौर राइटर भी काम किया। किसी की कहानी, किसी की पटकथा, किसी में संवाद लिखे। कुछ का आइडिया भी दिया।
वे पर्दे पर शो डांस यूएसए डांस, झलक दिखला जा, उस्तादों के उस्ताद, नचले वे विद सरोज खान, बूगी-वूगी, नच बलिए और फिल्मों रंगीला, इश्क समंदर, एबीसीडी, उत्थान, प्रेम दीवाने, खेल मोहब्बत का आदि में मेहमान भूमिकाओं में दिखीं भी। दो रास्ते, बहारों की मंज़िल, मेरा साया, साजन, फूल और पत्थर, जालिम तेरा जवाब नहीं, कितना बदल गया इंसान, तीसरी मंजिल, माया बाजार, डांसर, परछाइयां आदि में वे बालकलाकार के रूप में दिखीं। ऐसे कुल 19 काम किये, जिनमें से कुछ में मेहमान भूमिका और कुछ में जज और कुछ में बालकलाकार।
कुछ समय पहले सरोज खान का कोरियोग्राफर गणेश आचार्य के साथ विवाद हो गया था। विवाद की वजह थी एक दूसरे पर आरोप लगाना। उन्होंने आचार्य पर आरोप लगाया था कि वह जूनियर डांसर्स का शोषण और सीडीए में मिले पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस पर आचार्य ने कहा कि ये मेरी छवि खराब करने की साजिश है। हकीकत तो ये है कि सरोज खान और उनके सहयोगी इंडस्ट्री में भ्रष्टाचार कर रहे हैं। दरअसल एक 33 वर्षीय असिस्टेंट कोरियोग्राफर ने इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन कोरियोग्राफर्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी गणेश आचार्य के खिलाफ महाराष्ट्र महिला आयोग और मुंबई के अंबोली पुलिस स्टेशन में अश्लील वीडियो देखने के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी।
इधर सरोज खान के एक बयान रेप के बाद रोटी पर भी विवाद हुआ, लेकिन उन्होंने इस पर तुरंत माफी मांग ली। हालांकि इस बारे में उनकी सोच शायद यह थी कि इंडस्ट्री में कोई आपके साथ यदि जबर्दस्ती करता है, तो बदले में रोटी भी देता है। इस बात को उनके खुद के संदर्भ में देखा जा सकता है, लेकिन यह सब के साथ लागू हो, यह जरूरी नहीं, तो उन्होंने माफी मांग ली।
दरअसल, सरोज खान ने कास्टिंग काउच को लेकर मीडिया में बयान दिया था कि ये सब तो जमाने से होता चला आ रहा है, यहां तो हर कोई यही सोचता है कि कैसे उसे कोई लड़की अकेले में मिल जाए, हर कोई बस लड़की पर हाथ साफ करना चाहता है, लेकिन हमारी इंडस्ट्री में लड़की को केवल रेप करके छोड़ा नहीं जाता है, बल्कि लोग उसे रोजी-रोटी भी देते हैं। इसलिए सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री के पीछे नहीं पड़ना चाहिए, वैसे भी ये सारी चीजें लड़की के ऊपर है कि वो क्या करना चाहती है। जो ऐसे लोगों के हाथ में नहीं आना चाहते, तो मत आओ, अगर तुम्हारे पास कला है तो अपने आपको इंडस्ट्री में बेचने की क्या जरूरत है? सरोज खान के इस बयान पर बवाल मच गया और वे लोगों के निशाने पर आ गई थीं।
खैर, सरोज खान का काम 2014 में आई गुलाब गैंग और 2015 में फ़िल्म तनु वेड्स मनु रिटर्न्स में दिखा था। एक वक्त ऐसा था जब बॉलीवुड की इस मशहूर कोरियोग्राफर के पास काम की कमी नहीं थी। लोग इन्जार करते थे उनका। फिल्म में उनके डांस स्टेप पर बड़े-बड़े स्टार्स थिरकते थे, लेकिन एक समय वह भी आया, जब उनके पास काम नहीं था। उन्हें फिल्म इंडस्ट्री से शिकायत थी कि उन्हें अब कोई काम नहीं दे रहा है। उनके ऐसे खराब दिनो में करण जौहर, सलमान खान और माधुरी दीक्षित ने कुछ पहल की। सरोज खान ने कहा था, एक दिन मैं संयोग से सलमान खान से मिल गयी, तो उन्होंने पूछ लिया कि आप आजकल क्या रही हैं? मैंने उन्हें ईमानदारी से बता दिया कि मेरे पास इन दिनों कोई काम नहीं है। फिलहाल नई हीरोइनों को इंडियन क्लासिकल डांस सिखा रही हूं। तब सलमान बोले, अब आप हमारे साथ काम करेंगी। मैं जानती थी कि सलमान जो कहते हैं, करते हैं। इसलिए उम्मीद है, वह अपना वादा पूरा करेंगे, लेकिन इंतज़ार कर रही हूं। हां, उसके बाद करण ने मुझे फिल्म कलंक में माधुरी दीक्षित और आलिया भट्ट पर फिल्माए गाने घर मोरे परदेसिया... की कोरियोग्राफी करने का अवसर मिला। कंगना रनौत की फिल्म मणिकर्णिका में भी कोरियॉग्रफी की।
इस बारे में माधुरी दीक्षित का कहना था, अगर सरोज जी को फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं दिया जा रहा है, तो यह इंडस्ट्री का नुकसान है। उनके साथ मैंने करियर की शुरुआत की थी। वह बहुत ही टैलेंटेड हैं। वह ऐसी हैं, जो पूरे गाने को अपने काम से खूबसूरत बना देती हैं।
सरोज जी के लिए काम नहीं मिलना महज एक फेज था। उनका कहना था, मैंने बहुत से गाने की कोरियोग्राफी की, बहुत से डांस को एडिटिंग में काट दिया गया। इसका कोई गिला नहीं। मुझे कटरीना कैफ की वजह से फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान से हटा दिया गया कि वह मुश्किल स्टेप्स नहीं कर पाएंगी। लो यह भी कोई बात हुई? यह मेरा पेशा है। लोगों का प्यार मिला और मुझे कोरियोग्राफर के रूप में सबसे अधिक फिल्मफेयर और नेशनल अवार्ड मिले। हां, मुझे इसका दुख जरूर है कि इतना करने के बाद भी भारत सरकार ने आज तक मुझे पद्मश्री क्यों नहीं दिया, इस बारे में विचार तो होना ही चाहिए। शायद सरकार मुझे पद्मश्री के लायक नहीं समझती, लेकिन सरकार से इस बारे में सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए। मेरी जर्नी कहां से शुरू हुई और कहां तक गयी, यह प्रेरक हो सकती है लोगों के लिए।
सरोज खान का जन्म 22 नवंबर 1948 को मुम्बई में हुआ था। उनका वास्तविक नाम निर्मला है। उनके माता-पिता किशनचंद सिंह और नोनी सिंह पाकिस्तान से विभाजन के समय दिल्ली होते हुए मुम्बई आ गए। तब पिता को अपना स्थापित व्यवसाय और संपत्ति छोड़कर भारत आना पड़ा था। मुंबई में आय का कोई साधन ना होने के कारण सरोज खान का बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता। इनके पिता ने तीन साल की छोटी आयु में ही सरोज खान को फिल्मों में काम करने के लिए ले जाते थे। तब उन्होंने बाल कलाकार सरोजा के रूप में काम किया। कुछ और फिल्में कीं। किसी तरह परिवार का गुज़ारा होता रहा।
जब सरोज की उम्र 11 साल हुई, तब किसी ने राय दी कि बिटिया को डांस सिखाओ, फिर काम मिलेगा, क्योंकि तब सरोज न तो एकदम बच्ची थी, न युवा। ऐसे में उन्हें साथ मिला उस समय के नामचीन फिल्मी कोरियोग्राफर बी सोहनलाल का। वह उनके यहां डांस की ट्रेनिंग लेने लगीं। निर्मला को सोहनलाल ने कथक, मणिपुरी, कथकली, भरटनाट्यम आदि का प्रशिक्षण दिया। सोहनलाल को जो भी काम मिलता, निर्मला भी उनके साथ ग्रुप में होती थीं।
यह 1961 कि बात है। सरोज ने एक दिन 13 साल की उम्र में इस्लाम कबूल कर 43 साल के डांस मास्टर बी सोहनलाल से शादी कर ली। सरोज की उम्र से लगभग 30 साल बड़े सोहनलाल की यह दूसरी शादी थी। वे पहले ही चार बच्चों के पिता थे। एक इंटरव्यू में सरोज ने बताया था, 13 साल की उम्र में मैं स्कूल जाती और डांस सीखने के साथ ही सोहनलाल जी के साथ बिजी होती थी। तब शादी के मायने नहीं जानती थी। एक दिन सोहनलाल जी ने मेरे गले में काला धागा बांध दिया, ऐसा करने पर मुझे कहा गया कि मेरी शादी हो गई। घर में कोहराम मच गया। स्कूल जाने की उम्र में सरोज ने शादी कर ली थी। उस वक्त वे यह भी नहीं जानती थीं कि सोहनलाल पहले से शादीशुदा और 4 बच्चों के पिता हैं। सरोज को उनकी पहली पत्नी के बारे में जानकारी 1963 में हुई, जब उनके बेटे राजू खान का जन्म हुआ। 1965 में उनकी दूसरे बच्चे का जन्म हुआ, जो 8 महीने बाद ही गुजर गया। जब सोहनलाल ने सरोज के दोनों बच्चों को अपना नाम देने से इनकार किया, तो इनकी राहें अलग हो गईं, लेकिन तब सरोज के गर्भ में तीसरा बच्चा था। कुछ समय बाद सोहनलाल को हार्ट अटैक आया, तब सरोज खान उनके पास गईं। उसके कुछ समय बाद सरोज ने बेटी कुकु को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद सोहनलाल सरोज की जिंदगी से कहीं गायब हो गए और उन्होंने दोनों बच्चों की परवरिश अकेले की। बाद में पता चला कि सोहनलाल चेन्नई चले गए, अपने परिवार के पास।
ऐसे में सरोज खान के पास कोई चारा न था सिवाय मेहनत करने के। उन्होंने किया और गाड़ी चल निकली। फिर उनकी ज़िंदगी में आये रौशन खान। दोनों ने विवाह किया। इन दोनों की एक बेटी सुकैना खान हुईं, जो दुबई में डांस इंस्टिट्यूट चलाती है।
सरोज खान ने बहुत सी फिल्मों में असिस्टेंट कोरियोग्राफर के तौर पर काम किया। बतौर कोरियोग्राफर उन्हें पहला अवसर दिया 1974 में अभिनेत्री साधना ने अपनी फिल्म गीता मेरा नाम से। कुछ और फिल्में करने के बाद उन्हें अच्छी चर्चा मिली गुलज़ार की खूबसूरत फ़िल्म मौसम (1975 ) और सुभाष घई निर्देशित सफल फिल्म हीरो से, जो 1983 में आयी थी। उसके बाद मिस्टर इंडिया ने उन्हें स्थापित कर दिया।
सरोज खान ने ज़िन्दगी के तमाम रंगों को जिया था। उन्होंने कहा भी है, मेरी ज़िंदगी एक सुपर हिट फिल्म है, जिसमें संघर्ष जीतता है और झूठ हारता है। सच कहा था उन्होंने, आज हम हारे से उनके बारे में सोच रहे हैं, वे दुनिया को अपने ठुमके से जीत कर चली गईं क्षतिज के उस पार। अब वहां वे मेनकाओं को अपनी लोच से लुभाएंगी, उन्हें परफेक्ट करेंगी, ताकि इंद्र की सभा और रंगीन हो जाये। हमारी उन तमाम सफल फिल्मों की तरह...
-रतन