विसंगतियों को नंगा कर लैंप पोस्ट के नीचे ला पटकने को व्यंग्य कहते ह
कुछ लोग कहते हैं व्यंग्य अच्छे लोगों की विधा नहीं है, महिलाओं के लिये तो बिलकुल भी नहीं, वो यह नहीं जानते कि व्यंग्य है क्या। व्यंग्य कोई गाली नहीं है, ना ही कीचड़ है जो एक दूसरे के मुंह पर मल दिया जाए। व्यंग्य शब्दों की ऎसी दोधारी तलवार है जिसका कोई भी वार खाली नहीं जाता, यदि आपने प्रवृति पर न करके व्यक्ति पर व्यंग्य कर डाला तो यह तलवार सीधे आपकी गरदन पर पड़ सकती है ,व्यंग्य किसी दूसरे को तकलीफ़ नहीं देता न ही अपमानित करता है, व्यंग्य सिर्फ़ गलतियों का अहसास करवाता है। यूँ कह सकते हैं कि व्यंग्य फ़ेविकोल का ऎसा जोड़ है जो टूटे रिश्तों को जोड़ता है, व्यंग्य अँधेरी राहों की वह रोशनी है जो राह भटके लोगों को सही राह दिखाती है।
सुनीता शानू
व्यग्य में नयापन लाने के लिए विषय का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होता है इसीलिए व्यक्तिगत व्यंग्य ज्यादा असरदार हो जाते और उनकी भाषा विषयानुरूप सुदृढ़। पहुँच और अनुभूतियों से दूर के व्यंग्य बहुत औपचारिक और कृत्रिमता से भरे लगते हैं। सहज मनोभावों की प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न व्यंग्य रचना ज्यादा प्रभावित करती है और रचनाकार की एक छवि और प्रतिवद्धता दर्शाती है जो महत्वपूर्ण है।"
भुवनेश्वर उपाध्याय