प्रतिदिन / कम लोगों को याद रहता है कि उत्तर प्रदेश और
मध्य प्रदेश दोनों के विभाजन के बाद राजस्थान आकार में देश का सबसे बड़ा राज्य हो गया
है। गरिमा और अतीत में तो यह सबसे बड़ा था ही। जिस राजस्थान से जूझने वाली कुलीन राजपूतों
और पूरी दुनिया में साम्राज्य बना लेने वाले मारवाड़ियों का रिश्ता हैं, उसे वैसे भी कोई किनारे नहीं कर
सकता।
मुंबई से ले कर अमेरिका तक कॉरपोरेट हेड क्वार्टरों
की जादुई चमक देखें और फिर याद करें कि यह चमक सूरतगढ़, सूजानगढ़ और राजस्थान की बहुत सारी
भव्य हवेलियों से निकले उन लोगों ने पैदा की है जिन्हें जीवन में सिर्फ जीतना आता है
तो राजस्थान का एक और अर्थ स्पष्ट होगा। थार रेगिस्तान राजस्थान से शुरू हो कर गुजरात
तक तो जाता ही है, पाकिस्तान की भी यह सीमा पार कर जाता है।
पूरे देश के दस प्रतिशत से ज्यादा इलाके में बसे इस रेगिस्तानी प्रदेश में बहुत सारी
झीलें हैं और देश की पहली बड़ी नहर भी यही बनाई गई थीं।
घग्गर नदी जिस कालीबंगा इलाके में अचानक खत्म
हो जाती हैं वह दुनिया के इतिहास में सबसे पुरानी सभ्यताओं वाला इलाका है। कुछ लोग
घग्गर को मूल सरस्वती नदी कहते हैं मगर सूरतगढ़ और हनुमानगढ़ के बीच पीलीबंगां जैसी में
यह नदी अचानक जमीन में समा जाती है और पुरातत्व शात्रियों के 34 साल के शोध के बाद पता चला है कि
दुनिया में सबसे पहले प्रमाणिक रूप से खेती करने के लिए हल का इस्तेमाल यहीं किया गया
था और सिंधु घाटी सभ्यता में कालीबंगा एक बड़ी राजधानी हुआ करती थी।
हड़प्पा- मोहनजोदरो के नाम बहुत प्रचारित हो गए
हैं इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता में राजस्थान एक तरह से लुप्त माना जाता है। इटली के वैज्ञानिक
लुइगी पीओ- टैसी टोरी सत्रहवीं सदी में यहां आए थे और उन्हें यहां के खंडहर अनोखे लगे
थे। तत्कालीन पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमुख जॉन मार्शल के साथ मिल कर यहां भी खुदाई
की गई और पता चला कि ये खंडहर एक प्रगैेतिहासिक सभ्यता के प्रतीक हैं और मौर्यकालीन
सभ्यता से भी पहले के हैं। इस खोज को मान्यता मिलने के पांच साल पहले ही इस वैज्ञानिक
का निधन हो गया।
राजस्थान पर्यटन के लिए ही जाना जाता है और माउंट
आबू की हरियाली से ले कर उदयपुर की झीलों और जैसलमेर के रेगिस्तानों को जोड़ कर एक पूरा
विश्व यहां बसता है। बहुत बाद में खुदाईयां शुरू हुई तो पता चला कि यह अपने जमाने का
एक महानगर था। ये कहानियां कांधार के रेगिस्तान तक ने दुनिया भर के पर्यटकाें को ले
जाती है लेकिन कारोबार से अपना और लाखों लोगों का भविष्य बना देने वाले राजस्थान में
किसी को नहीं सूझी कि पर्यटन को इतिहास ही नहीं बल्कि पुरातत्व से भी जोड़ा जाए।
पुरानी हवेलियां और कई ऐतिहासिक किले अब विरासत
होटल के तौर पर बदल रहे हैं और इन्हें राजस्थान का बहुत बड़ा आकर्षण माना जाता है। लेकिन
यह शायद इतिहास से भी एक तरह का खिलवाड़ है। समय की अविराम धारा में हम अभिजात व्यापार
के द्वीप शामिल करते जा रहे हैं और ऐसे में यह धारा बहुत लंबी बहने की उम्मीद नहीं
की जा सकती। यह तथ्य किसे रोमांचित नहीं करेगा कि ईसा से भी 2600 साल पहले पृथ्वी का सबसे बड़ा
भूकंप आया था जिसमें सिंधु घाटी सभ्यता के सारे प्रमाण मिट गए थे।
राजस्थान को ऊंटों, किलों और बहुत से बहुत कालबेलिया
नृत्य संगीत की शिनाख्त से जोड़ देने और यह मान लेने की यही प्रदेश की और इतने समृद्व
इलाके की शिनाख्त है, हम बड़ा अपराध कर रहे हैं। यही अपराध
राजस्थान की सीमा से चंबल पार कर के बसी उस घाटी में किया जा रहा है जहां आदि मानव
के रहने के प्रमाण मिले हैं और संयोग से यह इलाका मध्य प्रदेश की चंबल घाटी में आता
है।
रेल की पटरियों पर चलने वाले महल यानी पैलेस
ऑन व्हील्स राजस्थान की असलियत नहीं है। जैसलमेर में टेंट लगा कर देर रात तक संगीत
संध्याएं करना भी राजस्थान का असली चेहरा नहीं है। राजस्थान जयपुर, उदयपुर, जोधपुर और बीकानेर के होटलों में नहीं बसता। अब तो उपग्रह भी बता चुके हैं
कि यहां के पाताल में भी पानी हैं और असमान से गिरने वाली बूंदों को संचित कर के राजस्थान
को एक हद तक काफी हरा भरा किया जा सकता है। लेकिन पर्यटन को अपनी मूल पूंजी मानते रहने
और पर्यटन के नाम पर बहुत सारी दंत कथाएं गढ़ते रहने से हमें फुरसत तो बात बने।
असम,
अरुणाचल और केरल तक राजस्थान के मारवाड़ से निकले लोगाें ने झंडे गाढ़े
हैं। सफलता के शिखरों तक पहुंचे हैं। वे अपने राजस्थान को भूल नहीं गए हैं। अब तो खैर
इंटरनेट का जमाना आ गया है वरना लोग डाक से चार दिन पुराना अखबार भी जयपुर से मंगा
कर पढ़ते थे। कोलकाता, बंगलुरु, मुंबई
और गुवाहाटी से निकलने वाले कई अखबार राजस्थानी मूल के लोग ही चलाते हैं और वहीं उसका
मूल पाठक वर्ग है। जिन राजस्थानियों को अपनी जमीन से इतना प्रेम हैं, जो अपने पूर्वजों को श्रद्वांजलि देने लगभग हर साल अपने देस की एक यात्रा
तो कर ही लेते हैं, वे राजस्थान को, अपनी जमीन को एक सुनियोजित राजकीय उपेक्षा का पात्र बनने देंगे यह बात मन
में बैठती नहीं है।
पर्यटन को ले कर ही राजस्थान में सबसे ज्यादा
उत्साह नजर आता है। पर्यटन का मूल और रीतियों और नीतियों के सूत्र दिल्ली में खुद पुरातत्व
की वस्तु बन गए पर्यटन मंत्रालय के पास हैं। यह मंत्रालय पिछले दस वर्षों का ही हिसाब
लगाया जाए तो राजस्थान मूल के लोगों को पर्यटन के क्षेत्र में आने के बहुत अवसर उपलब्ध
नहीं होंगे। संपत्तियां उनकी और हवेलियां उनकी मगर पूंजीं कहीं से नहीं मिलती इसलिए
कोलकाता और मुंबई से भी आ कर और अब तो मल्टीनेशनल कंपनियां भी इन हवेलियों का कारोबार
करने लगी है। इतिहास को सीमित कर के एक होटल में बदल दिया गया है।
पधारो म्हारे देस का सुरीला संगीत अब तक जितना
व्यवसायिक बना उतना बना रहा मगर सिर्फ इसी संगीत पर अगर राजस्थान जैसे गौरवशाली प्रदेश
की शिनाख्त हमें रखनी हैं तो हमारे समाज से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और कोई नहीं होगा।
आखिर हर धरती का अपना इतिहास होता है और इस इतिहास को खंडित और नष्ट करने का अपराध
राजस्थान के मामले में हो रहा है और जो लोग इतिहास को छेड़ते हैं, इतिहास उन्हें क्षमा नहीं करता।