आलोक तोमर
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में आम तौर
पर साफ सुथरे माने जाने वाले मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पर जो इल्जाम लगा है वह
अगर सच है तो उनका बचना आसान नहीं है। इस विवाद में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र
मोदी भी शामिल है क्योंकि झगड़ा एक विवादास्पद उद्योगपति को अदालत के आदेश के खिलाफ
जा कर हिमाचल में रईस बनाने का है और यह उद्योगपति नरेंद्र मोदी का खास दोस्त है।
उद्योगपति का नाम है गौतम अडानी जो
अपने अक्सर विवादों में फंसने वाले उद्योग समूह अडानी ग्रुप के लिए चर्चित रहते
हैं। अडानी ने नीदरलैंड की कंपनी ब्राकेल से मिल कर हिमाचल में दो बड़े बिजली
संयंत्र बनाने का ठेका बगैर मेहनत के हासिल कर लिया। झांगी थोपान और थोपान पोवारी
नामक ये दोनो संयंत्र बन जाने के बाद 480 मेगावाट प्रति संयंत्र बिजली पैदा करेगा।
हिमाचल प्रदेश के सतर्कता विभाग ने ब्राकेल- अडानी के साझा प्रस्ताव को मंजूरी
देने में काफी आपत्तियां दर्ज की थी और यहां तक कहा कि ब्राकेल दरअसल अडानी समूह
की ही कागजी कंपनी है।
आयकर विभाग ने भी जब पड़ताल की तो पता
चला कि ब्राकेल नाम की कंपनी को कभी भी बिजली उत्पादन का अनुभव नहीं है। दोनों
कंपनियां मिला कर भी छह हजार करोड़ रुपए की ये दोनों परियोजनाए पूरी करने की हालत
में अपने खातों के हिसाब से नहीं है और किसी बड़े बैंक कर्ज के लिए उन्होंने आवेदन
नहीं किया हुआ है।
हिमाचल के ही बिजली सचिव अजय मित्तल
की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि ये कंपनियां सिर्फ कागज पर है और ब्राकेल के नाम
पर अनुबंध देना निपट गैर कानूनी होगा। प्रेम कुमार धूमल शायद मोदी के एहसानों से
इतने दबे हुए थे कि उन्होंने अपनी मुख्य सचिव आशा स्वरूप से फाइल मंगवाई और उस पर
लिखवाया कि अडानी और उनकी कागजी कंपनी को बिजली उत्पादन के ठेके देने में कोई
बुराई नहीं हैं।
हिमाचल के विकास के लिए चिंतित कुछ
लोग उच्च न्यायालय में पहुंच गए और उच्च न्यायालय ने सारे दस्तावेज पढ़ने के बाद
आवंटन रद्द कर दिया। फैसले में यह भी कहा गया कि अडानी ने राज्य सरकार के सभी
विभागों से झूठ बोला है और फर्जी दस्तावेज दिए हैं। फिर भी अडानी के खिलाफ कोई
कार्रवाई नहीं हुई। यह धूमल के पिछले कार्यकाल का किस्सा है। पांच साल इसी चक्कर
में गुजर गए और राज्य के उर्जा निदेशक और विधि सचिव ने कहा कि इस देरी की वजह से
राज्य सरकार को 931 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
अक्टूबर 2005 में जब हिमाचल प्रदेश
में इन दोनों के अलावा और कई बिजली परियोजनाओं के लिए टेडर निकाले थे तो एकदम
अनजान कंपनी ब्राकेल ने रिलायंस को भी पीछे छोड़ दिया था। उन्हें कुल चार संयंत्रों
के लिए अनुमति मिली थी और नियम के अनुसार लागत का पचास प्रतिशत उन्हें फौरन जमा
करवाना था। ब्राकेल और डीएससी हिमाल नाम की दो कंपनियों ने कारण बताओ नोटिस मिलने
के बाद भी पैसा जमा नहीं किया। जुलाई 2007 में डीएससी हिमाल का अनुबंध रद्द कर
दिया गया मगर अडानी को कुछ और समय दिया गया।
इसके बावजूद ब्राकेल-अडानी को नोटिस
मिलते रहे और उसने पैसा जमा नहीं किया। सरकार का हाथ सिर पर था सो उनका प्रोजेक्ट
रद्द नहीं किया गया। इस दौरान राज्य सतर्कता विभाग, आयकर विभाग और बिजली विभाग
तीनों ने जो रिपोर्ट पेश की उनमें बताया गया कि टेंडर के कागजों में भी हेरा फेरी
की गई थी और यह लिख दिया गया था कि कंपनी को अपनी आर्थिक क्षमता के प्रमाण देने की
कोई जरूरत नहीं है। कहा गया था कि स्टैंडर्ड बैंक भी इस सौदे में शामिल है जबकि
स्टैंडर्ड बैंक की ओर से सहमति का कोई दस्तावेज नहीं लगा था।
सब कुछ फर्जी था। आखिरकार ब्राकेल ने
173 करोड़ रुपए अडानी से ले कर जमा किए। अडानी के खिलाफ कस्टम आयकर एक्साइट राजस्व
और सीबीआई में ढाई सौ मामले दर्ज है और इसमें कभी भी इस परियोजना का हिस्सेदार
बनने से सहमति का दस्तावेज नहीं दिया था। आखिरकार अदालत को बीच में फिर पड़ना पड़ा
और उच्च न्यायालय के आदेश पर ही यह फर्जी सौदा खारिज कर दिया गया। अदालत ने यह भी
आदेश दिया है कि इन दोनों कंपनियाें के 280 करोड़ रुपए जब्त कर के राज्य सरकार को
हुआ घाटा पूरा करने की कोशिश की जाए।
अडानी और ब्राकेल अब सर्वोच्च
न्यायालय गए हैं और सबसे चौकाने वाली बात यह है कि धूमल सरकार अडानी समूह का अब भी
खुल कर साथ दे रही है। हिमाचल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दे कर
कहा है कि सरकार ने ब्राकेल को अनुबंध देने में कोई गलती नहीं की और सरकार तो
अडानी की भाषा ही इस कदर बोल रही है कि शपथ पत्र में यह भी कहा गया है कि ब्राकेल
और अडानी के बीच पैसा लेन देन गैर कानूनी नही था क्योंकि किसी को भी किसी से कर्ज
लेने का हक है।