शहीद भगत सिंह को आज सारा देश उनके जन्म दिवस पर याद कर रहा है। वे देश के सबसे आदरणीय आइकन में से एक माने जाते हैं। आज उनके साथियों जैसे सुखदेव, राज गुरु और बी.के.दत्त का भी जिक्र लाजिमी तौर पर हो रहा है। लेकिन,एक उस महिला को लगभग देश भूल सा गया जो भगत सिंह की परम सहयोगी थीं।
राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर में एक सड़क का नाम दुर्गा भाभी मार्ग है। हो सकता है कि नौजवान पीढ़ी को दुर्गाभाभी के संबंध में कम या कतई जानकारी न हो। दुर्गा भाभी, जिनका पूरा नाम दुर्गा देवी वोहरा था, ने एक बार भगत सिंह को उनकी पत्नी बनकर उन्हें पुलिस से बचाया था। वो मशहूर हुईं दुर्गा भाभी के रूप में।
इसलिए वह बनीं भगत सिंह की पत्नी
कैसे और क्यों बनना पड़ा था दुर्गा भाभी को भगत सिंह की पत्नी?भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर, 1927 को लाहौर में गोरे पुलिस अफसर जे.पी. सांडर्स की हत्या की। उसके बाद वे मौका-ए-वारदात से फरार हो गए। पंजाब पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए दबिश मारने लगी। सारे लाहौर को घेर लिया गया। चप्पे-चप्पे पर पुलिस। तब भगत सिंह के साथियों ने तय किया कि दुर्गा भाभी को भगत सिंह की पत्नी बनाया जाए।
दुर्गा भाभी ने इस मिशन को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाई। दुर्गा भाभी तय जगह पर पहुंची। वहां पर भगत सिंह थे। तब उनकी गोद में उनका तीन साल का पुत्र साची भी था। तब भगत सिंह एंग्लो इंडियन लूक में दुर्गा भाभी के साथ लाहौर से रेल निकले थे। वे पुलिस की पैनी नजरों से बचने के लिए विवाहित इंसान बनने की कोशिश में सफल रहे। दुर्गा भाभी इस दौरान उनकी पत्नी बनने का रोल कर रही थीं। उनके साथ राज गुरु भी थे। कुछेक जगहों पर पुलिस ने उन्हें रोका भी। लेकिन, फिऱ जाने दिया। वे लाहौर रेलवे स्टेशन से निकल गए।दुर्गा भाभी असली जिंदगी में पत्नी थी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपबलिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य भगवती चरण वोहरा की। इसी संगठन के सदस्य भगत सिंह भी थे। वोहरा की बम का टेस्ट करते वक्त 1930 में विस्फोट में जान चली गई थी।
विख्यात लेखक कुलदीप नैयर ने अपनी किताब Without Fear : Life And Trial Of Bhagat Singh में साफ तौर पर लिखा है कि भगत सिंह के दुर्गा देवी से संबंधों पर उनके साथी सुखदेव ने एक बार तंज करते हुए कहा भी था "तुम्हारी क्रांति में कोई भूमिका नहीं होगी क्योंकि तुम एक महिला के मोह में फंस चुके हो।"सुखदेव का इशारा दुर्गा देवी की तरफ ही था।
कौन थीं दुर्गा भाभी
दुर्गा भाभी का जन्म सात अक्टूबर 1907 को पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में काम करते थे। उनका अल्प आयु में ही विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया। इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। भगवती चरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे। वर्ष 1920 में पिता जी की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया।
मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। कहते हैं कि दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था। चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे दुर्गा भाभी ने ही लाकर उनको दी थी।
कैसे गुजरी जिंदगी दुर्गा भाभी की
भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को राज गुरु और सुखदेव के साथ फांसी हो जाती है। उनका संगठन बिखर सा गया। उसके बाद दुर्गा भाभी ने 1940 में लखनऊ के कैंट इलाके में एक बच्चों का स्कूल खोला। उसे वह दशकों तक चलाती रहीं। 70 के दशक तक दुर्गा भाभी लखनऊ में ही रहीं। फिर उन्होंने अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ गाजियाबाद में शिफ्ट कर लिया। उनसे इस लेखक और सोशल वर्कर Jitender Singh Shunty को 1996 में मुलाकात करने का मौका मिला। काफी वृद्ध हो चुकी थी दुर्गा भाभी तब तक। गुजरे दौर की यादें धुंधली पड़ने लगी थीं। पर, भगत सिंह का जिक्र आते ही फिर वह उन्हीं दिनों में वापस चली गईं थी । उन्होंने उस सारे घटनाक्रम को सुनाया जब वह बनीं थी भगत सिंह की पत्नी। तब उनके पुत्र साची ही उनकी सेवा करते थे। उनसे मिलने दिल्ली के तब तक के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना भी गाजियाबाद गए थे।
खैर,दुर्गाभाभी का 15 अक्तूबर 1999 को गाजियाबाद में निधन हो गया था। उनकी मृत्यु पर तब कोई खास प्रतिक्रिया भी नहीं हुई थी। गाजियाबाद शहर और देश को कुछ दिनों के बाद मालूम चला था कि जिस बुजुर्ग महिला का निधन हुआ है भगत सिंह की साथी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र साची और परिवार के शेष सदस्य कनाडा शिफ्ट कर गए थे।
आपको याद होगा कि रंग दे बसंती फिल्म में में सोहा अली खान ने निभाया था दुर्गा भाभी का किरदार। अब आप गाजियाबाद के राज नगर में किसी से दुर्गा भाभी के घर के रास्ता पूछें तो शायद ही कोई आपकी मदद करे। अफसोस कि हमने एक आदरणीय क्रांतिकारी को भुला दिया.
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प्रभात खबर में छपे लेख के अंश.