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राजधानी के बाजारों में बनिए -पंजाबी विवेक शुक्ला

 


शारदीय नवरात्र चल रहे हैं और दिल्ली के  चावड़ी बाजार में खूब गहमागहमी का माहौल है। कभी इस बाजार का चक्कर लगा लीजिए। हार्डवेयर,पेपर,शादी के कार्डों वगैरह की सैकड़ों दुकानों के नामों को गौर से देखिए। जो नाम पचास साल पहले दुकानों के बोर्डों पर चस्पा थे वे ही अब भी लगे हुए हैं। इधर की दुकानों के बाहर लगे बोर्डों पर दिखाई दे रहे नामों को पढ़कर समझ आ जाएगा कि दिल्ली के इस थोक बाजार में बनियों और पंजाबियों का अभेद्द किला दरकने या समावेशी होने के लिए तैयार नहीं है। 


कहते हैं कि समय के साथ सब बदलता है पर चावड़ी बाजार इस कहावत को नहीं मानता। इधर की छोटी बड़ी दुकानों में रोज करोड़ों-अरबों का धंधा हो रहा है। किसी को सांस लेने की फुर्सत नहीं है। काम बढ़ता जा रहा है। आप किसी दुकानदार से पूछिए कि कैसा चल रहा है कामकाज। 


यकीन मानिए कि उदास स्वर में जवाब मिलेगा ‘अब मार्जिन कहां रहे,भाई साहब? गुजारा कर रहे हैं।’ कौन मर ना जाए इतने प्यारे से जवाब को सुनकर। यह दिल्ली के कारोबारियों का अंदाजे बयां है।


अब चलते हैं कश्मीरी गेट की आटो स्पेयर मार्केट में। एक भव्य शो-रूम के आगे पूजा हो रही है।  बताया जाता है कि शो-रूम को नए सिरे से बनाकर शुरू किया जा रहाहै। यहां पर भी चावड़ी बाजार वाली स्थितियां हैं। कश्मीरी गेट मार्किट को एशिया की सबसे बड़ी आटो स्पेयर पार्ट्स मार्किट माना जाता है।


 यहां पर बनिए और पंजाबी लगभग 97 फीसद दुकानें चला रहे हैं। आपको यहां पर कार, ट्रक, ट्रैक्टर, बाइक वगैरह के स्पेयर पार्ट्स मिल जाते हैं। आपको इधर व्हीकल सड़क पर चलती है, उसके कल पुर्जे मिल जाते हैं। मतलब हवाई जहाज और शिप को छोड़कर सब वाहनों के कल पुर्जे यहां पर मिलते हैं। पड़ोसी राज्यों के आटो पार्ट्स का बिजनेस करने वाले कारोबारी यहां से ही माल लेना पसंद करते हैं।


 दरअसल राजधानी में गुजरे बीसेक सालों के दौरान अन्य राज्यों से विद्यार्थियों,पेशेवरों,मेहनतकशों के आकर बसने की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। केरल से लेकर मणिपुर और बिहार से लेकर उड़ीसा आदि के नागरिक विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। 


आम आदमी पार्टी के उदय के बाद पूर्वांचली तो राजनीति में छा गए हैं। मौजूदा दिल्ली विधान सभा में बिहार में जन्में 8 विधायक हैं। पर बिजनेस की दुनिया में अभी भी बनिया-पंजाबी का असर बना हुआ है। जब बात बनियों  की करेंगे तो उसमें जैन भी शामिल किए जा सकते हैं। हालांकि कुछ जैन कहते हैं कि वे अलग हैं। पंजाबियों में सिख तो रहेंगे ही।


आप राजधानी के लाहौरी गेट,करोल बाग, राजौरी गार्डन, लाजपत नगर सेंट्रल मार्केट, आईएनए,कमला नगर,कालकाजी,कनॉट प्लेस, ज्वालाहेड़ी,सरोजनी नगर,ग्रेटर कैलाश- एम ब्लाक समेत किसी भी कायदे की थोक या अन्य मार्किट को जाकर देख लें। 


आपको अग्रवाल स्वीट्स,गुप्ता स्टेशनरी,खन्ना ज्यूलर्स,कालड़ा पेपर्स,जैन संस,पंजाब स्वीट्स जैसे नाम ही मिलेंगे। लेकिन,  दिल्ली के बाजारों पर जिनका एकछत्र राज बना हुआ है, उसमें आने वाले आठ-दस सालों में कुछ  बदलाव हो सकते हैं। दरअसल अनेक बिजनेस परिवारों में अजीब संकट पैदा हो रहा है। कई परिवारों के बच्चे अपने पिता या दादा की दुकान या शो-रूम में बैठने की बजाय नौकरी करना चाहते हैं।


 राजधानी के एक बेहद खास व्यापारी परिवार का नौनिहाल न्यूयार्क में टाप बैंकर हैं। उसने अपने खानदान के सौ साल पुराने बिजनेस से जुड़ने से मना कर दिया था। इस परिवार के मुखिया कभी चांदनी चौक से लोकसभा सांसद भी थे। इस तरह के दर्जनों उदाहरण सामने आ रहे हैं। 

तो माना जाए कि राजधानी के बाजारों और बिजनेस का चेहरा बदलेगा। तब अन्य जातियों और धर्मों के उत्साही नौजवान भी कारोबारी दुनिया में किस्मत आजमाएंगे। फिलहाल उस बदलाव को देखने के लिए कुछ इंतजार करना होगा। Vivekshukladelhi@gmail.com 

Navbharattimes में 14 अक्टूबर 2021  को छपे लेख के अंश.

फोटो चावड़ी बाजार


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